Thursday, April 29, 2021

पञ्चचामर छन्द,हनुमान वंदना



उपासना करें सभी,महाबली कपीश की,

विराट दिव्य रूप की,दयानिधान ईश की।

कराल काल जाल से, प्रभो  उबार लीजिये,

अपार भक्ति दान की,कृपा सदैव कीजिये।


प्रदीप्त बाल सूर्य को,मुखारविंद में लिया,

पराक्रमी अबोध ने,डरा सुरेन्द्र को दिया।

किया प्रहार इंद्र ने,अचेत केशरी हुये,

प्रकोप वायु देव का,अधीर देवता हुये।


प्रसंग राम भक्त के,अतुल्य हैं,महान हैं,

विशुद्ध धर्म-कर्म के,अनेक ही बखान हैं।

अजेय शौर्य भक्ति का,प्रतीक आप ही बने,

प्रबुद्ध ज्ञान आपमें,समृद्ध धाम हैं घने।


मृदंग-शंखनाद ले,सुकंठ प्रार्थना करें,

विभोर भव्य आरती,अखण्ड दीप को धरें।

नमो नमामि वंदना,विराजमान आप हों,

सुबुद्धि,ज्ञान,शक्ति दें,अखंड नाम-जाप हों।

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पञ्चचामर छन्द विधान-

यह चार चरणों का वर्णिक छन्द है।इसका शिल्प विधान निम्न है-

लघु गुरु×8=16 वर्ण।

8+8 पर यति रखना आवश्यक है। चार या दो-दो चरण समतुकांत होते हैं।

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शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया,असम


Wednesday, April 28, 2021

लावणी छंद, 'यादों की देवी'

मन मंदिर की चौखट पर ही,यादों की देवी रहती।

कभी हँसाती कभी रुलाती,जीवन के सुख-दुख कहती।।


रेतीले बचपन की लौरी, माँ बनकर वह गाती है।

दादी की लाठी की आहट,आँगन में सुनवाती है।।


गुड्डे-गुड़ियों के दिन प्यारे,छवि फिर से दिखने लगती।

मैं यादों की सोनपरी सँग, रात-रात भर हूँ जगती।।


बड़-पीपल की छाँव घनेरी,यादों की रानी लाई।

यौवन की मृदु चंचलता को,देख तनिक मैं शरमाई।।


मेरे गीतों के सुर साधक,प्रीतम मधुरिम यादों के।

मजबूरी थी मिलन कि या फिर,तुम झूठे थे वादों के।


भँवरे ने था फूल खिलाया,जिसे चुरा ले गया कोई।

यादों की देवी के प्यारे,जो होनी सो ही होई।


कंटक वन देवी बनकर वो,शूल चुभाया भी करती। 

मेरी आँखों में आँसू बन,झर-झर मुझ पर ही झरती।।


सुता शारदे की भी लगती,लगूँ बावली बूच कभी।

जीवन के लम्हे सतरंगी,बसे याद की गोद सभी।


हे यादों की रक्षक देवी,दुख क्यूँ याद कराती हो?

हार-हार कर मैं जीती हूँ, फिर क्यूँ मुझे हराती हो?


प्रौढ़ हुई पर बचपन यौवन,हँसकर ह्रदय लिपटता है।

हे फूलों की देवी तुझमें,जीवन सार सिमटता है।।


शुचि वंदन तेरे चरणों में,वास सदा अपना रखना।

जीवन के खट्टे-मीठे से,अनुभव सारे ही चखना।।


डॉ. शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"

तिनसुकिया, असम




लावणी छंद,हास्य मुक्तक"

बेग़म बोली शौहर से मत निकलो बेनकाब घर से,

दो गज की दूरी में रहना वधु बोली अपने वर से।

महिलाएं आदी सदियों से,पुरुषों को अब सिखा रही,

भेदभाव सारे ही टूटे, कोरोना के ही डर से।


डॉ.शुचिता अग्रवाल'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, April 27, 2021

'होली बधाई'

1.

ज्यूँ होली सात रंगों की,रहे जीवन ये सतरंगी।

रहे उल्लास जीवन में,रहे रिश्ते सभी रंगी।

सभी खुशियों को लेकर के,ये होली आज आई है,

हमारी ओर से सबको,बधाई ही बधाई है।

2.

