तोटक छंद
'उठ भोर हुई'
उठ भोर हुई बगिया महके।
चिड़िया मदमस्त हुई चहके।।
झट आलस त्याग करो अपना।
तब ही सच हो सबका सपना।।
रथ स्वर्णिम सूरज का चमके।
सतरंग धरा पर आ दमके।।
बल, यौवन, स्वस्थ हवा मिलती।
घर-आँगन में खुशियाँ खिलती।।
धरती, गिरि, अम्बर झूम रहे।
बदरा लहरा कर घूम रहे।।
हर दृश्य लगे अति पावन है।
यह भोर बड़ी मनभावन है।
पट मंदिर-मस्जिद के खुलते।
मृदु कोयल के स्वर हैं घुलते।।
तम भाग गया किरणें बिखरी।
नवजीवन पा धरती निखरी।।
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तोटक छंद विधान-
तोटक छंद 12 वर्णों की वर्णिक छंद है।
इसमें चार सगण होते हैं।
112 112 112 112 = 12 वर्ण।
चार चरण होते है।
दो- दो या चारों चरण समतुकान्त।
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शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम