समीक्षकों की कलम से-
(१)
*काव्य शुचिता*
ये सर्वविदित सत्य है कि अगर हम पूरी लगन व निष्ठा से किसी कार्य में लग जाएं तो अवश्य ही उसमें सफलता हासिल कर लेते हैं। यह भी पूर्ण सत्य है कि बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है। जीवन के एक एक पल को सहेजना और उसे मानवीय जीवन में लक्ष्य सिद्ध करने के योग्य बनाना, ये कोई साधारण कार्य नहीं। लेकिन इस असाधारण कार्य को बड़ी लगन व सुखद अहसास से काव्य रूप देकर जीवन के हर क्षण को सुखद अनुभूतियों का अहसास कराकर हमारे समक्ष अद्वितीय *काव्य शुचिता* (एक मौलिक पुस्तक एवं काव्य संग्रह) जिन्होंने प्रस्तुत की, वे और नहीं तिनसुकिया, असम की लोकप्रिय कवयित्री आदरणीया *सुचिता अग्रवाल 'सुचि संदीप'* जी हैं। इन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं दोहा, मुक्तक, गीत, गज़ल, घनाक्षरी, चौपाई एवं विधा मुक्त रचनाओं से इस संग्रह को नभ में चमकते चाँद की तरह हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। इनके काव्य में भावों की सरसता और भाषा का प्रवाह दोनों गुण ऐसे हैं जो काव्य को मधुरता प्रदान करते हैं। इन्होंने अपने संकलन को कुछ गिने चुने विषयों तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि जीवन के विभिन्न पक्षों पर अपनी संवेदनाशीलता की व्यापकता दिखाई है।
*काव्यगत विशेषताएं*
(1) *ईश्वरीय स्तुति*: आपकी रचनाओं में सर्वप्रथम ईश्वर की वंदना व परम पिता परमात्मा की स्तुति व उसके महत्व को उजागर करती रचनाएं हैं जो प्रत्येक पाठक में ह्दय में उठ रहे ज्वारभाटे को गंगा की पवित्र बूँदों से शांत करती हैं तथा प्रभु के प्रति हमारी आस्था को और भी सुदृढ़ करती हैं।
*वास रहे चित मात सदा*
*मन मूरत शारद की धरलें*
*लोभ हरो छल दूर करो*
*बस सत्य लिखें मन में करलें*
(2) *राष्ट प्रेम से ओतप्रोत* : यथार्थ की जमीं पर लिखी गयी रचनाएं राष्ट्र प्रेम के भाव उजागर करती हैं। इन्होंने 'राष्ट्र आराधना, सुंदर स्वच्छ बनेगा भारत, नहीं व्यर्थ गँवाओं जीवन को, सकारात्मक सोच' आदि कृतियों में राष्ट्र प्रेम व देश के लिए बहुत कुछ करने की इच्छा व्यक्त की है जो कि हम सबके लिए प्रेरणास्रोत है।
*मिले सम्मान भारत को*
*सभी का मान बढ़ता है*
*करे यशगान जब कोई*
*नवल सोपान गढ़ता है*
(3) *खोखले आडम्बरों पर वार* : खोखले धार्मिक व सामाजिक आडम्बर एवं रीति रिवाजों की पकड़ जनमानस को भीतर तक इस कद्र जकड़ कर रखती है कि वह चाह कर भी इनसे विमुक्त नहीं हो सकता और व्यथित होता है। ऐसे परिप्रेक्ष्य में इनकी रचनाएं ईश्वर की सत्यता, सर्वधर्म समभाव का समर्थन करके इन कोरे एवं व्यर्थ के आडम्बरों पर कुठ्राघात करती हैं और सत्यता का पाठ पढ़ाती हैं।
*जैसी सोच हमारी होगी*
*देश वही हो जाएगा*
*सुंदर सपना है जो अपना*
*तब ही सच हो पाएगा*
(4) *औरत की महत्ता* : इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि औरत ही जीवन का पर्याय है। इनकी लेखनी सत्यता का प्रमाण है। मातृ शक्ति का अहसास कराती इनकी कृतियाँ 'नारी जग की जननी है, नारी को न्याय देना ही होगा, ये बेटियाँ, जीवन साथी, रक्षा बंधन' सम्ज में प्रत्येक नारी की महत्ता को दर्शाती हैं।
