मन की बात

"काव्यकृति "मन की बात"देश के विभिन्न साहित्यकारों की नजर में"
(१)
*पुस्तक समीक्षा*
कृति:- "मन की बात"
कवयित्री:- सुचिता अग्रवाल'सुचि संदीप'
पृष्ठ:- 88
प्रकाशक:-ग्रामोदय प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य:- 200₹
समीक्षक:-राजेश कुमार शर्मा 'पुरोहित'
कवि एवं साहित्यकार

                कवयित्री सुचिता अग्रवाल का काव्य संकलन "मन की बात" में कुल 55 कविताएं है। अधिकांश कविताएं छंद मुक्त लिखी गयी है। अग्रवाल ने अपनी कविताओं में भारतीय संस्कृति,परम्परा,पारिवरिक सम्बन्ध,रिश्तों की सच्चाई,देश प्रेम,कौमी एकता,नारी सशक्तिकरण,देश के प्रति स्वदेशी प्रेम के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर अपनी कलम चलाई है।
          साहित्य संगम संस्थान तिनसुकिया असम शाखा की सचिव अग्रवाल ने संस्थान से जुड़कर विगत वर्षों में पारम्परिक छंदों में लिखने का अभ्यास किया। प्रस्तुत कृति में विधाता छंद की रचनाएं लिख कर साहित्य के क्षेत्र में पारंगत होने का प्रमाण दे दिया है। उन्होंने दोहे शीर्षक के अंतर्गत 27 दोहे लिखे जिनकी बानगी देखिये- 'भूख लगी है ज्ञान की,बुझे नहीं है प्यास।
ज्यों पानी के बून्द की,मरु धरा को आस'।।
जिस प्रकार रेगिस्तान में व्यक्ति पानी के लिये तरसता हैं उसी प्रकार की ज्ञान प्राप्त करने की तड़प हमें रखना चाहिए।
            देश प्रेम से ओत प्रोत उनकी रचना की कुछ पंक्तियाँ- आओ हम सब दीप जलाएं,पावन यह त्योहार है।
देश की मिट्टी सर्वोपरि है, हमको इससे प्यार है।।
चल उड़ पंछी शीर्षक से उन्होंने कौमी एकता पर आधारित रचना में सर्व धर्म समभाव की बात कही। ना जानूँ मैं हिन्दू मुस्लिम, ना जानूँ सिख ईसाई।
दाने कोई देता है तो,करता कोई पानी की भरपाई।।
अंतिम शब्द कविता में व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की और ले जाने का दिव्य सन्देश दिया है। हमारे वेदों में भी असतो मां सद्गमय। तमसो मां ज्योतिर्गमय।। कहा गया है। वह लिखती है- ले चलो रोशनी में मुझे,अब अंधेरों से डर लगता है।
दिखा दो कोई महफ़िल की रौनक,अब तन्हाई से डर लगता है।।
व्यक्ति एकाकी रहने के बाद सबके साथ रहने का आनंद रूपी सुख भोगता है। नई पड़ोसन कविता स्वच्छता पर आधारित सामयिक लगी।अलविदा रचना में कवयित्री ने समाज में व्याप्त हिंसा, आतंकवाद,कुकृत्य जैसी घटनाओं पर पैनी कलम चलाई है। वह कहती है- क्या खूब क़त्ल तुम हर रोज़ कर रहे हो,न शक की कोई गुंजाइश न सबूत छोड़ रहे हो।ए मेरे हमसफ़र बस ख़ौफ़ के खंज़र हर रोज़ घोंप रहे हो।।
हास्य रचना 'मेरा हमसफ़र मोबाइल' में कवयित्री ने दिन रात व्यस्त रहने वाले लोगों पर बेबाक टिप्पणी करते हुए हास्य परोसा है ,साथ ही मोबाइल से होने वाली बातों पर हास्य लिखने का प्रयास किया है। क्या कहूँ मेरे हमसफ़र मोबाइल,तुझमें हर रिश्ते सिमटने लगे।
बच्चे और पति भी अब तो तुझमें ही नज़र आने लगे।।
पापा की गोद कविता में पिताजी के त्याग ,समर्पण व संघर्ष को अभिव्यक्त किया है। क्षमा करें मुझे काव्य रचना में गरीबी,लाचारी,भूखमरी जैसे मुद्दों पर आवाज़ बुलंद की है। कविता नया ये साल आया है में वह लिखती है नये सपने नई राहें नया ये साल आया है। हमारे देश में बदलाव का ये दौर आया है। देश में विगत वर्षों में हुए द्रुतगामी विकास को परिभाषित करने का सार्थक प्रयास किया है। शक्ति आव्हान कविता में उन्होंने लिखा 'हे माँ तेरी शक्ति के आगे ब्रह्मांड पूरा नत मस्तक है। नारी शक्ति का प्रतीक तुम ही हो गौरान्वित नारी तुमसे ही है।रचना में नारी सशक्तिकरण पर प्रकाश डाला गया है। रिश्ते कविता में वह लिखती है- आफत के रिश्ते बन जाते है,जीवन भर ढोते है हम। मन की जहां नहीं हुई तो चुगली करते रोते है हम।। रचना में रिश्तों की खींचा-तानी व अपनत्व की भावना में कमी को दर्शाती है। प्रतीक्षा कविता में वह लिखती है खुशियों में आने की प्रतीक्षा रहती है तो गमों का भय सताता है। खुशी,हर्ष और उमंग लाती है तो गम रुला कर जाता है। जीवन में खुशियों के रंग कब गमों में बदल जाये पता नही चलता। प्रस्तुत रचना बहुत ही सुंदर बन गयी।
          हुई फिर देश में हिंसा इस कृति की उत्कृष्ट रचना है,जिसमे कवयित्री लिखती है-" शराफ़त के मुखोटों में दरिंदे लाख बैठे है। इशारों पर भभक उठता, शहर सारा वतन देखो"।।और "करे चीत्कार मांगे न्याय,जो निर्दोष थे बन्दे। भटकती रूह रो रोकर, करे फ़रियाद सब देखो"।। दोनों शेर उम्दा है। कवयित्री ने आज के दौर में देश में व्याप्त हिंसा,आतंकवाद को शब्दों में ढालने का प्रयास किया है।
           प्रस्तुत काव्य संकलन में कविताओं की भाषा सीधी सरल एवं बोधगम्य है। मां का उद्गार ,पुत्र सौगात,चल उड़ पंछी,असम है मेरा सनम,गज वदन नमन,नहीं व्यर्थ गवाओ जीवन को,मनो व्यथा नारी की,बाबू जी आपकी याद में,अंतर्वेदना,एक चिड़िया की सोच,दिलों के घाव,प्रार्थना,वो गुज़रा ज़माना,मिले चार दिवस जैसी रचनाएं भी महत्वपूर्ण है।
साहित्य जगत में "मन की बात" कृति से कवयित्री सुचि संदीप अपनी पहचान बनाएगी ,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अनंत बधाई

