जो सदा यही कहे कि हौसले बुलंद है,
है हजार राह सामने दिवार चंद है।
वो रहे सदा सुखी वही बने महान है,
सौ करोड़ लोग में दिखे विराट शान है।
मार्ग की मुसीबतें विचार से हटाइये,
कार्यभार को सदा उमंग से उठाइये।
जिंदगी मिली हमें इसे सुधार लीजिये,
आज से अभी सभी गुमान छोड़ दीजिये।
खो गई निशानियाँ जिये-मरे निराश से,
कौन पूछता कहाँ गया कबाड़ वास से।
नाम जो कमा गये सिखा गये सभी हमें,
आस छोड़ना नहीं न पाँव भी कभी थमें।
सोच लें कि वक्त आज आपको बुला रहा ।
ज्ञान की उदार सी बयार ने यही कहा ।।
बात जो सही लगे उसे अवश्य मानिए।
गीत की यही पुकार है महत्व जानिए ।।
शिल्प~[रगण जगण रगण जगण रगण]
212 121 212 121 212
{(गुरुलघु ×7)+गुरु, 15 वर्ण प्रति
चरण, 4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत}
सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया,असम
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