*घर की रौनक होती बेटी*
*है उमंग अनुराग यही*
(5) *प्रकृति प्रेम* : इन्होंने ताटंक, विधाता छंद, लावणी का प्रयोग कर 'निस्वार्थ गुलाब का प्यार, सावन प्रेम, सावन का झूला, जल झूलनी रचनाओं में प्रकृति के बदलते स्वरूपों का सुंदर चित्रण किया है। इनकी रचनाओं को पढ़कर हम प्रकृति से विमुख नहीं हो सकते बल्कि इस के और करीब आकर प्रकृति के कोमल रूपों संग हर्षित मन से गुनगुनाते महसूस करते हैं।
*बड़ा सुंदर मिला उपवन*
*जलन से नहिं जलाना है*
*इसी जीवन को सावन के*
*महीने सा बनाना है*
(6) *आशावादिता का संदेश* : समाज में साधारण जन की समस्याओं, परेशानियों से रू ब रू करवाना, अपनी सकारात्मक सोच व विचारों का समर्थन कर आशावादिता की ओर बढ़ना आदरणीया सुचिता जी का मुख्य लक्ष्य रहा है। इन्होंने 'जीवन सुख, मानवता ही धर्म हमारा, जब आशा ने दीप जलाया, मंगल गीत, कुछ अनकही सी बातें, कम भी नहीं हैं हौंसले' आदि के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को आशावादी रहने तथा नकारात्मकता को अपने पास न आने की सीख दी है।
*सोच नियंत्रित अपनी करके*
*लोगों ने है नाम कमाया*
*खोल सको तो खोलो ताले*
*शुचिता ने यह गीत है गाया*
(7) *श्रृंगारिक रचनाएं* : इनकी रचनाएं एक ओर ऐतिहासिक, धार्मिक, प्रेरणादायक हैं तो दूसरी ओर श्रृंगार के भावों के अंतस में इस तरह सामने आईं हैं कि मानव के भावों के अंतस में एक नाद छेड़ती और ह्रदय के कमल को खिला कर एक मधुर सुगंध को चारों ओर फैला देती है। 'जीवन साथी, दीवानों पर क्या गुजरी, जीवन सुख' आदि रचनाएं इस कसौटी पर पूरी उतर रही हैं।
*छोटी छोटी खुशियाँ अपनी*
*निश्चल प्रेम अपार रहे*
*जीवन साथी ही जीवन में*
*जीने का आधार रहे*
(8) *हास्य व्यंग्य* : इन्होंने हास्य भरपूर शब्दों एवं वाक्यों के माध्यम से पाठकों को गुदगुदाने का भी प्रयास किया है जिसमें ये पूर्ण सफल हुईं हैं। हास्य ही रचना का आधार न होकर इसमें व्यंग्य भी दर्शाया गया है जो एक गहन प्रश्न हमारे सम्मुख रख इसका उत्तर स्वयं में से ही ढूँढने को प्रेरित करता है। 'कहमुकरी, कवि सम्मेलन, सेल्फी, मेरा हमसफर मोबाईल, सासु माँ, आधुनिक पत्नी की प्रशंसा, जूते और छतरी की लड़ाई, दामाद जी, चुटकले आदि कितनी ही रचनाएं हैं जो मानस मन की परिपेटी पर हास्य के साथ साथ एक प्रश्न छोड़ जाती है जिसे प्रत्येक पाठक ढूँढने के लिए उत्साहित दिखता है।
(9) *भाषागत विशेषताएं* :
भाषा का सुंदर प्रवाह इनकी रचनाओं को उच्चकोटि की श्रेणी में लाता है। इनकी भाषा पाठक को माधुर्यता प्रदान करती है। लावणी छंद, विधाता छंद, राधेश्यामी छंद, ताटंक छंद, दोहा, चौपाई, हरिगीतिका, चामर छंद आदि से काव्य संग्रह को बेबाकी से प्रस्तुत किया है।
इस प्रकार प्रस्तुत काव्य संग्रह इनकी काव्य यात्रा का एक सफल पड़ाव है जो इनकी गहन सोच, समझ एवं दृष्टि की परिचायक है। शायद ही ऐसी कोई समस्या या तत्व हो जिसका उल्लेख या संकेत इनकी रचनाओं में न मिले। हम इस काव्य संग्रह का स्वागत करते है तथा सटीक प्रस्तुति के लिए आदरणीया सुचिता अग्रवाल जी को शुभकामनाएं देते हैं। हमें विश्वास है कि इनकी और भी रचनाएँ ऐसे ही पाठक का रसास्वादन करती रहेंगी तथा सभी को आनंदित व रोमांचित करेंगी।
