Monday, March 27, 2023

अवतार छंद, 'गोरैया'

 अवतार छंद,

 'गोरैया'

फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे।

चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।।

मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे।

तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।।


चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती।

अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।।

छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी।

है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।।


ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में।

है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।।

मिलजुल कर रहती सदा, व्यवहार की धनी।

घर-आँगन चहका रही, मृदु भाव से सनी।।


सुन मेरी प्यारी सखी, तुम सुखद भोर हो।

निज आँगन समझो इसे, घर यही ठोर हो।।

मैं दाना दूँगी तुम्हें, जल नित्य ही भरूँ।

मत जाना दर से कभी, 'शुचि' विनय नित करूँ।।


◆◆◆◆◆◆◆


अवतार छंद विधान-


अवतार छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।

यह 13 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2 2222 12, 2 3 212 


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत 212 (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।

Wednesday, March 1, 2023

संपदा छंद 'श्री गणेशाय नमः'

 संपदा छंद

 'श्री गणेशाय नमः'


हे वरगणपति देव, शिव-गौरी सुत सुजान।

श्री कार्तिकेय भ्रात, जगत करे गुण बखान।।

गज मुख दुर्लभ रूप, है काया अति विशाल।

शशि मष्तक पर सोय, अति सुंदर दिव्य भाल।।


तिथि भाद्र शुक्ल चौथ, जन्मे प्रभु श्री गणेश।

है आह्लादित मात, नाचे छम छम महेश।।

तन पीताम्बर सोय, तुण्ड बड़ी है विशाल।

गल मणि माला दिव्य, आकर्षक सौम्य चाल


हो प्रथम पूज्य आप, करें सफल सकल काज।

दुख हरते प्रभु शीघ्र, रखते तुम भक्त लाज।।

हे भूपति विघ्नेश, सब देवों के नरेश।

तन मन धन से भक्त, ध्याते प्रतिपल गणेश।।


हे मेरे आराध्य, नमन करूँ नित विनीत।।

सद्ग्रन्थों को राच, कार्य करूँ मैं पुनीत।

कर लेखन गति तेज, भर दो हिय में उजास।

'शुचि' आँगन में आप, करना प्रभु नित्य वास।।


◆◆◆◆◆◆◆


संपदा छंद विधान-


संपदा छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।

यह 11 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2 22221, 2222 121


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत 121 (जगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।

◆◆◆◆◆◆◆


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Featured Post

शुद्ध गीता छंद, "गंगा घाट"

 शुद्ध गीता छंद-  "गंगा घाट" घाट गंगा का निहारूँ, देखकर मैं आर पार। पुण्य सलिला, श्वेतवर्णा, जगमगाती स्वच्छ धार।। चमचमाती रेणुका क...