Monday, November 15, 2021

खरारी छंद "जलियाँवाला बाग"

  खरारी छंद 

"जलियाँवाला बाग"


उस माटी का, तिलक लगा, जिसमें खुश्बू, आजादी की है।

जलियाँवाला, बाग जहाँ, हुंकारें अरि, बर्बादी की है।।

देखी जग ने, कायरता, हत्या की थी, निर्मम गोरों ने।

उत्पीड़न भय, हिंसा की, तस्वीरें तब, देखी ओरों ने।।


था कायर वो, हत्यारा, डायर जिसने, यह कांड किया था।

आकस्मक आ, खूनी ने, मासूमों को, झट मार दिया था।।

घन-घन चलती, गोली में, कंपित चीखें, चित्कार भरी थी।

बच्चे, बूढ़े, नर-नारी, भोली जनता, तब खूब मरी थी।।


मत पूछो तब, भारत के, लोगों का यह, जीवन कैसा था।

अंग्रेजों का, शासन ज्यूँ, अंगारों पर, चलने जैसा था।

उखड़ेगी कब, अंग्रेजी, शासन की जड़, सबके मन में था।

आक्रोश जोश, बदले का, भाव समाहित, हर जन जन में था।।


अंग्रेजों की, सत्ता को, हिलवाने में, जो बना सहायक।

जलियाँवाला, अति जघन्य, कांड बना था, तब उत्तर दायक।।

ज्वाला फूटी, वीरों में, अंगारे से, आँखों में आये।

आजादी के, बादल तब, भारत भू पर, लहरा कर छाये।।

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खरारी छंद विधान -


खरारी छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 8, 6, 8, 10 मात्राओं पर यति आवश्यक है। चार चरणों के इस छंद में दो दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2 222, 222, 2222, 2 2222

पहली यति द्विकल (2,11) + छक्कल (3+3 या 4+2 या 2+4)

दूसरी यति छक्कल।

तीसरी यति अठकल।

चौथी यति द्विकल (2,11) + अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Sunday, November 14, 2021

पद्मावती छंद "दीपोत्सव"

 पद्मावती छंद 

 "दीपोत्सव" 

 

दीपोत्सव बीता, पर्व पुनीता, जो खुशियाँ लेकर आया।

आनंदित मन का, अपनेपन का, उजियारा जग में छाया।।

शुभ मंगलदायक, अति सुखदायक, त्योंहारों के रस न्यारे।

उत्सव ये सारे, बने हमारे, जीवन के गहने प्यारे।।


मन का तम हरती, रोशन करती, रौनक जीवन में लाती।

जगमग दीवाली, दे खुशहाली, धरती को अति सरसाती।।

लक्ष्मी घर आती, चाव चढ़ाती, नव जीवन फिर मिलता है।

आनंद कोष का, नवल जोश का, शुचि प्रसून सा खिलता है।।


मानव चित चंचल, प्रेम दृगंचल, उत्सवधर्मी होता है।

सुख नव नित चाहे, मन लहराये, बीज खुशी के बोता है।।

पल आते रहते, जाते रहते, अद्भुत जग की माया है।

जब दुख जाता है, सुख आता है, धूप बाद ही छाया है।।


दीपक से सीखा, त्याग सरीखा, जीवन पर सुखदायी हो।

सब अंधकार की, दुराचार की, मन से सदा विदायी हो।।

रख हरदम आशा, छोड़ निराशा, पर्वों से हमने जाना।

सुखमय दीवाली, फिर खुशहाली, आएगी हमने माना।।

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पद्मावती छंद विधान-


पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति आवश्यक है। 

प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है।

चार चरणों के इस छंद में दो दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

द्विकल + अठकल, अठकल, अठकल + चौकल + दीर्घ वर्ण (S)

2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Wednesday, November 10, 2021

'चुलियाला छंद' "मृदु वाणी"

  'चुलियाला छंद'

   "मृदु वाणी"