*वर दे वीणावादिनी करते यही पुकार*
*सुचि संदीप की कृतियाँ फैलायें जग में प्यार*
*शुभ्र शब्द सज्जित दिखे संगम करे उजियार*
*इनके ज्ञान के नूर से मिटे मन अँधकार*
*राजन लिब्रा'राज'
अमृतसर
(२)
*शुचिता दीदी उर्फ डॉक्टर सूची संदीप आज हिंदी साहित्य जगत में परिचय की मोहताज नहीं।आपकी काव्य कृतियाँ *दर्पण* , *मन की बात* व *साहित्यमेध* पढ़ा और अब एक और काव्य कुसुम हमारे हाथों में है *काव्य शुचिता* ।
सचमुच यह नाम ही इतना प्यारा है कि रोम रोम पावन कर जाता है।
कल रात 9 बजे मैंने यह pdf खोला और कब 11 बज गए पता ही नहीं चला।इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुस्तक में पाठक को बांध कर रखने की अद्भुत क्षमता है।भाव-सागर में संगम कराने वाली इस पवित्र काव्य के बारे में क्या कहूँ।शब्द शब्द गंगाजल है।एक एक रचना को पिरोकर ज्यों मोतियों की सुंदर अनुपम लड़ी तैयार की गई है।विभिन्न छन्दों का समावेश, व्यापक विषयों पर कवयित्री का सुलझा हुआ नूतन दृष्टिकोण सम्पूर्ण काव्य को प्रेरक बनाता है।साथ ही हास्य की गुदगुदी इसे रोचक बना देती है।पाठक अपनी छवि बनाने लगता है साथ साथ, जो साहित्य को समष्टि से व व्यष्टि से भी जोड़ने में सक्षम है।
अत्यंत संवेदनशील मुद्दों को भी आपने बड़ी शिद्दत के साथ छुआ है व उन्हें आसान बना दिया है।क्या ग़ज़ल,क्या छंद, क्या मुक्त,क्या हास्य,सभी विधाओं में आपकी लेखनी कमाल करती है।
बहुत बहुत बहुत तहे दिल से आपको बधाई दीदी,आप यूँही साहित्याकाश में नव आयाम गढ़ते रहे....बढ़ते रहे।अशेष शुभकानाओं व ढेर सारा प्यार के संग
आपकी छोटी बहन
*ऋतुगोयल सरगम*✍
तिनसुकिया, असम
(३)
शुचि बहन की पुस्तक दर्पण और मन की बात मेरी पढ़ी हुई है।
भाषा और शब्द पर इनकी ज़बर्दस्त पकड़ है। जब इनकी कविताओं को स्वर देते है, तो कही भी लय नही टूटती, इससे पता चलता है वर्ण और मात्रा पर इनका पूरा ध्यान रहता है। विधाता छंद इनसे ही गाना सीखा है मैंने और थोड़ा बहुत लिखना भी।
ये हर तरह के लेखन में प्रवीण है, चाहे देशभक्ति हो, श्रंगार हो, ओज हो या फिर हास्य रस, सभी विधा में इनकी गहरी पकड़ है। इनके कारण हमारे तिनसुकिया नगर का नाम रोशन हो रहा है। बहती गंगा में इनके साथ हम भी हाथ धो लेते है। इनकी कई कविताओं को मैंने मंच पर गाया है और खूब तालियां बटोरी है। इनके साथ साथ मेरा भी नाम हो जाता है।
आप इसी तरह आगे बढ़ती रहे, आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। सादर
सांवर अग्रवाल रासिवासिया असम
(४)
काव्य शुचिता (समीक्षा)
विधा- दोहा
शुचिता रच दी काव्य की,
पुस्तक सुचि संदीप !
जहाँ कहीं भी देखिए,
होते छंद प्रदीप !!
लिखे सवैया लावणी,
छंद विधाता गीत !
छंदों का अति ज्ञान है,
होता यही प्रतीत !!
रास सरल मधु गीतिका,
लिखती कविता मुक्त !
छंद त्रिभंगी कुंडली,
भावों से संयुक्त !!
गजल सवैया मुकरिया,
चामर राधेश्याम !
हास्य सहित ताटंक भी,
लिखती हैं अविराम !!
"चन्द्र" बधाई दे रहे,
'सुचिता' सभी अशेष !
साहित्यिक सम्मान हो,
यथा व्योम राकेश !!
चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र "
राय बरेली, उत्तर प्रदेश
०५ - ०१ - २०१९
(५)
काव्य शुचिता
समीक्षा
"""""''''''''''''''''''''''''''':
है अद्भुत काव्यसुचिता,प्रकाशक संस्थान।
कवयित्री सुचिता कृति, निर्देशक विद्वान।।
संपादक है आशीषजी,दें राजवीर संदेश।
दे रहे शुभकामना, मीना सरल सुविशेष।।
हो माँ शारदे वंदना, करें विधाता छंद।
गंगा माँ की प्रार्थना, रचें लावणी छंद।।
छंदों की बौछार है,औ सकारात्मक सोच।
सरल सुबोध काव्यशैली,भाषा मधुर लोच।।
निस्वार्थ गुलाब का मिला है अनोखा प्यार।
नारी तेरे हैं रूप अनेक, जीवन का आधार।।
काव्यसृजन की बनी रंगोली, डाले सावन का झूला।
मानवता ही धर्म हमारा, फिर क्यूँ मानव है भूला।।
सजी हुयी काव्यसुचिता, है शब्दों का सुविस्तार।
समय बड़ा बलवान है भैया, वृद्धा कर रही पुकार।।
सत्यमेव जयते कहे,गायें गौरवगाथा भारत की।
सासू माँ का प्यार मिले तो,बहू बेटी बन जाती।।
##$######$$#######$##
सुनील कुमार अवधिया"मुक्तानिल"
9165550848
5/1/2019
(६)
काव्य शुचिता
विधा--समीक्षा
लेखनी ऐसी चली,
काव्य धारा बहने लगी।
सुचि की काव्य शुचिता,
मन छूकर कहने लगी।
मैं रस की वो प्याली हूँ,
काव्य फलों की डाली हूं।
महक उठे जिससे ये मन,
मैं वो कली मतवाली हूँ।
मैं लावणी छंद गीतिकाहूँ,
गजल सवैया कविता हूँ।
कह मुकरिया चामर छंद,
छंद की बहती सरिता हूँ।
मैने कहा वाह बहुत खूब,
ये काव्य है महकती धूप।
इसकी खुश्बू फैली पटल,
निछावर हूँ देख यह रूप।
इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया, असम
(७)
शुचिता अग्रवाल जी
पुस्तक-काव्य शुचिता
लेखनी की धनी शुचिता जी को बधाई।
निरन्तर मेहनत कर रही हैं ।हर रचना चाहे बेटी के लिए हो या औरत के लिए भावों से भरी हैं।
मानवता को रेखांकित करती हैं ।हमारा धर्म कैसा हो?
मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ।
(८)
बधाई🌹🌹
काव्य शुचिता की रचईता डा० शुचि संदीप बहन को हार्दिक बधाई, हिन्दी साहित्य जगतके आकाश में आप एक महान कवियत्रीरूपी नक्षत्र रूप में विराजमान हैं ,दर्पण ,मन की बात ,व साहित्य मेध की भांति आपकी यह पुस्तक काव्य शुचिता भी छंदों से सजी पुस्तक कई संवेदन शील मुद्दो पर भी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रही ,इस अनूठी कृति हेतु व नारी संगम का मान बढ़ानें हेतु बहन आपको बहुत बहुत बधाई, आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुये आपको आपकी पुस्तक हेतु दिल से बधाई।
कुमुद श्रीवास्तव वर्मा..
(९)
आदरणीय आदरणीय सुचिता जी आपको बहुत बहुत बधाई आप इसी तरह लिखती रहें मां सरस्वती की कृपा इसी तरह बनी रहे काव्य सुचिता संकलन पुस्तक बहुत ही भावुक छवियां है एक से एक रचना में भावों से रची कई लरिया है रचना अपने आप में अप्रतिम है, माँ शारदे को अर्पण
बहुत बधाई आपको👏🏻👏🏻👏🏻
1 राष्ट्र आराधना विधाता चंद से रचा है
2 गंगा को भावों की गंगा बहकर माँ तेरा द्र्धन किया
3 माँ से स्वरूप माँ ने हर दम बात समझायी है
4 जीवन साथी, का प्रेम समर्पण है वहां है रिष्तों की गहराई
5 बेटियां घर की रौनक होती हैं माँ का अभिमान यही है
6 नारी इस जग की जननी हैं राधेश्यामी चंद
7 सुदर स्वक्छ बनेगा भारत ताटक चंद से
8 सकारात्मक दोहे से सजाया हैं
9 विचार शक्ति को चामर छन्द से पिरोया है
