दुर्मिल सवैया
"मधुमास"
नव रंग सजे नवगीत बजे, मधुमास सदैव सुहावत है।
चिड़िया चहके बगिया महके,अति मौसम सौम्य लुभावत है।
खलिहान हरे हलवाह हँसे, मन गावत धूम मचावत है।
ऋतुराज उमंग भरे मन में, शुचि प्रेम धरा पर आवत है।।
◆◆◆◆◆◆◆◆
दुर्मिळ सवैया विधान -
दुर्मिळ सवैया चार चरणों का 24 वर्णों के वर्णिक छंद है। सभी सवैया छंद गण आश्रित छंद होते हैं । इसी तरह दुर्मिळ सवैया भी 24 वर्णों का सगण (112) पर आश्रित है, जिसकी 8 आवृत्ति होती है। इसकी सरंचना लघु लघु गुरु × 8 (112 × 8 ) है।
(112 112 112 112 112 112 112 112 )
अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।
सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं परंतु कोई चाहे तो लय की सुगमता के लिए दुर्मिळ के चरण में 12 -12 वर्ण के 2 यति खंड रख सकते है ।चूंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।
●●●●●●●●●●
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया,असम
No comments:
Post a Comment