Saturday, November 9, 2019

गज़ल,'शौहरत ढूंढना सीखो'

(बहर1222*4)

खुली पलकों में सपनों को सजा कर देखना सीखो,
हकीकत बन गए सपने यही बस सोचना सीखो।

बनाना दायरा अपना हमारे हाथ में होता,
जहन में ख्वाहिशों की लौ जलाकर जागना सीखो।

किसी बंजर पड़ी भू पर फसल क्या खाक आएगी,
तमन्ना के धरातल पर सदा हल जोतना सीखो।

मुकद्दर के भरोसे जिंदगी अक्सर गँवा लेते,
सिकंदर हम जहाँ के हैं यही बस मानना सीखो।

पनपने दो न गम भय को खुशी में आस्था रखना,
सदा चाहत का संदेशा जहाँ में भेजना सीखो।

हुआ हर शख्स जो काबिल विचारों की बदौलत ही,
अमन के ही चिरागों से दीवाली पूजना सीखो।

कभी गुस्ताखियों में तो कभी अपनी ही मेहनत में,
मुकामों के हो मनसूबे कि शौहरत ढूंढना सीखो।

सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप

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