(२)

डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव अर्णव
सीहोर (मध्य प्रदेश)
प्रबंध संपादक , साहित्य संगम संस्थान।

मन की बात कवियित्री सुचि संदीप का ऐसा काव्यसंग्रह हैं जिसमें जीवन के अनेक रंग कविता के रूप में इंद्रधनुषी छटा बिखेरते हैं । मानवीय संवेदना के साथ रिश्तों की खूबसूरती को कागज के कैनवास पर उतार देना उनकी लेखनी की अमिट छाप छोड़ जाता है ।
गजवदन नमन में उनकी भावनाएं बिना किसी मात्रा या संयुक्त अक्षर के भी अपने भाव स्पष्ट करने में सफल रही हैं । असम है मेरा सनम में अपने प्रदेश की माटी के गौरव का गान है । वहीं होली आई है एक खूबसूरत संदेश देती है
*फिर से मानव ,मानव बन जाये*
*और कह सकें हम*
*आपसी प्रेम और मिलन का त्योहार*
*होली आई है*
मानवीय रिश्तों की अपरिमित खूबसूरती और भावनाओं का असीम स्नेह बहन की चिट्ठी भाई के नाम , बलम तू आजा ,मैँ वल्लरी तेरे चरणों की , आधुनिक बच्चे ,पिता की वेदना ,पापा की गोद में , रिश्ते ,आई में दुल्हनियां बनकर ,माँ के उदगार ,दोस्ती में कोई कमी थी क्या और बाबूजी आपकी याद में इस काव्यसंग्रह के अद्वितीय दस्तावेज हैं , जिसमें भावों का महासागर रचने में कवियित्री सफल रही है । मानवता सिसक रही है में उनका आकलन अद्भुत है और वह कह उठती हैं
*इंसानों की भीड़ में , दरिंदों की कोई कमी नहीं । संस्कारों की भेंट चढ़ाकर , घर अपना लुटा लिया है ।मानवता सिसक रही है । हैवानियत हंस रही है ।*
नमनगुरु को , देशप्रेम , प्रार्थना , फैशन ,इंसानियत ,शक्ति आव्हान ,अंतिम शब्द ,प्रतीक्षा , अन्तरपीडा , अंतर्वेदना ,दौलत एक नशा ,मिले चार दिवस ,दिलों के घाव ,आओ हम नफरत करें उनकी काव्ययात्रा को जीवंत करते हैं ।चल उड़ पंक्षी , पुत्रसौगात , अनमोल पल ,माँ गंगा प्रार्थना , क्षमा करें मुझे , एक चिड़िया की सोच ,सीमा पर सैनिक की दास्ताँ सब उनके सृजन की विषयवस्तु हैं ।
हिंदी के सम्मान की बात हो या नया ये साल आया है सब उनकी सामयिक सोच का जादू है । दीवाली पर आओ हम सब दीप जलाएं का उदघोष है तो नेत्रदान कर दो सामाजिक चेतना का आव्हान है ।वही क्रोध एक घातक प्रवृत्ति मानव मन की संवेदना साकार करती है । हुई फिर देश में हिंसा उनकी चिंता को परिलक्षित करती है ।
मनोव्यथा नारी की के साथ उनके जहन में पत्नियों के आम सवाल भी घूमते हैं ।मेरा हमसफ़र मोबाइल और नई पड़ोसन नारी सुलभ ईर्ष्या की केंद्रबिंदु हैं जिस पर हास्य का आवरण चढ़ाकर अभिव्यक्ति को सार्थकता प्रदान की गई है
*पड़ोसन अच्छी मिलना भी , बड़े तकदीर की बात होती है । मनभावन नई पड़ोसन, सबके नसीब में कहां होती है ।* उनकी ये पंक्तियां पुरुष समाज की वेदना को अनजाने में रेखांकित कर जाती हैं ।
जाना नहीं लाला छोड़ हमें एक भावना को मूर्त रूप देती है वहीं नई सोच नया सवेरा एक नया आगाज है यारो जो नहीं व्यर्थ गंवाओ जीवन को के सार्थक संदेश को समाहित किये हुए है ।
मन की बात सुधी पाठकों के ह्रदय में अपना स्थान बनाने में सफल होगी, यही आशा भी है और आकांक्षा भी । कवियित्री सुचिता अग्रवाल सुचि संदीप को इस काव्यसंग्रह के लिए साधुवाद देते हुए साहित्य संगम संस्थान का समीक्षा का अवसर प्रदान करने हेतु आभार व्यक्त करता हूँ ।

(३)


*अर्चना तिवारी*
कानपुर

*मन की बात* यानि कि *ह्रदय  के उद्गार*   जो कि एक  कवि सोचता है जिसकी कहीं भी कोई भी सीमा नहीं है । चाहे वह राष्ट्र प्रेम हो या फिर प्रकृति की बात हो या जीवन से जुड़े कोई रिश्ते ,जाति- पांति  भेदभाव या फिर नारी संवेदना जीवन का कोई भी विषय उससे अछूता नहीं रह जाता ।जब कवि या लेखक की लेखनी चलती है अंतरह्रदय में भी अपनी स्याही की छाप छोड़ जाती है ।ऐसी ही झलक मुझे आदरणीय 'सुची संदीप' द्वारा रचित पुस्तक *मन की बात* में भी दृष्टिगोचर हुई है।
     पुस्तक का आवरण पृष्ठ बहुत ही खूबसूरत व मनमोहक है ।सूर्योदय का मनोरम दृश्य हृदय को आकृष्ट करता है।

     आमुख सहित 55 रचनाओं में संग्रहित यह एक सुन्दर काव्य संकलन है ।जिसे जीवन के विभिन्न पहलुओं में कवयित्री ने अपने भावनात्मक संवेदना के साथ अपनी काव्य कौशल का परिचय दिया है ।काव्य संकलन का पहला पृष्ठ  जब मैंने *आमुख* पढ़ा  तो सर्वप्रथम कवयित्री जी के कोमल मन के दर्शन हुए जो पूर्ण रूप से भावनाओं व संवेदनाओं से परिपूरित थे ।कवि ह्रदय  की निर्मलता से ही लेखन कला प्रस्फुटित होती है उसके भावों के उद्गारों को लेकर लेखनी स्वयं अपनी चाल पकड़ लेती है।
 सर्वप्रथम डमरू छन्द से अलंकृत आपने अपनी रचना में प्रथम पूज्य गजानन जी को नमन करते हुए अगले पृष्ठ पर गुरु की महिमा का बखान कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं।
 आपकी तीसरी रचना देश प्रेम है *जिस की सेवा सर्वोपरि है देशप्रेम रग रग में भर दे* स्वदेसी वस्तुओं के प्रयोग का आवाह्न करती हुई यह रचना नवजातों की सांसों में भी देश के प्रति प्रेम का प्रस्फुटन हो ,क्योंकि यह देश का भविष्य है ,सुंदर संकल्पना को अपने सुंदर भाव व सुंदर शब्दों से अलंकृत किया है।
   चौथी रचना *बाबू जी की याद में* आपने अपने आदरणीय ससुर जी के सब सदगुणों का बखान कर उन्हें अपने अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं ।इस रचना की प्रत्येक पंक्तियां एक प्रेरक व्यक्तित्व का दर्शन करा रही हैं। नमन है आपकी लेखनी को।🙏🏻 इसी तरह आपने *पिता की वेदना*, *मां के उद्गार*, *पापा की गोद में* रिश्ते के भावों को हृदय से आत्मसात कर अपनी सशक्त लिखने से सुशोभित किया है।
   विविधता में एकता का संदेश देते हुए असम की मातृभूमि की वंदना करती हुई आपकी रचना *असम है मेरा सनम* आपके प्रेम को दर्शाता है ।आपकी एक अन्य रचना *प्रार्थना* तथा *इंसानियत* ने मेरे हृदय को झकझोर दिया। *न होते अगर इंसान तो क्या यह सृष्टि  विस्तारित हो पाती* आप की गहन सोच का परिचय  कराती है ।