हनन अधिकार का हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
जहाँ सच हारता हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
दलाली अस्मिता की कर रहा बेटा किसी माँ का,
सुमन को रौंदता हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
किसी अनपढ़ पे ज्ञानी की निगाहें हो तिरष्कृत सी,
वही धिक्कारता हो तो ये मन प्रतिरोध कर ता है।
किसी से छीनकर रोटी पिये हाला रियासत की,
रुलाकर नाचता हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
हुए माँ-बाप जब बूढ़े दिखाता आँख बेटा ही,
बग़ावत पर खड़ा हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
किया अपमान नारी का बड़े हक़ से सदा नर ने,
सताकर मारता हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
प्रताड़ित हो रही हिन्दी वतन अपने ही भारत में,
कि दोषी ही सगा हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
है होली रंग जीवन का, कोई बेरंग जब करता,
भुलाता सभ्यता हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
रखें आबाद 'शुचिता'को कि गंगा माँ हमारी है,
टूटती भव्यता हो तो ये मन प्रतिरोध करता है।
सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
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