10 जीवन को त्रिभंगी छन्द से रचा है
11 रुक जरा सोच मानव ताटक छंद उजाला किया है
12 गुलाब को काँटो से घिरा हुआ पर उसे खिलना होगा
13 नारी को न्याय देना ही
होगा लावणी छन्द से आभूषित किया है
14 नारी तेरे कितने रूप अनेक
15 हिन्द धरा हिंदी बोली
16जब दीप जले दीबाली चाहे सावन प्रेम, सावन का झूला चाहें हो या रंगोली चौपाई छन्द से रंगी है आदि बहुत सी रचनाएं हैं
माँ सरस्वती की कृपा ऐसे ही बने रहे आप इसी तरह दुनिया में नाम कमाती रहें कई अनेकों छंदों से रचा काव्य सूचिता
बहुत बहुत बधाई आपकों
(१०)
साहित्य संगम संस्थान को सादर समर्पित आदरणीय सुचिसंदीपजी को प्रणाम करते हुए एवं सभी समीक्षक गण को नमन करते हुए एक प्रयास
विधा-दोहा ग़जल (समीक्षा)
विषय-काव्य शुचिता
दिनांक-05.01.2019
दिन-शनिवार
(पर्यावरण सम काव्य)
×××××××××××××××
व्याकुलता इस धरा की, कब समझोगे यार,
शीतल स्वच्छ बयार हित, पेड़ लगाओ चार ।
वृक्ष धरोहर धरा के, धरती के सिंगार,
हरित क्रांति देश में, बंद करो व्यापार।।
जन जीवन संपूर्ण खिन्न, तन मन करे संचार,
जंगल प्रहरी तुम बनो, जन मानस का उद्धार।
फल फूल औषधि रहे, बस इन के दरबार,
पर यह मानव क्यों करत, इनका खुद संहार।
शुचिता रचना काव्य की, कार्य बड़ा महान,
कागज को मत भूलिये, वन से मिलता यार।
नमन सदा है आपको, मेरे शुचि संदीप।
रवि शशि सम चमके सदा, मात शारदे द्वार।
जंगल है आलय समान, रहते सिंह सियार,
मोर,बया,बंदर,भालू, "साधक" सकल संसार।
स्वरचित-
====प्रमोद 'साधक' रमपुरवा(बहराइच)====
(११)
आ0 सुचिता दीदी प्रणाम।
आपकी यह किताब *काव्य शुचिता* नाम के अनुरूप है । इसमें समाज के हितार्थ कल्याणकारी, संदेशप्रद रचनाएँ हैं। बुराइयों के प्रति उत्तम कटाक्ष करती रचनाएँ, मानव को प्रकृति से जोड़ती हुई रचनाएँ, विभिन्न छंदों में छन्दबद्धरचनाएँ, गीत,गीतिका,गजल,मुक्तक, हास्य से ओतप्रोत यह काव्यकृति जिसकी समस्त रचनाएँ मैने गहनता पूर्वक पढ़ी हैं बहुत ही उत्तम काव्य कृति है,जो आपकी काव्यसाधना को सभी पाठकों के समक्ष प्रदर्शित करते हुए पाठकों के हृदय को छूती हुई आपको साहित्य के आकाश तक लेने जाने में सक्षम है।
आपकी इस काव्यकृति की सफलता के लिए हृदयतल से शुभकामना और बधाई देता हूँ।
आपका अनुज
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
रीवा,मध्यप्रदेश
(१२)
हमारी बहन और संगम में सभी दिल के अजीज एक ऐसी कवियत्री जिनकी किताबो का आने का सिलसिला लगातार जारी है । और उनकी पुस्तक एक साथ कितनी ख़ूबी से सजी हुई रहती है । इस पुस्तक का नाम भी में अपना नाम दिया 'काव्य शुचिता" जिसमे उन्होंने सवैया लावणी गीत छंद कविता हास्य कुण्डलिया सभी को संजोया है । और मेरी दृष्टिकोण में ये सभी व्याकरण की सभी शर्तो को पूरा करते है । उनकी रचनाएँ में नेह की भी बात करती है और प्रणय की भी । उनकी कविता प्रकाश पुंज को भी खोजती है तो उसके रास्तो का भी पता देती है । उनका कवि हृदय काव्य के रहस्य से अठखेलियाँ करता है। उस पर भी अपने विचारों आवेग को सहजता से रखना नही भूलती । उनके छंद मन के तारो से तारतम्य सजाने में विश्वास रखता है । उनके कविताएँ उनके व्यक्तित्व का दस्तावेज है । उनकी विचार देश को, प्रेमी को दिशा देती है शब्दावली में आशा का प्रस्फुटन है तो भाव मे क्रांति । उनके हास्य उनको समकालीनों से उन्हें अलग करता है । उनके शब्द के भाव सरल होते है, और शब्द बिल्कुल आम भाषा के । उनकी रचनाओं में संवेदनशील हृदय की पारदर्शी अभिव्यक्ति है जिसे हर कोई खुद में महसूस करता है । उनकी क़लम दुख-सुख, मिलन-विरह को संजोने में महारत हासिल की हुई नजर आती है । जिसके लिये वो बधाई के पात्र है ।