*अज्ञानता के पथ पर हम हैं, ज्ञान का संचार कर दो  तिमिर में जीवन हमारा, प्रकाश पुंज भर दो, कर्मठता का गुमान न हो, सेवा रग रग में भर दो।*  एक सफल व्यक्तित्व का निर्माण कराती हुए प्रेरक रचना है। आपकी अन्य रचनाएं *आधुनिक बच्चे* संस्कारों से भटकती युवा पीढ़ी  बिलखते मां बाप के अंतर्भावों  को आपने ही बहुत भावुक शब्दों से गढा है । पुरुष प्रधान समाज में नारी की अंतर वेदना को भी आपने अपनी रचनाओं में आत्मसात करके नारी की मनोव्यथा, अंतर्वेदना, दिलों के ख्वाब   में उनके दर्द को अपनी लेखनी से लेप लगाने का प्रयास किया है ।
प्रकृति प्रेम, देश प्रेम, भाषा प्रेम यहां तक कि प्रांत प्रेम भी आप की काव्य रचनाओं की शान रहा है। बच्चों के लिए भी आपकी रचनाएं *नई सोच नया सवेरा* *आओ हम नफरत करें* जैसी सरल सुबोध शब्दों में रचकर प्रेरणादायक काव्य सृजन किया है।
आपका यह काव्य संग्रह अति उत्कृष्ट रचनाओं से परिपूर्ण है। सुंदर व सुबोध भाषा शैली आप के सरल व सुंदर स्वभाव का भान कराती है। आपकी अन्य रचनाएं जिनके शीर्षक से ही पढ़ने की उत्कंठा बलवती होती है ।वे निम्न हैं------
जाना नहीं लाला छोड़ हमें
 अंतर्पीड़ा
अंतर्बोध
 अंतर्वेदना
 नेत्रदान कर दो
शक्ति आवाह्न
रिश्ते
प्रतीक्षा
मैं वल्लरी तेरी चरणों की
इंसानियत
मानवता सिसक रही हिंदी को सम्मान
आओ हम नफरत करें 
अनमोल पल
पुत्र सौगात
फिर हुई देश में हिंसा
आओ हम सब दीप जलाएं आदि।

    आप की काव्य यात्रा अनवरत चलती रहे। आप अपने उत्कृष्ट लेखन से साहित्य का, समाज का व राष्ट्र का मार्गदर्शन करें। तथा साहित्य जगत में एक चमकीले सितारे के रूप में  देदीप्यमान हों। हार्दिक शुभकामनाओं सहित ----

(४)


बासुदेव अग्रवाल'नमन'
तिनसुकिया,असम

मेरी छोटी बहन सुचि संदीप का दूसरा काव्य संग्रह "मन की बात" सुंदर आवरण-पृष्ठ में सजा हुआ, मन को लुभाने वाला है। आवरण पृष्ठ पर दो हंस जिसमें से एक हंस स्वयं कवियत्री सुचि संदीप का प्रतीक है जो अपने मन की बात दूसरे हंस को सुना रहा है जो कि पाठक वृंद का प्रतीक है और वह हंस तन्मयता के साथ सुचि संदीप की मन की बात सुन रहा है।

 सुचि संदीप मुक्त कविता में ही अपना सृजन करती आई है जो उसके प्रथम काव्य संग्रह "दर्पण" में भली-भांति परिलक्षित होता है। परंतु 2 वर्ष पूर्व जब से वह साहित्य संगम के WhatsApp ग्रुप से जुड़ी है उसमें मुक्त कविता के साथ-साथ पारंपरिक छंद और ग़ज़ल शैली में बहर बद्ध रचनाओं की तरफ भी झुकाव आया है। यह लगन और उत्साह साहित्य संगम परिवार के कवि भाई और कवियत्री बहनों के निरंतर संपर्क के कारण दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यह बात "मन की बात" के जैसे-जैसे पृष्ठ पलटते जाएंगे परिलक्षित होती जाएगी।

