हीर छंद
"माँ"
माँ प्यारी, जग न्यारी, उजियारी धूप है।
राम वही, श्याम वही, ईश्वर का रूप है।।
चार धाम, अष्ठ याम, अर्चनीय मात है।
शौर्य कथा, नार व्यथा, भोर वही रात है।।
कालजयी, काव्यमयी, मधुरिम वो पद्य है।
गूढ़ भरा, नित्य हरा, सार ग्रन्थ गद्य है।।
आशा है, भाषा है, शब्दों का ज्ञान माँ।
है संस्कृति, संप्रतीति, ब्रह्मा का मान माँ।।
मातृ शक्ति, पूर्ण भक्ति, आस्था का बीज वो।
उत्साही, परिवाही, सावन की तीज वो।।
प्रेममयी, जगन्मयी, रिश्तों की डोर है।
सागर है, गागर है, मध्य वही छोर है।।
तीर वही, धीर वही, ठोस तरल हेम है।
दृष्टि जहाँ, सृष्टि वहाँ, व्याप्त सकल प्रेम है।
मुस्काते, लहराते, आँचल की छाँव में।
व्यस्त रहूँ, मस्त रहूँ, माँ के ही ठाँव में।।
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हीर छंद विधान-
हीर छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 6, 6, 6 5 के तीन यति खंडों में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इस छंद का अन्य नाम हीरक भी है।
अन्तर्यति तुकांतता से रचना का माधुर्य बढ़ जाता है वैसे छंद प्रभाकर के अनुसार इसकी बाध्यता नहीं है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
S22, 222, 222 S1S
6 + 6 + 11= 23 मात्राएँ
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि गुरु एवं अंत 212 (रगण) अनिवार्य है।
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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम