त्राही त्राही मच रही
आग ये बरस रही
सूखे होंठ गिला तन
पानी तो पिलाइये।
गरमी बेहाल करे
कैसे कोई काम करे
मजदूर मर रहे
वेतन दिलाइये।
हरियाली जल गई
भूखमरी बढ़ गयी
गाँव, गली, शहर को
पेड़ों से मिलाइये।
धरती को सींच रहे
कृषि हल खींच रहे
भूख से किसान मरे
न्याय तो दिलाइये।
डॉ.शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
बहुत ही सुन्दर सृजन 🌹🌹
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