 सुचि संदीप के पास अंतर्मन को खंगालने की नैसर्गिक क्षमता है। संग्रह के माध्यम से सुचि संदीप में परिवारजनों के प्रति अगाध श्रद्धा, अंतर पीड़ा, अंतर्बोध, स्मृतियां, त्योहार, नितांत वैयक्तिक भावनाएं, देश की ज्वलंत समस्याओं के प्रति जागरुकता, सुख दुख, प्रेम, पीड़ा आदि अभिव्यक्तियां शब्द मार्ग पा गई है। साथ ही कवियत्री की रचनाओं का स्वरुप ऐसा है जिसमें आम पाठक की भाव दशाएं संतुष्टि पाती है।

 गौरी पुत्र गणेश की वंदना *गजबदन नमन* से इस काव्य-संग्रह का प्रारंभ हुआ है। इसमें कवियत्री के कुल 55 काव्य पुष्प संग्रहित है।
 सुचि संदीप की विधाता छंद में रचित निम्न पंक्तियां देखें। शीर्षक *यही आगाज है यारों*

"वही सपने सँवरते हैं जिन्हें हम जागते देखें सुहानी रात के सपने सुबह को भूलते यारों"

 या फिर *नई सोच नया सवेरा* का संदेश

 "यूं ही नहीं यह अनमोल जिंदगी
 व्यर्थ गवानी बस रोते-रोते
 नई सोच और नई सुबह का
 कर लो संकल्प अब हंसते-हंसते"

 अपने प्रांत असम के प्रति अगाध श्रद्धा और प्रेम *असम है मेरा सनम* में दृष्टिगोचर होता है।
 वृद्धा मां पिताओं को छोड़कर विदेश के सम्मोहन में युवा पीढ़ी जिस प्रकार देश छोड़कर जा रही है उसे देखकर कवियत्री की चीत्कार स्वाभाविक है। राधेश्याम छंद में रचित इस रचना की यह पंक्तियां देखें

 "यू छोड़ अचानक चले गए सदमे में व्याकुल बैठे हैं
 ममता की मूरत हार गई वैभव जीवन का जीता है"

 *अंतर्वेदना* शीर्षक कविता की पीड़ा देखिए

 "जिंदगी के दो घूंट मुझे भी अब चख लेने दो
 जीने की आजादी मुझे भी अब मिलने दो"

 *फैशन* कविता में सुचि संदीप के उद्गार कि फैशन तो करो परंतु शालीनता की सीमा में करो, अनुकरणनीय है।

 "समाज में व्याप्त बुराई की आगको
 अभद्र परिधानों से हवा न दें
 नारी शुचिता को जलने से बचाओ
 संस्कारों की ज्योति बुझने न दें"

 *अंतिम शब्द* में कवियत्री की पीड़ा

 "ले चलो रोशनी में मुझे
 अब अंधेरों से डर लगता है
 दिखा दे कोई महफिल की रौनक
 अब तन्हाई से डर लगता है"

 सुचि की विधाता छंद की कई रचनाएं मन को मोहने वाली है जैसे
*दिलों के घाव*
*हुई फिर देश में हिंसा*
*सीमा पार सैनिक की दास्तां*
*नया यह साल आया है*
आदि। सुचि जितना अच्छा इस छंद में सृजन करती है उतना ही सुंदर गाकर प्रस्तुत भी करती है।

 *दोहै* शीर्षक में सुचि के 21 दोहे संग्रहित है जो सुचि संदीप का पारंपरिक छंदों के प्रति आकर्षण का सूचक है।

 "शुचि मन भीतर राखिए, दीप ज्ञान का जोय।
 खोल तिजौरी ज्ञान की, बढ़े खर्च ज्यों होय।।"

 इस काव्य-संग्रह का अंतिम काव्य पुष्प *आई मैं दुल्हनिया बन कर* की यह पंक्तियां देखें

 "मात पिता की लाडली बिटिया
 मैं खुशी और जादू की डिबिया
 नासमझी भेद भाव ना ईर्ष्या
 प्रेम का सागर दिल में लेकर
 अपनेपन के भावों को भरकर
 आई मैं दुल्हनिया बन कर"

 सुचि संदीप का यह काव्य संग्रह हर काव्य प्रेमी के लिए अवश्य ही संग्रहणीय है।

(६)


चन्द्र पाल सिंह 'चन्द्र'
रायबरेली,उत्तर प्रदेश
२९-०९-२०१८

मन की बातें हृदय पटल को,
कविता बनकर खोलें !
भावों का सागर छलक पड़े,
सबके मनस भिगो लें !
प्रथम गजानन करें वंदना,
करती हैं गुरु पूजा !
बाबूजी की यादें रहती,
नहीं अन्य है दूजा !!

