Tuesday, November 9, 2021

सुमंत छंद "बरसो मेघा"

 सुमंत छंद 

"बरसो मेघा"

      

धरती सारी बाट, देखती हारी।

गर्मी से बेहाल, हुई है भारी।।

उमड़े घन को देख, सभी हरषाये।

ऐसा बरसो चैन, धरा पा जाये।।


वन उपवन भी शुष्क, हुये हैं आओ।

उमड़-घुमड़ कर मेघ, व्योम पर छाओ।।

नदियों का जल वाष्प, बना है सारा।

तुम सूरज का आज, उतारो पारा।।


खलिहानों का सूख, गया है पानी।

खेतों में फिर रंग, चढ़ा दो धानी।।

हरित दुशाला ओढ़, धरा सज जाये।

फूटे अंकुर मेघ, अगर तू आये।।


हे श्यामल घन नीर, धार बरसाओ।

जीवन में उल्लास, नवल भर जाओ।।

व्याकुल वसुधा तृप्त, होय इठलाये।

मधुर सलोने प्रेम, गीत फिर गाये।।

◆◆◆◆◆◆◆

सुमंत छंद विधान-


सुमंत छंद बीस मात्रा प्रति पद का मात्रिक छंद  है। 

छंद के 11 मात्रिक प्रथम चरण की मात्रा बाँट ठीक दोहे के सम चरण वाली यानी अठकल + ताल (21) है। 

अठकल में 4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।

9 मात्रिक द्वितीय चरण की मात्रा बाँट 3 + 2 + गुरु गुरु (S S)है। 

त्रिकल में 21, 12, 111 तीनों रूप, द्विकल के 2, 11 दोनों रूप मान्य हैं। 

पदांत में दो गुरु का होना अनिवार्य है।

दो दो पद समतुकांत होने चाहिए।

मात्रा विन्यास-

2222 21, 3 2SS   = (सुमंत) = 11+9 = 20 मात्रा।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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