Saturday, June 26, 2021

गोपी छंद 'बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे'

  गोपी छंद 'बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे'  

तप्त सूरज की किरणें हों,

अँधेरे चाहे जितने हों,

सवेरा है तब जब जागे,

बनाकर लक्ष्य बढ़ो आगे।


प्रेरणा का दामन पकड़े,

हौंसलों की हिम्मत जकड़े,

राह में रोड़े जो आये,

हटाते चल बिन घबराये।


निखरने को पड़ता तपना।

आँख में पकड़ रखो सपना। 

धीर धर कष्ट सभी सहना। 

चोट खा स्वर्ण बने गहना।।


सुगम जो मार्ग दिखाते हैं,

वही नायक कहलाते हैं,

कार्य में उत्सुकता होती,

श्रेष्ठ जिसमें दृढ़ता होती।

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गोपी छन्द विधान-

यह मापनी आधारित प्रत्येक चरण पंद्रह मात्राओं का मात्रिक छन्द है। 

आदि में त्रिकल (21 या 12),अंत में गुरु/वाचिक(२२ श्रेष्ठ)अनिवार्य है।

आरम्भ में त्रिकल के बाद समकल, बीच में त्रिकल हो तो समकल बनाने के लिए एक और त्रिकल आवश्यक होता है।

इसका वाचिक भार निम्न है-

3(21,12)2 2222 2(s) -15 मात्राएँ।

चूंकि यह मात्रिक छन्द है अतः गुरु को दो लघु में तोड़ा जा सकता है। 

दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम



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