Tuesday, October 18, 2022

लावणी छंद, 'हिन्दी'

  "हिन्दी" 

लावणी छंद


भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है।

निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।।

सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है।

जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।।


प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया।

हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।।

अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने।

फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।।


देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी।

हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।।

है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की।

हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।।


ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना।

विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।।

जो पाश्चात्य दौड़ में दौड़े, दया पात्र समझो उनको।

नहीं नागरिक भारत के वो, गर्व न हिन्दी पर जिनको।।


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Monday, October 10, 2022

शोभन छंद, 'मंगलास्तुति'

 शोभन छंद,

 'मंगलास्तुति'


सर्व मंगल दायिनी माँ, ज्ञान का अवतार।

शब्द सुमनों का चढ़ाऊँ, नित्य मैं नव हार।।

अवतरण तव शुक्ल पंचम, माघ का शुभ मास।

हे शुभा शुभ शारदे माँ, हिय करो नित वास।।


हस्त सजती पुस्तिका शुभ, पद्म आसन श्वेत।

देवता, ऋषि, मुनि रिझाते, गान कर समवेत।।

कर जोड़ तुझको ध्यावते, मग्न हो नर नार।

वागीश्वरी नित हम करें, जयति जय जयकार।।


आशीष तेरा जब मिले, पनपते सुविचार।

दास चरणों की बनाकर, माँ करो उपकार।।

कलुष हरकर माँ मुझे दो, ज्ञान का वरदान।

भाव वाणी से करूँ मैं, काव्य का रस पान।।


काव्य जीवन में बहे ज्यों, गंग की मृदु धार।

खे रही है नाव इसमें, लेखनी पतवार।।

भाव परहित का रखूं मैं, नित रहे यह भान।

साधना की शक्ति दो माँ, छंद का शुचि ज्ञान।।

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शोभन छंद विधान-


शोभन छंद जो कि सिंहिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 14 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

5 2 5 2, 212 1121


पँचकल की संभावित संभावनाएं -

122, 212, 221


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है किंतु इस छंद में 11 को 2 मानने की छूट नहीं है।


अंत में जगण (121) अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Thursday, October 6, 2022

सुमित्र छंद "मेरा भाई"

 सुमित्र छंद

 "मेरा भाई"


बडी खुशी मुझ को, मिला भाइयों का दुलार।

दिखे अलग सबसे, मेरे भाई शानदार।।

लिये खड़ी बहना, जब राखी का नेह थाल।

निहारते अपलक, बहना को हो कर निहाल।।


सुहावना बचपन, स्मर स्मर अब हों लोटपोट।

किये पढाई हम, साथ पाठ सब घोट घोट।।

हँसे हँसाये तो, मौसम आता है बसन्त।

थमे न ये खुशियाँ, पल हो जाये ये अनन्त।।


बड़ा न वो छोटा, मन से हरदम मालदार।

बढ़े वही आगे, सुनकर बहना की पुकार।।

उसे न देखूँ तो, मन हो जाता है उदास।

वही चमक मेरी, मेरे मन का है उजास।।


खुले गगन जैसा, मन भाई का है विशाल।

बने वही ताकत, वो होता है एक ढाल।।

सभी लगे प्यारे, यूँ तो रिश्ते हैं अनेक।

लगे न घर घर सा, जिस घर भाई हो न एक।।

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सुमित्र छंद विधान-


सुमित्र छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 10 और 14 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  इसका चरणादि एवं चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य है।

 दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

121 222, 2222 (अठकल) 2121

10+14=24


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

सुमित्र छंद का अन्य नाम  रसाल छंद भी है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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