Sunday, May 2, 2021

विष्णुपद छन्द, 'फूल मोगरे के'

विष्णुपद छन्द,'फूल मोगरे के'


आँगन में झर-झर गिरते थे,फूल मोगरे के,

याद बहुत आते हैं वो दिन,पागल भँवरे के।


सुन्दर तितली आँखमिचौली,भँवरे से करती,

व्याकुल थी पर आँगन में वो,आने से डरती।


करदे जो मदहोश सभी को,खुश्बू न्यारी सी,

प्रेम हिलौर हृदय में उठती,अद्भुत प्यारी सी।


पुष्प ओस की बूँदें पाकर,झूम-झूम जाता,

अल्हड़ गौरी की बैणी पा,खुद पर इतराता।


खिले फूल सुरभित अति कोमल,धवल रूप धारे,

नई उमंगों में भर उठते,मुरझे मन सारे।


सुखद समीर सुगन्ध बिखेरे,खुशियाँ भर लाती,

'शुचि' मनमंदिर प्रेम तरंगें,प्रणय गीत गाती।

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विष्णु पद छन्द विधान-

विष्णु पद छन्द सम मात्रिक छन्द है। यह  26 मात्राओं का छन्द है जिसमें 16,10 मात्राओं पर यति आवश्यक है।, अंत में वाचिक भार 2 यानि गुरु का होना अनिवार्य है।कुल चार चरण होते हैं क्रमागत दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।

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शुचिताअग्रवाल,'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया,असम


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