मदिरा सवैया 'शारदे वंदना'
शारद को कवि भारत के,
नित शीश झुका कर ध्यावत हैं।
ज्ञान भरो उर भीतर माँ,
विनती कर लोग मनावत हैं।
हस्त सदा सर पे रखना,
कवि गीत सदा लिख गावत हैं।
मात तुम्हें कवि वृंद रिझा,
सुख सत्य सनातन पावत हैं।
मात सदा चित माँहि बसा,
मन मूरत शारद की धरलें।
लोभ हरें छल दूर करें,
बस सत्य लिखें मन में करलें।
राह दिखा कर नेक सदा,
निज जीवन में खुशियाँ भर लें।
सत्य सनातन धर्म यही,
दुख दोष सभी जग के हर लें।
जोड़ रहे कर शारद माँ,
तुम ज्ञान अपार बहाकर दो,
उच्च रहे कवि धाम सदा,
मन की जड़ता सब माँ हर दो।
छन्द लिखें कविता लिखलें,
गुण लेखन का सबमें भर दो।
भाव दिए तुमने हमको,
शुचि लेखन शक्ति हमें वर दो।
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
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