"स्वच्छ भारत"
विधा- (ताटंक छंद)
सुंदर स्वच्छ बनेगा भारत, ऐसा शुभ दिन आएगा।
तन मन धन से भारतवासी ,जब आगे बढ़ जाएगा।।
अलग-अलग आलाप छोड़कर, मिलकर सुर में गाएगा ।
गाँव नगर हर शहर-शहर से, भ्रष्टाचार मिटाएगा।।
हरियाली की चाहत से भू, वृक्षों से लहकाएँगे।
एक अकेला जन थक जाए, हम सब साथ निभाएँगे।।
सबसे आगे होगा भारत, सोच यही अपनाएँगे
जैसा बीज रखेंगे मन में, अंकुर वैसा पाएँगे।।
बन्द तिजोरी से धन काला, बाहर अब लाना होगा।
घोटालों से मुक्त देश यह, जन-जन को करना होगा।।
लालच की गंदी गलियों से, कचरे को उठवाएँगे।
शुद्ध कमाई जो भी होगी, उसको मिलकर खाएँगे।
बेटा-बेटी एक बराबर, यही सोच अपनाएँगे।
गाँव-शहर की हर बेटी को, विद्यालय पहुँचाएँगे।।
नारी के प्रति बुरी नजर से, नर ऊपर उठ जाए तो।
मानवता की स्वच्छ लहर का, प्रादुर्भाव तभी तो हो।।
शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, आसाम
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