Tuesday, June 29, 2021

मनहरण घनाक्षरी 'होली'


'मनहरण घनाक्षरी'


मंगल हो काज सारे, 

खुशियों के रंग डारे,

प्रीत का संदेशा देने,

आयी होली आयी है।


अपनों से प्रेम बढ़े,

मुख मुस्कान चढ़े,

राग,द्वेष,क्रोध,लोभ,

अगन लगायी है।


हर घर बृज धाम,

कृष्ण कहीं बलराम,

श्याम संग खेलने को,

राधा रंग लायी है।


फगुआ की छटा न्यारी,

लगे धरा बड़ी प्यारी,

प्रीत का त्योंहार होली,

सबको ही भायी है ।


होली के हैं रंग ऐसे,

प्रेम में हिलौर जैसे,

अंग-अंग नाच रहा,

प्रीत चहुँ ओर है।


चंग से तरंग आयी,

गीतों की बहार छायी,

जुड़ गये मन सारे,

प्रेम की ये डोर है।


सखियों के संग-संग,

गौरिया उछाले रंग,

होली की नवल छटा,

केशरी ये भोर है।


उल्लसित रग-रग,

थिरक रहें हैं पग,

जोश की अगन यहाँ,

लगी पुरजोर है।


लहंगा है लाल रंग,

नीली चुनड़ी के संग,

गाल गुलाबी गौरी के,

लगते कमाल है।


तीखे कजरारे नैन,

छीनते सभी का चैन,

लगा रहे चार चाँद,

सुनहरी बाल है।


रंग मेहंदी पे चढ़ा,

प्रेम पियाजी का बढ़ा,

फगुआ में बबुआ का,

सतरंगी हाल है।


रंगा-रंग है ये होली, 

सबकी ही हमजोली,

जलते कपट सारे,

प्रेम की ये ढाल है।


शुचिताअग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


Monday, June 28, 2021

पंचिक, "फूफा"

 'पंचिक'

परिभाषा फुफे की क्या हँस पूछा जीजा ने।

हँसी में कही ये बात गाँठ बाँधी फूफा ने,

भूत रूप जीजे का फूफा,

भूली बिसरी यादों सा,

जैसे चिल्ले को सब भूले ले ली जगह पिज्जा ने।

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पंचिक विधान-

पंचिक की पंक्तियाँ किसी भी मात्रिक या वर्णिक विन्यास में बँधी हुई नहीं होती है। फिर भी लयकारी की प्रमुखता है। पंक्तियों के वाचन में एक प्रवाह होना चाहिए। यह लय, गति ही इसे कविता का स्वरूप देती है।

 पंक्ति संख्या 1, 2, 5 में प्रति पंक्ति 14 से 18 तक वर्ण रख सकते हैं। यह ध्यान रहे कि लय रहे। 14 वर्ण हो तो गुरु वर्ण के शब्द अधिक रखें, 18 वर्ण हो तो लघु वर्ण के शब्द अधिक प्रयोग करें। इससे मात्राएँ समान होकर लय सधी रहेगी। पंक्ति संख्या 3 और 4 में प्रति पंक्ति 7 से 13 वर्ण तक रख सकते हैं।

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शुचिता अग्रवाल'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


चौपई (जयकरी) छन्द,'खेलो कूदो

   (बाल कविता)

होती सबकी माता गाय,

दूध पीओ मत पीना चाय।

लम्बी इसकी होती पूँछ, 

जितनी मुन्ने की है मूँछ।


खेलो कूदो गाओ गीत,

गरमी जाती आती शीत।

मोटे कपड़ों में है धाक,

वरना बहती जाती नाक।


गुड़िया रानी खेले खेल,

छुक छुक करती आई रेल।

ताजा लौकी,भिंडी साग,

लेकर आई पूरा बाग।


दादी माधव लेती नाम,

तोता बोले सीता राम।

मुन्ने जितने प्यारे मान,

सुंदर होते हैं भगवान।

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चौपई छन्द विधान-

चौपई एक मात्रिक छन्द है। इस छन्द में चार चरण होते हैं। चौपई छन्द से मिलते-जुलते नाम वाले अत्यंत ही प्रसिद्ध सममात्रिक छन्द चौपाई से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिये। चौपई के प्रत्येक चरण में 15 मात्राओं के साथ ही प्रत्येक चरण में समापन एक गुरु एवं एक लघु के संयोग से होता है।

चौपाई के चरणान्त से एक लघु निकाल दिया जाय तो चरण की कुल मात्रा 15 रह जाती है और चौपाई छन्द से मिलता जुलता नाम चौपई हो जाता है। इस तरह चौपई का चरणांत गुरु-लघु हो जाता है। यही इसकी मूल पहचान है। अर्थात् चौपई 15 मात्राओं के चार चरणों का सम मात्रिक छन्द है,जिसके दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।

