विराट दिव्य रूप की,दयानिधान ईश की।
कराल काल जाल से, प्रभो उबार लीजिये,
अपार भक्ति दान की,कृपा सदैव कीजिये।
प्रदीप्त बाल सूर्य को,मुखारविंद में लिया,
पराक्रमी अबोध ने,डरा सुरेन्द्र को दिया।
किया प्रहार इंद्र ने,अचेत केशरी हुये,
प्रकोप वायु देव का,अधीर देवता हुये।
प्रसंग राम भक्त के,अतुल्य हैं,महान हैं,
विशुद्ध धर्म-कर्म के,अनेक ही बखान हैं।
अजेय शौर्य भक्ति का,प्रतीक आप ही बने,
प्रबुद्ध ज्ञान आपमें,समृद्ध धाम हैं घने।
मृदंग-शंखनाद ले,सुकंठ प्रार्थना करें,
विभोर भव्य आरती,अखण्ड दीप को धरें।
नमो नमामि वंदना,विराजमान आप हों,
सुबुद्धि,ज्ञान,शक्ति दें,अखंड नाम-जाप हों।
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पञ्चचामर छन्द विधान-
यह चार चरणों का वर्णिक छन्द है।इसका शिल्प विधान निम्न है-
लघु गुरु×8=16 वर्ण।
8+8 पर यति रखना आवश्यक है। चार या दो-दो चरण समतुकांत होते हैं।
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शुचिता अग्रवाल,'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया,असम
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