Tuesday, July 26, 2022

सारस छंद, 'संकल्प'

 सारस छंद,

 'संकल्प'


नित्य नया काव्य रचूँ, गीत लिखूँ ओज भरे।

प्रेम भरे शब्द सजे, भाव भरा व्योम झरे।।

लक्ष्य नये धार रखूँ, सृष्टि धवल पृष्ठ लगे।

धन्य धरा आज करूँ, स्वच्छ रुचिर भाव जगे।।


भ्रांति त्यजूँ शांति चखूँ, प्रीत जहाँ शांति वहाँ।

बन्धु लगे लोग सभी, दौड़ रही दृष्टि जहाँ।।

देश सकल रूप नवल, एक सबल राष्ट्र बने।

शुद्ध हवा, प्राण दवा, पेड़ लगे सर्व घने।।


ठान लिया मान लिया, स्वार्थ रहित प्रेम करूँ। 

अंध मिटे रूढि छँटे, ज्ञान भरा दीप धरूँ।।

क्लेश मिटे, दर्प छुटे, द्वेष कटे, कष्ट घटे।

चित्त मलिन स्वच्छ करूँ, हृदय छुपा मैल कटे ।।


ज्ञान परम जान लिया, एक अटल सत्य यही।

मृत्यु निकट नित्य बढ़े, बात यही एक सही।।

सीख यही चित्त धरो, सार भरे ग्रंथ पढो।

प्रेम बढा मानव से, कीर्ति सजित मान गढो।।

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सारस छंद विधान-


सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।

 दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2112 2112, 2112 2112


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है लेकिन इस छंद में 11 को 2 करने की छूट नहीं है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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