जीवन सुख कारी, या दुखकारी,
निर्भर हम पर, करता है।
हम आशावादी, सुख के आदी,
प्रेम प्यार दुख, हरता है।
जब सुख हम देंगे, खुद पा लेंगे,
यही रीत तो, चलती है।
सूरज जब आता, तम छिप जाता,
सुखद भोर तब, खिलती है।
सुंदर भावों का, उपकारों का,
प्यासा यह जग, सारा है।
सूखी धरती पर, मेघा आकर,
बरसाये जब, धारा है।
तब कण-कण खिलता,मधुरस मिलता,
गीत खुशी के, गाते हैं ।
जो औरों के हित, बढ़ते हैं नित,
स्वर्ग धरा पर, पाते हैं।
हम प्रण कर लेंगे, खुशियाँ देंगे,
क्रोध भाव को, छोडेंगे।
जो राह रोकदे, हमें टोक दे,
कदम तभी हम, मोड़ेंगे।
है मनन किया जो, अमल करो वो,
आगे बढ़ते, जाना है ।
'शुचि' जोश भरो अब,जागोगे कब,
जीवन सुख तो, पाना है।
सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
छंद त्रिभंगी की परिभाषा:
{चार चरण, मात्रा ३२, प्रत्येक में १०,८,८,६ मात्राओं पर यति तथा प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत, प्रथम दो चरणों व अंतिम दो चरणों के चरणान्त परस्पर समतुकांत तथा जगण वर्जित, आठ चौकल, प्रत्येक चरण के अंत में गुरु}
निर्भर हम पर, करता है।
हम आशावादी, सुख के आदी,
प्रेम प्यार दुख, हरता है।
जब सुख हम देंगे, खुद पा लेंगे,
यही रीत तो, चलती है।
सूरज जब आता, तम छिप जाता,
सुखद भोर तब, खिलती है।
सुंदर भावों का, उपकारों का,
प्यासा यह जग, सारा है।
सूखी धरती पर, मेघा आकर,
बरसाये जब, धारा है।
तब कण-कण खिलता,मधुरस मिलता,
गीत खुशी के, गाते हैं ।
जो औरों के हित, बढ़ते हैं नित,
स्वर्ग धरा पर, पाते हैं।
हम प्रण कर लेंगे, खुशियाँ देंगे,
क्रोध भाव को, छोडेंगे।
जो राह रोकदे, हमें टोक दे,
कदम तभी हम, मोड़ेंगे।
है मनन किया जो, अमल करो वो,
आगे बढ़ते, जाना है ।
'शुचि' जोश भरो अब,जागोगे कब,
जीवन सुख तो, पाना है।
सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
छंद त्रिभंगी की परिभाषा:
{चार चरण, मात्रा ३२, प्रत्येक में १०,८,८,६ मात्राओं पर यति तथा प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत, प्रथम दो चरणों व अंतिम दो चरणों के चरणान्त परस्पर समतुकांत तथा जगण वर्जित, आठ चौकल, प्रत्येक चरण के अंत में गुरु}
अति सुंदर सृजन
ReplyDeleteSatish rohatgi
ajourneytoheart.blogspot.com
स्वरांजलि
अति सुंदर सृजन
ReplyDeleteSatish rohat
ajourneytoheart.blogspot.com
स्वरांजलि