दिगपाल / मृदुगति छंद,
'पिता'
हारा नहीं कभी जो, रुकना न सीख पाया।
संतान को सदा ही, बन वह पिता सजाया।।
वो बीज सृष्टि का है, संसार रचयिता है।
रिश्ते अनेक जग में, लेकिन पिता पिता है।।
अँगुली पकड़ चलाया, काँधे कभी बिठाया।
चलते जिधर गये हम, पाया सदैव साया।।
तकिया बनी भुजाएँ, छाती नरम बिछौना।
घोड़ा कभी बना वो, हँसकर नया खिलौना।।
वो साँझ की प्रतीक्षा, वो ही खिला सवेरा।
उसके बिना न संभव, खुशियों भरा बसेरा।।
उम्मीद पूर्ण दीपक, विश्वास का कवच है।
संबल मिला उसी से, वो स्वप्न एक सच है।।
परिवार की प्रतिष्ठा, तम का करे उजारा।
मोती अलग-अलग हम, धागा पिता हमारा।।
वो नील नभ वही भू, वो सख्त भी नरम है।
संसार के सुखों का, होता पिता चरम है।।
वो है पिता हमें जो, निज लक्ष्य से मिलाता।।
है संविधान घर का, सच राह पर चलाता।
वो शब्द है न कविता, हर ग्रंथ से बड़ा है ।
दुनिया शुरू वहीं से, जिस पथ पिता खड़ा है।।
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दिगपाल छंद / मृदुगति छंद विधान
दिगपाल छंद जो कि मृदुगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2212 122, 2212 122
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।
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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
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