किसन लाल अग्रवाल
चक्रधरपुर
(१३)
*काव्य संग्रह*
काव्य शुचिता- कवयित्री सुचि संदीप शुचिता
संपादक- आशीष पांडेय जिद्दी
प्रकाशन- साहित्य संगम संस्थान
मूल्य- 200 / रु
सर्वप्रथम सुचि दी को उनके तीसरे काव्य संग्रह *काव्य शुचिता* हेतु हार्दिक बधाई । माँ शारदे की आराधना, देश भक्ति, माँ, बेटी, गंगा मैया, भारत माँ, प्राकृतिक परिवेश , हास्य आधारित रचनाएँ , ये सभी पुस्तक और पाठकों के बीच सम्बन्ध स्थापित करती हैं विभिन्न छंदों पर आधारित रचनाएँ जहाँ इसकी खूबसूरती को बढ़ा रहीं वहीं दूसरी ओर ग़ज़ले मनोभावों को प्रदर्शित कर पाठकों के हृदय के तार कवयित्री की लेखनी से तारतम्य दर्शा रहे हैं ।
कविता की एक पंक्ति देखिए-
*घर संसार बसा कर हमनें, सुख सारा ही पाया है ।*
*रंग बिरंगे फूलों से इस, जीवन को महकाया है ।।*
सुंदर शब्दों द्वारा सहजता से अपनी बातें कहने की कला कवयित्री को बाखूबी आती है जो सभी रचनाओं में दिखती है ।
ग़ज़लों में भी आपकी गहरी पैठ है -
*खिला कर फूल काँटो में, किया आबाद जब तुमने ।*
*इरादों से खिला उपवन तो, वीरानों पे क्या गुजरी ।।*
ऐसे ही बहुत से मर्मस्पर्शी भावों का प्रयोग आपने किया है । भाव और शिल्प दोनों पर ही एक समान अधिकार रखते हुए आपने काव्य शुचिता को लिखा , मुझे पूर्ण विश्वास है कि अवश्य ही ये संग्रह साहित्य जगत में नवायाम रचेगा ।
*समीक्षक*
छाया सक्सेना ' प्रभु '
(१)
*काव्य शुचिता*
ये सर्वविदित सत्य है कि अगर हम पूरी लगन व निष्ठा से किसी कार्य में लग जाएं तो अवश्य ही उसमें सफलता हासिल कर लेते हैं। यह भी पूर्ण सत्य है कि बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है। जीवन के एक एक पल को सहेजना और उसे मानवीय जीवन में लक्ष्य सिद्ध करने के योग्य बनाना, ये कोई साधारण कार्य नहीं। लेकिन इस असाधारण कार्य को बड़ी लगन व सुखद अहसास से काव्य रूप देकर जीवन के हर क्षण को सुखद अनुभूतियों का अहसास कराकर हमारे समक्ष अद्वितीय *काव्य शुचिता* (एक मौलिक पुस्तक एवं काव्य संग्रह) जिन्होंने प्रस्तुत की, वे और नहीं तिनसुकिया, असम की लोकप्रिय कवयित्री आदरणीया *सुचिता अग्रवाल 'सुचि संदीप'* जी हैं। इन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं दोहा, मुक्तक, गीत, गज़ल, घनाक्षरी, चौपाई एवं विधा मुक्त रचनाओं से इस संग्रह को नभ में चमकते चाँद की तरह हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। इनके काव्य में भावों की सरसता और भाषा का प्रवाह दोनों गुण ऐसे हैं जो काव्य को मधुरता प्रदान करते हैं। इन्होंने अपने संकलन को कुछ गिने चुने विषयों तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि जीवन के विभिन्न पक्षों पर अपनी संवेदनाशीलता की व्यापकता दिखाई है।
*काव्यगत विशेषताएं*