 इस छंद का एक और नाम जयकरी या जयकारी छन्द भी है।

यह चौपई छन्द का विन्यास होगा-

तीन चौकल + गुरु-लघु

एक अठकल + एक चौकल + गुरु-लघु

22 22 22 21

चौपई छन्द के सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी सर्वमान्य है कि चौपई छन्द बाल साहित्य के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि इसमें गेयता अत्यंत सधी होती है। 

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शुचिता अग्रवाल'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम



Saturday, June 26, 2021

'गोपी छंद' ' गोपियों की शर्तें

   "गोपी छंद"

गोपियों ने मिलकर ठाना,

श्याम से शर्तें मनवाना,

पकड़ में आज तनिक आया,

दूध,दधि जमकर जब खाया।


कहा सखियों ने सुन कान्हा,

भूल अब हमको मत जाना,

नाच नित हमें दिखाओगे,

वेणु की तान सुनाओगे।


चराने गाय चले जाते,

साँझ ढलने पर ही आते,

बाट कब तक देखें तेरी,

हमें भी होती है देरी।


बाँधकर रख लेंगे तुमको,

सताया अब से जो हमको,

आज से वचन हमें देना,

पहर आठों सुधि तुम लेना।


शुचिता अग्रवाल'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

गोपी छंद 'बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे'

  गोपी छंद 'बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे'  

तप्त सूरज की किरणें हों,

अँधेरे चाहे जितने हों,

सवेरा है तब जब जागे,

बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे।


प्रेरणा का दामन पकड़े,

हौंसलों की हिम्मत जकड़े,

राह में रोड़े जो आये,

हटाते चल बिन घबराये।


निखरने को पड़ता तपना।

आँख में पकड़ रखो सपना। 

धीर धर कष्ट सभी सहना। 

चोट खा स्वर्ण बने गहना।।


सुगम जो मार्ग दिखाते हैं,

वही नायक कहलाते हैं,

कार्य में उत्सुकता होती,

श्रेष्ठ जिसमें दृढ़ता होती।

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गोपी छन्द विधान-

यह मापनी आधारित प्रत्येक चरण पंद्रह मात्राओं का मात्रिक छन्द है। 

आदि में त्रिकल (21 या 12),अंत में गुरु/वाचिक(२२ श्रेष्ठ)अनिवार्य है।

आरम्भ में त्रिकल के बाद समकल, बीच में त्रिकल हो तो समकल बनाने के लिए एक और त्रिकल आवश्यक होता है।

इसका वाचिक भार निम्न है-

3(21,12)2 2222 2(s) -15 मात्राएँ।

चूंकि यह मात्रिक छन्द है अतः गुरु को दो लघु में तोड़ा जा सकता है। 

दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम



Saturday, June 5, 2021

चित्रपदा छन्द,गुरु वंदना

हे गुरुदेव विधाता,

ज्ञान सुधा रस दाता।

मात,पिता तुम भ्राता,

जीवन ज्योत प्रदाता।


नित्य करे पर सेवा,

युग संचालक देवा।

सत्य सदा वरदाता,

हे गुरुदेव विधाता।


सार्थक पाठ पढ़ाते,

सत्पथ वो दिखलाते।

बुद्धि विवेक अगाथा,

हे गुरुदेव विधाता।


है भगवान पधारे,

रूप गुरु खुद धारे।

शीश झुका जग ध्याता,

हे गुरुदेव विधाता।


डॉ.शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"

तिनसुकिया, असम


चित्रपदा छन्द विधान-

8 वर्ण,चार चरण

दो-दो समतुकांत

211 211 2 2


Friday, June 4, 2021

चित्रपदा छन्द,गुरु वंदना

 हे गुरुदेव विधाता,

ज्ञान सुधा रस दाता।

मात,पिता तुम भ्राता,

जीवन ज्योत प्रदाता।


नित्य करे पर सेवा,

युग संचालक देवा।

सत्य सदा वरदाता,

हे गुरुदेव विधाता।


सार्थक पाठ पढ़ाते,

सत्पथ वो दिखलाते।

बुद्धि विवेक अगाथा,

हे गुरुदेव विधाता।


है भगवान पधारे,

रूप गुरु खुद धारे।

शीश झुका जग ध्याता,

हे गुरुदेव विधाता।


शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"

तिनसुकिया, असम


(चित्रपदा छन्द विधान-

8 वर्ण,चार चरण

दो-दो समतुकांत

211 211 2 2)


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