Saturday, December 23, 2023

शार्दूलविक्रीडित छंद 'माँ लक्ष्मी वंदना'

 शार्दूलविक्रीडित छंद

 'माँ लक्ष्मी वंदना'


सारी सृष्टि सदा सुवासित करे, देती तुम्ही भव्यता।

लक्ष्मी हे कमलासना जगत में, तेरी बड़ी दिव्यता।।

पाते वो धन सम्पदा सहज ही, ध्यावे तुम्हे जो सदा।

आकांक्षा मन की सभी फलित हो, जो भक्त पूजे यदा।।


तेरा ही वरदान प्राप्त करके, सम्पन्न होते सभी।

झोली तू भरती सदैव धन से, खाली न होती कभी।।

भक्तों को रखती सदा शरण में, ऐश्वर्य से पालती।

देती वैभव, मान और क्षमता, संताप को टालती।।


हीरे का अति दिव्य ताज सर पे, आभा बड़ी सोहनी।

चाँदी की चुनड़ी चमाक चमके, माँ तू लगे मोहनी।।

सोने की तगड़ी सजी कमर पे, मोती जड़े केश है।

माता तू धनवान एक जग में, मोहे सदा वेश है।।


हे लक्ष्मी हरिवल्लभी नमन है, तेरी करूँ आरती।

तेरा ही गुणगान नित्य करती, मातेश्वरी भारती।।

सेवा, त्याग, परोपकार वर दो, संसार से तार माँ।

श्रद्धा से शुचि भक्ति नित्य करती, नैया करो पार माँ।।

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शार्दूलविक्रीडित छंद विधान-

शार्दूलविक्रीडित छंद चार पदों की वर्णिक छंद है। प्रत्येक पद में 19 वर्ण होते हैं। 12 और 7 वर्णों के बाद यति होती है।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

222 112 121 112/ 221 221 2

बहुत ही मनोहारी श्लोक जैसे- आदौ राम तपो, या कुन्देन्दु तुषार हार, कस्तूरी तिलकम आदि की रचना इसी छंद में की गई है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Saturday, November 25, 2023

संत छंद 'निश्चय"

 संत छंद

  'निश्चय"


हुई भोर नयी, आओ स्वागत करलें।

चलो साथ बढ़ें, नव ऊर्जा हिय भरलें।।

खिली धूप धवल, कहाँ तिमिर अब गहरा।

रुचिर पुष्प खिले, बाग रहा है लहरा।।


करें कार्य वही, जिससे निज मन सरसे।

बनें निपुण सदा, उत्सुकता हिय बरसे।।

नया जोश जगा, नव राहें हम गढलें।

प्रबल भाव भरें, प्रगति शिखर पर चढ़ लें।।


सदा धैर्य रखें, धार शांति निज मन में।

रहें सदा सजग, ढूँढें गुण हर जन में।।

अटल होय बढ़ें, निडर बनें, हम दमकें।

बढ़े कार्य लगन, शौर्य भाव रख चमकें।।


उच्च भाव रहे, ऊँचे देखें सपने।

अडिग खड़े रहें, हम जीवन में तपने।।

सुगम पंथ चुनें, निश्चय भाव प्रबल हों।

चलो साथ चलें, निष्ठा अजय सबल हों।।


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संत छंद विधान-


संत छंद 21 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।

यह 9 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

3 6, 6 6


छक्कल की संभावित संभावनाएं-

(3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं।


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में  112 (सगण) अनिवार्य है। 

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Friday, November 24, 2023

मुक्तक, माँ

 "पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि"

कोई प्यारा जब दुनिया को, छोड़ अचानक जाता है।

टीस हृदय में रह रह उठती, याद वही बस आता है।

कैसे भूलूँ उन लम्हों को, साथ बिताये जो हमने,

तुमको खोना हद से ज्यादा, यार मुझे तड़पाता है।।


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


मुक्तक, माँ'

 पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि

माँ तेरी सूरत आँखों से, ओझल हो ना पाती है।

नहीं एक दिन ऐसा जिस दिन, याद न तेरी आती है।

तीन बरस यूँ बीते तुम बिन, जैसे सदियाँ बीत गयी,

मेरी भीगी आँखों को भी, याद तुम्हारी भाती है।।


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

मुक्तक ' माँ'

 पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि


जब कोई तस्वीर पुरानी, हाथ मेरे लग जाती है।

माँ तेरी सूरत सुंदर सी, हँसकर मुझे लुभाती है।

सुख-दुख का कुछ मिला जुला सा, असर हृदय में जब होता।

चुपके से मेरा मन फिर से, आँचल में तेरे खोता।

मेरे बालों को उँगली से, जैसे तुम सहलाती हो।

सच पूछो तो माँ तुम मुझको, याद बहुत ही आती हो।।


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

  

मुक्तक 'दोस्त'

 "पुण्यतिथि पर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि"

