लावणी छंद "बेटियाँ"
घर की रौनक होती बेटी, सर्व गुणों की खान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
जब हँसती खुश होकर बेटी, आँगन महक उठे सारा।
मन मृदङ्ग सा बज उठता है, रस की बहती है धारा।।
त्योंहारों की चमक बेटियाँ, जग सागर वह मोती है।
प्रेम दया ममता का गहना,यही बेटियाँ होती है।।
महक गुलाबों सी बेटी है,कोयल की है तान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
बसते हैं भगवान जहाँ खुद, उनके घर यह आती है।
पालन पोषण सर्वोत्तम वह, जिनके हाथों पाती है।।
पल में सारे दुख हर लेती ,बेटी जादू की पुड़िया।
दादा दादी के हिय को सुख ,देती हरदम ये गुड़िया।।
माँ शारद लक्ष्मी दुर्गा का ,होती है सम्मान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।
मात पिता के दिल का टुकड़ा, धड़कन बेटी होती है।
रो पड़ता है दिल अपना जब ,दुख से बेटी रोती है।।
जाती है ससुराल एक दिन,दो-दो कुल महकानें को।
मीठी बोली से हिय बसकर, घर आँगन चहकाने को।।
बेटी की खुशियों का दामन, अपनी तो मुस्कान यही।
बेटी होती जान पिता की है माँ का अभिमान यही।
शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
विधान – 30 मात्रा, 16,14 पर यति l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l
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