मन में खयाल आते ही जिनका,
होठों पर मुस्कान आ जाती है।
छोड़ गई जो उम्र हमें,
पल भर में फिर लौट आती है।
बचपन बिन सहारे उनके
दो कदम नहीं चल सकता ।
अटूट रिश्तों का सागर ये,
किसी मोड़ पर नहीं रुकता।
दोस्त थे तो बचपन था......
दोस्त है तो जवानी है......
दोस्त रहेंगे तो.....बुढापा आ ही नहीं सकता।
डॉ.शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"
सुंदर!!!
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