शब्दों के व्यवहार का, जिसने सीखा ज्ञान सुखी वह।

वाणी कटुता से भरी, जो बोले है घोर दुखी 

वह।।


होता यदि अन्याय हो, कायर बनकर कष्ट सहो मत।

हँसकर कहना सीखिये, कटु वाणी के शब्द कहो मत।।


औषध करती है भला, होते कड़वे घूँट सहायक।

अंतर्मन निर्मल करे, निंदक होते ज्ञान प्रदायक।।


मृदुवाणी अनमोल है, संचित जो यह कोष करे नर।

सुख ओरों को भी मिले, अनुपम धन से खूब भरे घर।।


कर्कश भाषा क्रोध की, सर्व विनाशक बाण चला मत।

हृदय बेन्ध पर मन करे, पल भर में ही पूर्ण हताहत।।

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चुलियाला छंद विधान -


चुलियाला छंद एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है जिसके प्रति पद में 29 मात्रा होती है। प्रत्येक पद 13, 16 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। चुलियाला छंद के दो भेद मिलते हैं। चुलियाला छंद दोहा छंद से विनर्मित होता है। 


प्रथम भेद दोहे के जैसा ही एक द्वि पदी छंद होता है। यह दोहे के अंत में 1211 ये पाँच मात्राएँ जुड़ने से बनता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है -

2222 212, 2222 21 1211 =  (चुलियाला) = 13, 8-21-1211 = 29 मात्रा।


दूसरा भेद चतुष पदी छंद होता है। यह दोहे के अंत में 1SS (यगण) ये पाँच मात्राएं जुड़ने से बनता है। इसके पदांत में सदैव दो दीर्घ वर्ण आते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है -

2222 212, 2222 21 1SS =  (चुलियाला) = 13, 8-21 1+गुरु+गुरु = 29 मात्रा।


उदाहरण-


"मूक पुकारे कोख में, कहती माँ से मोहि बचाओ।

हत्या मेरी रोकलो, लीला माँ तुम आज रचाओ।।

तुम मेरी भगवान हो, जीवन का हो एक सहारा।

हत्यारों के हाथ पर, करो वार तुम एक करारा।।"

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, November 9, 2021

सुमंत छंद "बरसो मेघा"

 सुमंत छंद 

"बरसो मेघा"

      

धरती सारी बाट, देखती हारी।

गर्मी से बेहाल, हुई है भारी।।

उमड़े घन को देख, सभी हरषाये।

ऐसा बरसो चैन, धरा पा जाये।।


वन उपवन भी शुष्क, हुये हैं आओ।

उमड़-घुमड़ कर मेघ, व्योम पर छाओ।।

नदियों का जल वाष्प, बना है सारा।

तुम सूरज का आज, उतारो पारा।।


खलिहानों का सूख, गया है पानी।

खेतों में फिर रंग, चढ़ा दो धानी।।

हरित दुशाला ओढ़, धरा सज जाये।

फूटे अंकुर मेघ, अगर तू आये।।


हे श्यामल घन नीर, धार बरसाओ।

जीवन में उल्लास, नवल भर जाओ।।

व्याकुल वसुधा तृप्त, होय इठलाये।

मधुर सलोने प्रेम, गीत फिर गाये।।

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सुमंत छंद विधान-


सुमंत छंद बीस मात्रा प्रति पद का मात्रिक छंद  है। 

छंद के 11 मात्रिक प्रथम चरण की मात्रा बाँट ठीक दोहे के सम चरण वाली यानी अठकल + ताल (21) है। 

अठकल में 4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।

9 मात्रिक द्वितीय चरण की मात्रा बाँट 3 + 2 + गुरु गुरु (S S)है। 

त्रिकल में 21, 12, 111 तीनों रूप, द्विकल के 2, 11 दोनों रूप मान्य हैं। 

पदांत में दो गुरु का होना अनिवार्य है।

दो दो पद समतुकांत होने चाहिए।

मात्रा विन्यास-

2222 21, 3 2SS   = (सुमंत) = 11+9 = 20 मात्रा।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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