Friday, December 18, 2020

पर्यायवाची कविता,लावणी छंद

पर्यायवाची शब्द याद करने का छंदबद्ध कविता के माध्यम से आसान  उपाय-


"पर्यायवाची कविता"

   (लावणी छंद)


एक अर्थ के विविध शब्द ही, कहलाते पर्याय सभी।

भाषा वाणी बोली की वे, कर देते हैं वृद्धि तभी।।

याद कराने इन शब्दों को, सीधा,सरल,सुबोध करें।

काव्य,पद्य,कविता से अपने, शब्दों का भंडार भरें ।।


फूल,कुसुम अरु पुष्प,सुमन हो, चन्दन,मलयज,मलयोद्भव।

उपासना, पूजा, आराधन, कृष्ण,मुरारी,मधु, माधव।

अम्बा,दुर्गा,देवी,मैया, सरस्वती,वाणी,भाषा।

दया,कृपा,अनुकम्पा की है, चाह, कामना, अभिलाषा।।


लक्ष्मी,कमला,रमा,मंगला, गणपति,शिवसुत भी आओ।

आंजनेय,बजरंगबली,हनु, धन,दौलत,संपद लाओ।

मुनि,सन्यासी,तपसी,योगी, विज्ञ,बुद्ध,पंडित,ज्ञानी।

गुरु,शिक्षक,व्याख्याता सारे, ब्रह्म,ईश,अंतर्यामी।


सुरतरंगिणी,सुरसरि,गंगा, जो नवनीत, आज्य, घी, घृत है

नद,सरि,सरिता,नदी,आपगा, अमिय,सुधा,मधु,अमृत है।

सागर,अर्णव,जलनिधि,वारिधि, व्योम,गगन,अम्बर,नभ भी।

पर्वत,अचल,शैल,नग,भूधर, पूज्य,मान्य,श्रद्धेय सभी।


बरखा,वर्षा,बारिश,वृष्टि, पवन, समीर, हवा बहती।

लता,वल्लरी,बेल झूम कर, वृक्ष,विटप,तरु पर रहती।

बादल,बदरा,मेघ,पयोधर, पानी,नीर,सलिल भाये।

मछली,शफरी,मत्स्य ,मीन अरु, बेंग,भेक, मेंढक आये।।


कोकिल,कोयल,पिक,मधुगायन, भोर,प्रभात,सुबह गाये।

खग, पतंग,चिड़िया, अंडज, द्विज, नाचे, मटके, इतराये।।

कूल, किनारा, तट, कगार पर, कश्ती, नौका, नाव खड़ी।

नाविक, माँझी, केवट की अब, दिनचर्या भी दौड़ पड़ी।।


आम,रसाल,आम्र,अतिसौरभ, कमल,जलज,पंकज प्यारे।

पत्ता,किसलय,दल,कोंपल अरु, पेड़,वृक्ष, पादप न्यारे।।

भूतल,धरती,वसुधा पर जब, सूर्य,अरुण,दिनकर चमके,

जग,भूतल, दुनिया,भुव सारा, चारु,रम्य,सुंदर दमके।


जनक,पिता,बापू, पितु प्यारे, माँ, जननी, माता प्यारी।

घरवाली, पत्नी, भार्या अरु, बहन, स्वसा, भगिनी न्यारी।।

पुत्र,तनय,सुत,नंदन,बेटा, आँख,नयन,दृग का तारा।

सुता,स्वजा,बिटिया,तनुजा से, हर्षित,मुदित ये जग सारा।


तात,बंधु,भ्राता,भाई अरु, अंतरंग,साथी,सहचर।

प्रेम,प्यार,अनुराग,प्रीति से, महके सदन,भवन,गृह,घर।

अकड़,गर्व,अभिमान,दर्प से, तिमिर,तमस, तम, अँधियारा।

खुश,आनंदित,हर्षित मन से, ज्योति, तेज, अरु उजियारा।।


पठन,पढ़ाई,परिशीलन से, बुद्धि,चेतना,मति जागे।

हो विख्यात,यशस्वी, नामी, डग,पद, चरण, कदम भागे।

अनुनय,विनती,विनय,प्रार्थना, छात्र,शिष्य,अध्येता से।

'शुचि',पावन, निर्मल कविता को, याद,मनन कर दृढ़ता से।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, आसाम

भक्ति, ताटंक छंद

 

कृत्य सभी मंगलदायक हैं,सुख-दुख दिन हो या रैना।

अडिग रहे विश्वास राम पर,भक्ति,भाव ,श्रद्धा देना।


जग निर्माता जग संचालक,तुम तन,मन,धन,वाणी में,

सुक्ष्म चेतना बनकर तुम ही,रहते हो हर प्राणी में।

जग में जिस कारण से भेजा,मुझसे वो करवा लेना।

अडिग रहे विश्वास राम पर,भक्ति,भाव ,श्रद्धा देना।


जग तृष्णा में डूबी हूँ मैं, वक्त अल्प प्रभु को देती,

दुख में बस सुमिरन कर लेती,सुख में नाम कहाँ लेती।

घेर सके ना भाव असूरी, साथ राम सी हो सेना,

अडिग रहे विश्वास राम पर,भक्ति,भाव ,श्रद्धा देना।


मन में पूजा,मन में भक्ति,मन में तेरा हो डेरा,

जो कुछ तुमने दिया वो तेरा,अंश नहीं कुछ भी मेरा।

तेरे चरणों में सद्गति को,पाकर पाऊँ मैं चैना,

अडिग रहे विश्वास राम पर,भक्ति,भाव ,श्रद्धा देना।


स्वरचित

शुचिता अग्रवाल'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


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