कुकुभ छंद
"शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय"
जब-जब दुष्ट बढ़े धरती पर, सुख कोने में रोता है।
युग उन्नायक कलम हाथ में, लेकर पैदा होता है।।
सन् अट्ठारह सौ छिय्यत्तर, जन्म शरद ने था पाया।
मोतीलाल पिता थे उनके, भुवनमोहिनी ने जाया।।
जब पीड़ा वंचित समाज की, अपने सिर को धुनती थी।
मूक चीख तब नारी मन की, शरद लेखनी सुनती थी।।
जाति-पाँति का भेदभाव भी, विचलित उनको करता था।
सबसे ऊँची मानवता है, मन में भाव उभरता था।।
घोर विरोध समाज किया जब, ग्रंथ 'चरित्र हीन' आया।
बने शिकार ब्रिटिश सत्ता के, जब 'पथेर दावी' छाया।।
ख्याति मिली रच 'निष्कृति', 'शुभदा', 'देवदास' अरु 'परिणीता'।
'चन्द्र नाथ', 'पल्ली समाज' रच, 'दत्ता' से जन-मन जीता।।
पर उपकार किया लेखन से, लेखन पर जीवन वारा।
पुनर्जागरण आंदोलन से, जन-मानस जीवन तारा।।
ऐसे नायक युगों-युगों तक, प्रेरित सबको करते हैं।
धन्य-धन्य ऐसे युग मानव, पर हित में जो मरते हैं।।
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कुकुभ छंद विधान -
कुकुभ छंद सम-मात्रिक छंद है। इस चार पदों के छंद में प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद 16 और 14 मात्रा के दो चरणों में बंटा हुआ रहता है। विषम चरण 16 मात्राओं का और सम चरण 14 मात्राओं का होता है। दो-दो पद की तुकान्तता का नियम है।
16 मात्रिक वाले चरण का विधान और मात्रा बाँट ठीक चौपाई छंद वाला है। 14 मात्रिक चरण की अंतिम 4 मात्रा सदैव 2 गुरु (SS) होती हैं तथा बची हुई 10 मात्राएँ अठकल + द्विकल होती हैं। । अठकल में दो चौकल या त्रिकल + त्रिकल + द्विकल हो सकता है।
त्रिकल में 21, 12 या 111 तथा
द्विकल में 11 या 2 (दीर्घ) रखा जा सकता है।
चौकल और अठकल के सभी नियम लागू होंगे।
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तिनसुकिया, असम
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