नई सोच है नया सवेरा,
असम सनम है मेरा !
रिश्ते और प्रतीक्षा में भी,
अंतर्पीड़ा घेरा !!
बनूँ वल्लरी उन चरणों की,
बालम तू अब आजा !
इंसानों ने हद सब तोड़ी,
फैशन के बहु साजा !!

पापा की गोदी के सपने,
माँ की ममता यादें !
गुजर गया जो याद आ रहा,
बहना की फरियादें !!
बदल रहा परिवेश हमारा,
सभी आधुनिक बच्चे !
हृदय पटल निर्मल है जिनका,
सारे लगते सच्चे !!

नहीं सकल पुस्तक पढ़ पाया,
भावों को अनुमाना !
भावों का सागर लहराता,
इससे ही यह जाना !!
सत्यम शिवम सुंदरम होता,
वह देता दिखलाई !
मनकी बातों के हित 'सुचि' को,
देते "चन्द्र" बधाई !!

(६)

*समीक्षा*
मन की बात
काव्य संग्रह
प्रकाशक- ग्रामोदय प्रकाशन
मूल्य-200 / रु
कवयित्री- सुचि संदीप शुचिता

*सर्वप्रथम आपके द्वितीय काव्य संग्रह मन की बात हेतु आपको हार्दिक बधाई ।*

आदरणीय सुचि संदीप शुचिता जी द्वारा रचित काव्य संग्रह वास्तव में भावों की पोटली है जो नारी मन के सभी पहलुओं को छूती हुयी  आपकी कलम द्वारा हृदय के उद्गार पाठकों के सम्मुख रखने में पूर्णतया सफल रहीं हैं ।

प्रथमेश को नमन सह गुरुदेव को नमन कर जो भी कार्य शुरू होगा उसे तो लोकप्रिय होना ही है । भावों की अच्छी पकड़ आपकी सभी रचनाओँ में देखने को मिलती है ।  जीवन से जुड़े लगभग सभी  रिश्तों पर आपने बखूबी प्रकाश डाला है ।

इसे पढ़ते - पढ़ते कब पाठक अपनी दुनिया  में खो जाता है पता ही नहीं चलता, मानो ये सब उसकी अपनी दास्तान है जो सुचि जी ने लिखी है । अच्छे अवलोकन , मार्मिक क्षणों को  जीने की ललक, उत्तम अनुभुति सभी गुणों से ओतप्रोत इस काव्य संग्रह हेतु हार्दिक बधाई ।

इसमें जहाँ एक ओर स्वादेश प्रेम पर बल दिया तो दूसरी ओर प्रदेश के सौंदर्य व प्रेम को भी शब्दों द्वारा बखूबी चित्रित किया है । इसी तरह जहाँ बेटे के जन्मपर कवि हृदय ने गीत रच उसका स्वागत किया तो वहीं उपवन की दो कलियों  की महक को अपने जीवन की अनमोल पूंजी समझा ।

ऐसे बहुत से पहलू हैं जिन को पढ़कर ही आनन्द आयेगा अतः इसे अवश्य ही अपने पुस्तकालय में न सिर्फ सजा के रखें वरन जब कभी मन मे उथल - पुथल हो तो इसे पढें अवश्य ही आपके प्रश्नों का समाधान मिलेगा ।

*अगले काव्य संग्रह की प्रतीक्षा में*


*समीक्षक*
छाया सक्सेना ' प्रभु '
जबलपुर  (म. प्र.)

(७)

