Wednesday, January 6, 2021

विष्णुपद छंद,मंजिल पायेंगे


 









आगे हरदम बढ़ने का हम,लक्ष्य बनायेंगे,

चाहे रोड़े हों राहों में,मंजिल पायेंगे।


नवोत्कर्ष का परचम लेकर,हम सोपान चढ़ें,

कायरता की तोड़ हथकड़ी,हों निर्भीक बढ़ें।

जोश भरे कदमों की आहट,सकल विश्व सुनले,

आज मनुज तू,नेक इरादे,विजयी पंथ चुनले।

विश्व शांति के लिए साथ हम,दौड़ लगायेंगे।

चाहे रोड़े हों राहों में,मंजिल पायेंगे।


भारत का इतिहास सुनहरा,वीर सपूतों का,

राष्ट्रवाद जिन माताओं में,उनके पूतों का।

वही रक्त नस-नस में सबके,अब भी भरा हुआ,

ले मशाल उठ बढ़ तू आगे,क्यूँ है डरा हुआ?

सबसे ऊँचा झंडा अपना,हम फहरायेंगे,

चाहे रोड़े हों राहों में,मंजिल पायेंगे।


स्वरचित एवम मौलिक

डॉ.शुचिता अग्रवाल,"शुचिसंदीप"

तिनसुकिया, असम

Suchisandeep2010@gmail.com

विष्णुपद छंद विधान-16,10 मात्राओं पर यति।

दो-दो चरण सम तुकांत




Sunday, January 3, 2021

लावणी छंद,जिस घर मात-पिता खुश रहते

 "जिस घर मात-पिता खुश रहते"

   (विधा-  ताटंक छंद, गीत)


प्रतिमाओं की पूजा करने,हम मंदिर में जाते हैं।

जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।


असर दुआ में इतना इनकी,बाधाएँ टल जाती है।

कदमों में खुशियाँ दुनिया की सारी चलकर आती है।

पालन करने स्वयं विधाता ज्यूँ घर में  बस जाते हैं।

जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।।


इस जीवन में कर्ज कभी हम चुका नहीं जिनका पाये।

औलादों के सपने सारे जिनकी आँखों में छाये।

बच्चों के हिस्से में खुशियाँ, झोली भर भर  लाते हैं।

जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते

हैं।


मुट्ठी में दुनिया की सारी दौलत आ ही जाती है।

जब तक ठंडी छाँव पिता की माँ ममता बरसाती है।

खुशकिस्मत होते जो इनका साथ अधिकतम पाते हैं।

जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते

हैं।।


#स्वरचित

डॉ.शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"

तिनसुकिया, असम


Suchisandeep2010@gmail.com


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