हृदय की चीख को अक्सर,जुबां पर है कहाँ लाती,
जो रक्षक है वही भक्षक,डरी सहमी न कह पाती।
संभल कर घर से जाती है,उड़ानें भर रही बेटी,
मगर घर के दरिंदों की,हवस अग्नि में जल जाती।।
सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
जो रक्षक है वही भक्षक,डरी सहमी न कह पाती।
संभल कर घर से जाती है,उड़ानें भर रही बेटी,
मगर घर के दरिंदों की,हवस अग्नि में जल जाती।।
सुचिता अग्रवाल 'सुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
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