आ० कवयित्री सुचि संदीप जी का काव्य
 संग्रह " मन की बात " पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, सार्थक संदेश से भीगी भावनात्मक अनुभूतिओ का गहन चिंतन काव्य के मूल प्राण बनकर पाठक की संवेदनाओ को स्पंदित कर नवंबर भावभूमि प्रस्तुत करने समर्थ है, मूल पुस्तक के अभाव मे गूढ विवेचना संभव नही होने से चित्त मे एक टीस भरी कसक अनुभव करता हूँ, परंतु जितनी क्षमता समझने और पढने के बीच रही उसी का सारा संक्षेप समीक्षा बनकर आपके समक्ष उजागर कर रहा है, कवयित्री के काव्य संग्रह मन की बात मे कुल ५४ कविताओ का समावेश किया गया है जिसमे कवयित्री ने जीवन के हर क्षेत्र का स्पर्श कर सार्थक संदेश दिया है, मां की संतान के प्रति समस्त क्रियाऐ उसके ममत्व का दिग्दर्शन कराती है " अनमोल पल " "पुत्र सौगात " मां का उद्गार" किविताओ का भाव सौंदर्य अनुपम व सार्थक है , प्रकृति के तमाम दृश्य व पदार्थ सौंदर्य की वृध्दि मे संयोजक तो है साथ ही श्रद्धा की पृष्ठभूमि पर भी खरे उतरते है आपकी कविता " गंगा " मे दृष्टव्य है, "क्षमा करे मुझे "भूख की वेदना मे जूठन खाने को बाध्य इंसान का वास्तविक बिंब , नव उमंग भरी उड़ान का संदेश देती रचना   "चल उड़ पंछी "  एक चिड़िया की सोच " मे सार्थक भावभूमि प्रस्तुत की गई है!  "दोस्ती मे कोई कमी थी क्या?" व  "बेबश दिल की व्यथा " मन के अंतरंग संबधो का मर्म भरा भाव बोध प्रदान करती है   "आओ हम सब दीपक जलाऐ "  प्रेम,  भाईचारे व देशभक्ति की भावना को बल देती रचना है  गफलतो की दरारे दिलो मे घाव भ्रष्टाचार देती है, प्रेम के पावनता का इजहार, पाप से, भेदभाव से, छुआछूत से और गंदी राजनीति से नफरत करने की प्रेरणा     ;दिलो के घाव " आओ हम नफरत करे " कविताओ मे देखी जा सकती है! "क्षणभंगुर जिंदगी का बोध देती रचना से प्रेरणा मिलती है प्रभु सेवा, बुद्धि विवेक से जीवन जीने की चेतना से साक्षात्कार करवाती कविता " "मिले चार दिवस" सार्थक बन गई है!  "दौलत एक नशा"   "पिता की वेदना" मे रिश्ते नाते के अटूट बंधन का पतन व कड़ी मेहनत कर बच्चे की जिंदगी संवारने वाले पिता की व्यथा का वृद्धाश्रम के माध्यम से बिंब खींचना हृदय की सहृदयता मे कसक भ्रष्टाचार देता है!   "हिन्दी को सम्मान " मातृ भाषा के गौरव का उच्च स्तरीय बोध ,"आई  मैं दुल्हनिया बनकर" एक सुहागिन का पावन बिंब उभारा है! और बहुत ही सार्थक देश प्रेम के अवगुंठन मे समर्पित रचना " "असम है मेरा सनम" व "सीमा पर सैनिक की दास्तान " मे सैनिको के  प्रेम के व्यक्तिगत विचार व देश की समर्पण की भावधारा का सुन्दर सृजन किया है!   "नया ये साल आया है "मे नववर्ष से अपार संभावनाऐ,  व"प्रार्थना"  मे तिमिर नाश , प्रकाश का आगमन , कर्म की प्रेरणा  वह परहित की भावना का उत्तम संदेश मिलता है ! छंदबद्ध रचना "दोहे" बहुत प्रभावशाली बन गई है नश्वरता, धर्म, मन की हार , परंपरा, ज्ञान, प्रेम व रोशनी से भरपूर  अनुपम सृजन हुआ है!
    सेवा, त्याग और प्रेम की अनूठी पृष्ठभूमि पर खरा उतरने वाला पावन काव्य संग्रह साहित्य जगत की अमूल्य धरोहर बने, ऐसी मेरी  कवयित्री को शुभकामनाये!

छगन लाल गर्ग "विज्ञ"!

(८)
प्यारी दी शुचि,

आपकी किताब "मन की बात" आपकी तृतीय काव्य संग्रह है जिसमें आपने हृदय के उद्गारों को बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा है।यह पुस्तक आपने मुझे भेंट में भी दी थी जिसे मैंने तब पढा था।परंतु आज कुछ ज्यादा ही बिजी थी अब तक।दीपावली की सफाई शुरू हो चुकी है व एक अतिथि भी आ गए, जो अभी भी है।सुबह से सोच रही थी कि आपके काव्य-संकलन पर कुछ लिखूँ, पर अभी रूम में आकर लिख रही हूँ थोड़ा।
असम सनम है मेरा ,यह कविता जब मैंने सुनी तो ऐसा लगा कि कितने प्यारे भाव है मैंने क्यों नहीं लिखा ऐसा कुछ।सच में ,आप मेरी प्रेरणा हो।
साहित्य के क्षेत्र में आपकी ये उपलब्धियाँ वस्तुतः अनुकरणीय व सराहनीय है।
बाद में पुनः पढ़कर आपको फिर से अपनी समीक्षा दूँगी।ये वादा रहा।
क्षमा सहित
आपकी छोटी बहन
*ऋतुगोयल सरगम*✍

(९)