कोई प्यारा जब दुनिया को, छोड़ अचानक जाता है।

टीस हृदय में रह रह उठती, याद वही बस आता है।

कैसे भूलूँ उन लम्हों को, साथ बिताये जो हमने,

तुमको खोना हद से ज्यादा, यार मुझे तड़पाता है।।


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


Thursday, November 23, 2023

मुक्तक, माँ

 माँ तेरी सूरत आँखों से, ओझल हो ना पाती है।

नहीं एक दिन ऐसा जिस दिन, याद न तेरी आती है।

तीन बरस यूँ बीते तुम बिन, जैसे सदियाँ बीत गयी,

मेरी भीगी आँखों को भी, याद तुम्हारी भाती है।।

Wednesday, September 27, 2023

त्रिभंगी छंद 'ससुराल'

 त्रिभंगी छंद

 'ससुराल'


ससुराल सजीला, लगे रसीला, छैल-छबीला, यौवन सा।

अति हृदय लुभाता, सहज सुहाता, मन हर्षाता, उपवन सा।।

कोमल भावों का, मृदु छाँवों का, उच्छावों का, डेरा है।

सूरज की गरमी, शीतल नरमी, उत्सवधर्मी, घेरा है।।


मन श्वसुर भाँपते, हृदय झाँकते, घर सँवारते, बड़पन से।

दुख सास मिटाती, हरि गुण गाती, दीप जलाती, शुचि मन से।।

नखराला देवर, मीठा घेवर, तीखा तेवर, दिखलाये।

ननदल हमजोली, हँसी-ठिठोली, मीठी बोली, सिखलाये।।


पिय का घर आना, मन खिल जाना, कुछ उकसाना, सरसाना।

तन रिमझिम सावन, अति मनभावन, मन वृंदावन, बरसाना।।

प्रिय की मृदु बातें, मीठी रातें, सुख सौगातें, व्याकुलता।

नेहर बिसराये, नव घर पाये, सपन सजाये, चंचलता।।


ससुराल प्रेम भी, ठोस-हेम भी, कुशल-क्षेम भी, प्यारा है।

हर भूल भुलाता, गले लगाता, हर्ष जगाता, न्यारा है।।

नित पाठ पढ़ाता, गर्व बढ़ाता, चाव चढाता, घर अपना।

हम इसे सजायें, हिल-मिल जायें, मंगल गायें, हो सपना।।


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त्रिभंगी छंद विधान-


त्रिभंगी प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। यह 4 पद का छंद है। प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत होनी आवश्यक है। परन्तु तीनों यति निभाई जाय तो सर्वश्रेष्ठ है। दो दो चरण समतुकांत होते हैं।


इसकी मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है:-

प्रथम यति- 2+4+4

द्वितीय यति- 4+4

तृतीय यति- 4+4

पदान्त यति- 4+2

चौकल में पूरित जगण वर्जित रहता है तथा चौकल की प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता।


पदान्त में एक दीर्घ (S) आवश्यक है लेकिन दो दीर्घ हों तो सौन्दर्य और बढ़ जाता है


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शुचिता अग्रवाल, 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Monday, March 27, 2023

अवतार छंद, 'गोरैया'

 अवतार छंद,

 'गोरैया'

फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे।

चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।।

मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे।

तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।।


चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती।

अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।।

छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी।

है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।।


ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में।

है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।।

मिलजुल कर रहती सदा, व्यवहार की धनी।

घर-आँगन चहका रही, मृदु भाव से सनी।।


सुन मेरी प्यारी सखी, तुम सुखद भोर हो।

निज आँगन समझो इसे, घर यही ठोर हो।।

मैं दाना दूँगी तुम्हें, जल नित्य ही भरूँ।

मत जाना दर से कभी, 'शुचि' विनय नित करूँ।।


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अवतार छंद विधान-


अवतार छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।

यह 13 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2 2222 12, 2 3 212 


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत 212 (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।

Wednesday, March 1, 2023

संपदा छंद 'श्री गणेशाय नमः'

 संपदा छंद

 'श्री गणेशाय नमः'


हे वरगणपति देव, शिव-गौरी सुत सुजान।

श्री कार्तिकेय भ्रात, जगत करे गुण बखान।।

गज मुख दुर्लभ रूप, है काया अति विशाल।

शशि मष्तक पर सोय, अति सुंदर दिव्य भाल।।


तिथि भाद्र शुक्ल चौथ, जन्मे प्रभु श्री गणेश।

है आह्लादित मात, नाचे छम छम महेश।।

तन पीताम्बर सोय, तुण्ड बड़ी है विशाल।

गल मणि माला दिव्य, आकर्षक सौम्य चाल


हो प्रथम पूज्य आप, करें सफल सकल काज।

दुख हरते प्रभु शीघ्र, रखते तुम भक्त लाज।।

हे भूपति विघ्नेश, सब देवों के नरेश।

तन मन धन से भक्त, ध्याते प्रतिपल गणेश।।


हे मेरे आराध्य, नमन करूँ नित विनीत।।

सद्ग्रन्थों को राच, कार्य करूँ मैं पुनीत।

कर लेखन गति तेज, भर दो हिय में उजास।

'शुचि' आँगन में आप, करना प्रभु नित्य वास।।


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संपदा छंद विधान-


संपदा छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।

यह 11 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2 22221, 2222 121


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत 121 (जगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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