Thursday, June 23, 2022

दिगपाल / मृदुगति छंद, 'पिता'

 दिगपाल / मृदुगति छंद, 

'पिता'


हारा नहीं कभी जो, रुकना न सीख पाया।

संतान को सदा ही, बन वह पिता सजाया।।

वो बीज सृष्टि का है, संसार रचयिता है।

रिश्ते अनेक जग में, लेकिन पिता पिता है।।


अँगुली पकड़ चलाया, काँधे कभी बिठाया।

चलते जिधर गये हम, पाया सदैव साया।।

तकिया बनी भुजाएँ, छाती नरम बिछौना।

घोड़ा कभी बना वो, हँसकर नया खिलौना।।


वो साँझ की प्रतीक्षा, वो ही खिला सवेरा।

उसके बिना न संभव, खुशियों भरा बसेरा।।

उम्मीद पूर्ण दीपक, विश्वास का कवच है।

संबल मिला उसी से, वो स्वप्न एक सच है।।


परिवार की प्रतिष्ठा, तम का करे उजारा।

मोती अलग-अलग हम, धागा पिता हमारा।।

वो नील नभ वही भू, वो सख्त भी नरम है।

संसार के सुखों का, होता पिता चरम है।।


वो है पिता हमें जो, निज लक्ष्य से मिलाता।।

है संविधान घर का, सच राह पर चलाता।

वो शब्द है न कविता, हर ग्रंथ से बड़ा है ।

दुनिया शुरू वहीं से, जिस पथ पिता खड़ा है।।


◆◆◆◆◆◆


दिगपाल छंद / मृदुगति छंद विधान


दिगपाल छंद जो कि मृदुगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2212 122, 2212 122


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

●●●●●●●●


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, June 14, 2022

मदनाग छंद, 'साइकिल

मदनाग छंद, 

'साइकिल'


सवारी जो प्रथम हमको मिली, सबसे प्यारी।

गुणों की खान ये है साइकिल, लगती न्यारी।।

बना कर संतुलन अपना सही, इस पर बैठें।

बड़े छोटे चलाते सब इसे, खुद में ऐठें।।


सुलभ व्यायाम करवाती चले, आलस हरती।

न फैलाती प्रदूषण साइकिल, फुर्ती भरती।।

खुला आकाश, ठंडी सी हवा, पैडल मारो।

गिरो भी तो उठो आगे बढो, कुछ ना धारो।।


भगाती दूर रोगों को कई, दुख हर लेती।

बढ़ाकर रक्त के संचार को, सेहत देती।।

इसी से आत्मनिर्भरता बढ़े, बढ़ते जाओ।

नवल सोपान पर उन्मुक्त हो, चढ़ते जाओ।।


बजा घंटी हटाओ भीड़ को, राह बनाओ।

बना कर लक्ष्य जीवन में बढो, सीख सिखाओ।।

न घबरा कर कभी भी भीड़ से, थमो न राही।

सवारी साइकिल की कर बनो, 'शुचि' उत्साही।।

●●●●●●●●●

मदनाग छंद विधान-

मदनाग छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 17-8 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


1222 1222 12, 222S = (मदनाग) = 17+8 = 25 मात्रायें।

दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

अंत में गुरु (2) अनिवार्य है।

◆◆◆◆◆◆◆◆

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Wednesday, June 8, 2022

सुगीतिका छंद, 'मेरे लाल'

 सुगीतिका छंद,

 'मेरे लाल'


लिये खड़ी शुभकामना का, मैं सजाकर थाल।

घड़ी-घड़ी आशीष दूँ यह, तू जिये सौ साल।।

निहाल हूँ पाकर तुम्हे मैं, इस जनम में लाल।

न आँच तुम पर आ सकेगी, हूँ तुम्हारी ढाल।।


तुम्हे बधाई जन्मदिन की, स्वप्न हो साकार।

मिले तुम्हें ऐश्वर्य, खुशियाँ, प्रेम का उपहार।।

नवीन ऊर्जा, स्वस्थ काया, सूर्य सा हो तेज।

सदैव फूलों सी महकती, हो तुम्हारी सेज।।


जड़ें प्रतिष्ठा की बढ़े पर, हो नियत अति नेक।

हृदय सुसेवा, शौर्य जागे, सुप्त हो अविवेक।।

उमंग नित परमार्थ की हो, प्रेरणा हो पास।

भरा रखो हर क्षेत्र में तुम, कार्य का उल्लास।।


रहे बरसती प्रभु कृपा नित, शुद्ध हो आचार।

भरा रहे भंडार धन का, लक्ष्य हो उपकार।।

हँसो हँसाओ प्रेम बाँटो, उच्च यह व्यवहार।

सदा पनपते ही रहे 'शुचि', श्रेष्ठ अति सुविचार।।

◆◆◆◆◆◆◆◆

सुगीतिका छंद विधान-


सुगीतिका छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 15-10 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


1 2122*2, 2122 21 = (सुगीतिका) = 15+10 = 25 मात्रा।


दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

●●●●●●●●●

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Featured Post

शुद्ध गीता छंद, "गंगा घाट"

 शुद्ध गीता छंद-  "गंगा घाट" घाट गंगा का निहारूँ, देखकर मैं आर पार। पुण्य सलिला, श्वेतवर्णा, जगमगाती स्वच्छ धार।। चमचमाती रेणुका क...