मन की बात "                       पुस्तक समीक्षा                         रचनाकार ----श्रीमती सुचिता अग्रवाल"सुचि संदीप "           पृष्ठ----88   .. ....  ..     मूल्य 200रु.     .  .          .     ग्रामोदय प्रकाशन ,दिल्ली            पुस्तक का आवरण पृष्ठ बहुत आकर्षक  प्रातःकालीन उगता सूर्यमन में ऊर्जा का संचार करता है ।काव्य संग्रह में 55कविताएं संकलित हैं।जिसमें जीवन और जगत के विभिन्न विषयों पर कवयित्री ने अपनी लेखनी चलाई है ।जो हमारे आस-पास के ही हैं।भारतीय संस्कृति में प्रथम पूज्य देवता श्री गणेश वंदना से श्री गणेश करते हुए काव्य संग्रह की निर्विध्न समाप्ति हेतु गुरू को नमन"करते हुए अन्य विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है ।देश के बिना हमारे अस्तित्व का कोई महत्व नहीं है ।देश प्रेम कविता में अपने उद्गार व्यक्त किए हैं बाबू जी की याद में ससुर जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की है ।।माता पिता के प्रति भी श्रद्धा भाव निवेदित करना और बहन की चिट्ठी भाई के नाम"में बहन भाई के अटूट प्रेम को दर्शाया है ।।    .          होली आई है" कविता में सामाजिक बुराई "मद्यपान की अनेक विसंगतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया है ।इंसानियत "कविता मानव से लेकर प्राकृतिक उपादानोंकी उपादेयता पर प्रकाश डाला है ।फागुन का महीना प्रियतम बिना सूना है ।इसमें प्रियतमा मन के उद्गार  व्यक्त करती हुई मिलन की आकांक्षा से प्रिय का आवाह्न करती है ।इस प्रकार हम देखते हैं कि सुचि जी की कृति "मन की बात "शीर्षक अनुरूप विषय वस्तु प्रस्तुत करने में पूर्ण सफल रही है। सुंदर कृति हेतु बधाई एवं शुभकामनाएं 

सुशीला सिंह

(१०)

समीक्षा(मन की बात
  आदरणीया सूचि संदीप)
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
प्यारी एक सहेली  'सूचि' सी
  उसकी बेटी की सहेली की मम्मी मै
   लेखन का उसके आभास ना था
   गहरा कितना सागर छुपा मालुम न था
   भेद खुला जब मिल बैठे दो किनारे
    अंजाने ही एक मोड़ पर
    उसकी लेखनी ने रख दिया
    मन मेरा झखझोड़कर
    मन की बात में तुमने ऐ सखी
   हर दिल की बात टटोली है
    ५५ पृष्ठ के इस संग्रह में
     हर विधा और हर रूप को जोड़ा है
     मुख्य पृष्ठ में हँसो का जोड़ा
    प्रेम ,सुख-समृद्धि का प्रतीक है
    गणेश वंदना से होती सुबह शुरुवात
     सबको देता संदेश है
    परिवार की महत्ता, त्योहारों का उल्लास
     देश भक्ति के संग पिरोया
     नारी पीड़ा का संदेश है
     सुख-दुख चक्र है जीवन का
      सोच लाओ नई,ना पल-पल रोओ
      नया सवेरा आएगा
      हँसी रहे जो होठों पर
      हर संकल्प पूर्ण हो जायेगा
      प्रदेश मेरा असम देखो
      मेरे सनम सा सुखदाई यह
     बिटिया बन ब्याही गई
     अंजानो में समाई मै
     बाबूजी कह सम्बोधित ससुर
      पिता तुल्य मान बढ़ाया है
       माँ का प्रेम, पिता की वेदना
       बखूबी जामा पहनाया है
       आधुनिक बच्चे ,कहाँ है संस्कार
      फैशन की दुनिया क्या कहने
       कटाक्ष भी समाया है
    सैनिक की व्यथा और दर्द
     समझाया तुमने बखूबी है
     देश में होती हिंसा क्यों
     चिंता का विषय बताया है
    नये साल में कुछ नये वादे
     मन कितना हर्षाया तुमने
     कवि मन वेदना भेद यह गहरा
       मन मेरा भी भर आया है
       सभी उद्गार जैसे अनमोल
      छंद-दोहे सभी विधा बेजोड़
      सूचि तुम एक तिजोरी हो
     छिपे हैं जिसमे आभूषण कितने
       तुम सचमुच एक जोहरी हो
      ज्ञान के दीपक सखी मेरी
    यूँ ही सदा जलाती चलना
      प्रकाश अंधियारी गलियों में
      ताउम्र फैलाती चलना
      एक दोस्त दुवा क्या मांगे
     राहें सदा आसान रहें
     चलती जाना निरन्तर
     साथ सदा अपनों का
      साथ रहे
        शुभकामनाएँ
             उमीसंजय जालान(नेहदीप)

( समीक्षा नही यह एक भावना है सूचि आपके प्रति
  बस मन के भाव आप तक पहुँचा रही हूँ
   भूल-चूक माफ़🙏🙏🙏)
                  २९.९.१९१८






1 comment:

  1. आप सभी के स्नेह एवम प्रोत्साहन को पाकर अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार, साधुवाद।

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