है बचपन की शरारत ये,कि यौवन की है अल्हड़ता,

भिगोदे सबको खुशियों से,है पिचकारी में ये क्षमता।

यूँ ही हँसते सदा रहना,निरोगी स्वस्थ काया हो,

मिले सातों ही सुख हरदम,रहे भरपूर माया हो।

रहे भगवान की किरपा,उन्हीं की छत्रछाया हो।

3.

है जितने रंग खुशियों के,लगादूँ आपको सारे,

मेरा मन ही ये जाने बस,कि कितने आप हो प्यारे,

है होली तो बहाना इक, दुआएं रोज देती हूं...

सभी खुशियाँ हों दामन में,प्रभु से माँग लेती हूँ।

4.

सजी धरती ये दुल्हन सी,

लगे अम्बर दिवाना सा।

लगे राधा सी तू बिटिया,

कि कान्हा संग सी जोड़ी।

मिले भरपूर सुख तुमको,

लगे हर दिन ही होली सा।

नई खुशियों का हर दिन ही,

मिले तुमको पिटारा सा।

5.

लाल रंग की चूनड़ी,गुलाबी हो श्रृंगार,

हरे घाघरे में जड़े, सोन रंग के तार,

चेहरा चाँदी जैसा तेरा,काले तेरे बाल,

तुझे सजाने सब रंग लाया,होली का त्योंहार।


डॉ. शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम



'दूल्हे -राजा'

दुल्हे राजा सजधज घोड़ी पर आये,
दुल्हन तिरछी नजरें कर क्यूँ शरमाये।

तोरण मार करे प्रवेश बड़े भागी,
गल वरमाला की आभा हिय में जागी।
नाच रहे बाराती घोड़ी के आगे,
भाई-बन्धु,चाचा-मामा जो लागे।
मंगलगान खुशी से बहनें सब गाये,
समधी-समधन देखो कितना हरषाये।
दुल्हे राजा सजधज घोड़ी पर आये,
दुल्हन तिरछी नजरें कर क्यूँ शरमाये।

फूलों की बरसात गगन से होती है,
भीगी आँखों के आँसू सब मोती है।
प्यारी साली नजर उतारण आयी है,
भाभी काजल नीमझड़ी झड़कायी है।
लाख दुआओं की सौगातें सब लाये,
मंगल सारे काज खुशी वर-वधु पाये
दुल्हे राजा सजधज घोड़ी पर आये,
दुल्हन तिरछी नजरें कर क्यूँ शरमाये।

#स्वरचित
डॉ.शुचिता अग्रवाल, 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, आसाम

(विधान-22 22 22 22 22 2)


विष्णुपद छंद 'मंजिल पाएंगे'

विष्णुपद छंद 'मंजिल पाएंगे'


आगे हरदम बढ़ने का हम, लक्ष्य बनायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।

नवल सपन आँखों में लेकर, हम सोपान चढ़ें।
कायरता की तोड़ हथकड़ी, हम निर्भीक बढ़ें।।
जोश भरे कदमों की आहट, सकल विश्व सुनले।
मानवता की रक्षा के हित, नेक राह चुनले।।
विश्व शांति के लिए साथ हम, दौड़ लगायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।

भारत का इतिहास सुनहरा, वीर सपूतों का।
राष्ट्रप्रेम जिन माताओं में, उनके पूतों का।।
वही रक्त नस-नस में सबके, अब भी भरा हुआ।
ले मशाल उठ बढ़ तू आगे, क्यूँ है डरा हुआ?
सबसे ऊँचा झंडा अपना, हम फहरायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में,मंजिल पायेंगे।।

आजादी की कीमत हमने, पुरखों से जानी।
होता मेहनत का फल मीठा, बात सत्य मानी।।
कथनी करनी एक बनाकर, अडिग लक्ष्य चुनलें।
हम कर सकते,करना हमको, शुचि मन की सुनलें।।
नहीं किया जो काम किसी ने, हम कर जायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।



शुचिता अग्रवाल,"शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
Suchisandeep2010@gmail.com
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विष्णुपद छन्द विधान-

विष्णु पद छन्द सम मात्रिक छन्द है। यह  26 मात्राओं का छन्द है जिसमें 16,10 मात्राओं पर यति आवश्यक है।, अंत में वाचिक भार 2 यानि गुरु का होना अनिवार्य है।कुल चार चरण होते हैं क्रमागत दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।
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शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम






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