(1) *ईश्वरीय स्तुति*: आपकी रचनाओं में सर्वप्रथम ईश्वर की वंदना व परम पिता परमात्मा की स्तुति व उसके महत्व को उजागर करती रचनाएं हैं जो प्रत्येक पाठक में ह्दय में उठ रहे ज्वारभाटे को गंगा की पवित्र बूँदों से शांत करती हैं तथा प्रभु के प्रति हमारी आस्था को और भी सुदृढ़ करती हैं।
*वास रहे चित मात सदा*
*मन मूरत शारद की धरलें*
*लोभ हरो छल दूर करो*
*बस सत्य लिखें मन में करलें*
(2) *राष्ट प्रेम से ओतप्रोत* : यथार्थ की जमीं पर लिखी गयी रचनाएं राष्ट्र प्रेम के भाव उजागर करती हैं। इन्होंने 'राष्ट्र आराधना, सुंदर स्वच्छ बनेगा भारत, नहीं व्यर्थ गँवाओं जीवन को, सकारात्मक सोच' आदि कृतियों में राष्ट्र प्रेम व देश के लिए बहुत कुछ करने की इच्छा व्यक्त की है जो कि हम सबके लिए प्रेरणास्रोत है।
*मिले सम्मान भारत को*
*सभी का मान बढ़ता है*
*करे यशगान जब कोई*
*नवल सोपान गढ़ता है*
(3) *खोखले आडम्बरों पर वार* : खोखले धार्मिक व सामाजिक आडम्बर एवं रीति रिवाजों की पकड़ जनमानस को भीतर तक इस कद्र जकड़ कर रखती है कि वह चाह कर भी इनसे विमुक्त नहीं हो सकता और व्यथित होता है। ऐसे परिप्रेक्ष्य में इनकी रचनाएं ईश्वर की सत्यता, सर्वधर्म समभाव का समर्थन करके इन कोरे एवं व्यर्थ के आडम्बरों पर कुठ्राघात करती हैं और सत्यता का पाठ पढ़ाती हैं।
*जैसी सोच हमारी होगी*
*देश वही हो जाएगा*
*सुंदर सपना है जो अपना*
*तब ही सच हो पाएगा*
(4) *औरत की महत्ता* : इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि औरत ही जीवन का पर्याय है। इनकी लेखनी सत्यता का प्रमाण है। मातृ शक्ति का अहसास कराती इनकी कृतियाँ 'नारी जग की जननी है, नारी को न्याय देना ही होगा, ये बेटियाँ, जीवन साथी, रक्षा बंधन' सम्ज में प्रत्येक नारी की महत्ता को दर्शाती हैं।
*घर की रौनक होती बेटी*
*है उमंग अनुराग यही*
(5) *प्रकृति प्रेम* : इन्होंने ताटंक, विधाता छंद, लावणी का प्रयोग कर 'निस्वार्थ गुलाब का प्यार, सावन प्रेम, सावन का झूला, जल झूलनी रचनाओं में प्रकृति के बदलते स्वरूपों का सुंदर चित्रण किया है। इनकी रचनाओं को पढ़कर हम प्रकृति से विमुख नहीं हो सकते बल्कि इस के और करीब आकर प्रकृति के कोमल रूपों संग हर्षित मन से गुनगुनाते महसूस करते हैं।
*बड़ा सुंदर मिला उपवन*
*जलन से नहिं जलाना है*
*इसी जीवन को सावन के*
*महीने सा बनाना है*
(6) *आशावादिता का संदेश* : समाज में साधारण जन की समस्याओं, परेशानियों से रू ब रू करवाना, अपनी सकारात्मक सोच व विचारों का समर्थन कर आशावादिता की ओर बढ़ना आदरणीया सुचिता जी का मुख्य लक्ष्य रहा है। इन्होंने 'जीवन सुख, मानवता ही धर्म हमारा, जब आशा ने दीप जलाया, मंगल गीत, कुछ अनकही सी बातें, कम भी नहीं हैं हौंसले' आदि के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को आशावादी रहने तथा नकारात्मकता को अपने पास न आने की सीख दी है।
*सोच नियंत्रित अपनी करके*
*लोगों ने है नाम कमाया*
*खोल सको तो खोलो ताले*
*शुचिता ने यह गीत है गाया*
(7) *श्रृंगारिक रचनाएं* : इनकी रचनाएं एक ओर ऐतिहासिक, धार्मिक, प्रेरणादायक हैं तो दूसरी ओर श्रृंगार के भावों के अंतस में इस तरह सामने आईं हैं कि मानव के भावों के अंतस में एक नाद छेड़ती और ह्रदय के कमल को खिला कर एक मधुर सुगंध को चारों ओर फैला देती है। 'जीवन साथी, दीवानों पर क्या गुजरी, जीवन सुख' आदि रचनाएं इस कसौटी पर पूरी उतर रही हैं।
*छोटी छोटी खुशियाँ अपनी*
