(बह्र-2122 2122 2122 212)
तरही मिसरा-"जिंदगी में जिंदगी जैसा मिला कुछ भी नहीं"
प्यार का तुमने दिया हमको सिला कुछ भी नहीं,
मिट गये हम तुझको लेकिन इत्तिला कुछ भी नहीं।
कोख में ही मारकर मासूम को बेफ़िक्र हैं,
फिर भी अपने ज़ुर्म का उनको गिला कुछ भी नहीं।
राह जो खुद हैं बनाते मंजिलों की चाह में,
अस्ल में उनकी नज़र में काफिला कुछ भी नहीं।
हौसले रख जो जिये पाये सभी कुछ वे यहाँ,
बुज़दिलों को मात से ज्यादा मिला कुछ भी नहीं।
ज़िंदगी चाहें तो हम बहतर हम बना सकते मगर,
ज़ीस्त में हो रंज-ओ-ग़म का दाखिला कुछ भी नहीं।
रहते जो हर हाल में खुश वो कहाँ कहते कभी
*जिंदगी में जिंदगी जैसा मिला कुछ भी नहीं*।
प्रेम की 'शुचिता' बहाकर जिंदगी में तुम जिओ
प्रेम जीवन में अगर तो अधखिला कुछ भी नहीं।
(मौलिक)
सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया,असम
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