Wednesday, November 6, 2019

मुक्त कविता,"पहली कमाई"


आज से पहले ना हुआ  यह सुखद अहसास
पहली कमाई हाथ में कितनी लगती खास।

दिव्य रूप लक्ष्मी तेरा देखा है पहली बार
खुशियों से मन झूम उठा नाचे घर परिवार।

पहली कमाई कीजिये प्रभु आप स्वीकार
नेकि के रस्ते बढूं सदा करूँ उपकार।

मात पिता की आंखों में खुशियों के आँसू आये
पूरे हुए वो सब सपने वर्षों से थे जो संजोए।

लगन, परिश्रम, हौसले सदा थे मेरे पास
राहों में रौड़े मिले पर टूटी कभी ना आस।

हुआ चूर थककर कभी ,आलस से घबराया
पानी है मंजिल मुझको, खुद को ही मैने समझाया।


सुचिसंदीप (सुचिता अग्रवाल)
तिनसुकिया (असम)

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