*निश्चल प्रेम अपार रहे*
*जीवन साथी ही जीवन में*
*जीने का आधार रहे*
(8) *हास्य व्यंग्य* : इन्होंने हास्य भरपूर शब्दों एवं वाक्यों के माध्यम से पाठकों को गुदगुदाने का भी प्रयास किया है जिसमें ये पूर्ण सफल हुईं हैं। हास्य ही रचना का आधार न होकर इसमें व्यंग्य भी दर्शाया गया है जो एक गहन प्रश्न हमारे सम्मुख रख इसका उत्तर स्वयं में से ही ढूँढने को प्रेरित करता है। 'कहमुकरी, कवि सम्मेलन, सेल्फी, मेरा हमसफर मोबाईल, सासु माँ, आधुनिक पत्नी की प्रशंसा, जूते और छतरी की लड़ाई, दामाद जी, चुटकले आदि कितनी ही रचनाएं हैं जो मानस मन की परिपेटी पर हास्य के साथ साथ एक प्रश्न छोड़ जाती है जिसे प्रत्येक पाठक ढूँढने के लिए उत्साहित दिखता है।
(9) *भाषागत विशेषताएं* :
भाषा का सुंदर प्रवाह इनकी रचनाओं को उच्चकोटि की श्रेणी में लाता है। इनकी भाषा पाठक को माधुर्यता प्रदान करती है। लावणी छंद, विधाता छंद, राधेश्यामी छंद, ताटंक छंद, दोहा, चौपाई, हरिगीतिका, चामर छंद आदि से काव्य संग्रह को बेबाकी से प्रस्तुत किया है।
इस प्रकार प्रस्तुत काव्य संग्रह इनकी काव्य यात्रा का एक सफल पड़ाव है जो इनकी गहन सोच, समझ एवं दृष्टि की परिचायक है। शायद ही ऐसी कोई समस्या या तत्व हो जिसका उल्लेख या संकेत इनकी रचनाओं में न मिले। हम इस काव्य संग्रह का स्वागत करते है तथा सटीक प्रस्तुति के लिए आदरणीया सुचिता अग्रवाल जी को शुभकामनाएं देते हैं। हमें विश्वास है कि इनकी और भी रचनाएँ ऐसे ही पाठक का रसास्वादन करती रहेंगी तथा सभी को आनंदित व रोमांचित करेंगी।
*वर दे वीणावादिनी करते यही पुकार*
*सुचि संदीप की कृतियाँ फैलायें जग में प्यार*
*शुभ्र शब्द सज्जित दिखे संगम करे उजियार*
*इनके ज्ञान के नूर से मिटे मन अँधकार*
*राजन लिब्रा'राज'
अमृतसर
(२)
*शुचिता दीदी उर्फ डॉक्टर सूची संदीप आज हिंदी साहित्य जगत में परिचय की मोहताज नहीं।आपकी काव्य कृतियाँ *दर्पण* , *मन की बात* व *साहित्यमेध* पढ़ा और अब एक और काव्य कुसुम हमारे हाथों में है *काव्य शुचिता* ।
सचमुच यह नाम ही इतना प्यारा है कि रोम रोम पावन कर जाता है।
कल रात 9 बजे मैंने यह pdf खोला और कब 11 बज गए पता ही नहीं चला।इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुस्तक में पाठक को बांध कर रखने की अद्भुत क्षमता है।भाव-सागर में संगम कराने वाली इस पवित्र काव्य के बारे में क्या कहूँ।शब्द शब्द गंगाजल है।एक एक रचना को पिरोकर ज्यों मोतियों की सुंदर अनुपम लड़ी तैयार की गई है।विभिन्न छन्दों का समावेश, व्यापक विषयों पर कवयित्री का सुलझा हुआ नूतन दृष्टिकोण सम्पूर्ण काव्य को प्रेरक बनाता है।साथ ही हास्य की गुदगुदी इसे रोचक बना देती है।पाठक अपनी छवि बनाने लगता है साथ साथ, जो साहित्य को समष्टि से व व्यष्टि से भी जोड़ने में सक्षम है।
अत्यंत संवेदनशील मुद्दों को भी आपने बड़ी शिद्दत के साथ छुआ है व उन्हें आसान बना दिया है।क्या ग़ज़ल,क्या छंद, क्या मुक्त,क्या हास्य,सभी विधाओं में आपकी लेखनी कमाल करती है।
बहुत बहुत बहुत तहे दिल से आपको बधाई दीदी,आप यूँही साहित्याकाश में नव आयाम गढ़ते रहे....बढ़ते रहे।अशेष शुभकानाओं व ढेर सारा प्यार के संग
आपकी छोटी बहन
*ऋतुगोयल सरगम*✍
तिनसुकिया, असम
(३)
शुचि बहन की पुस्तक दर्पण और मन की बात मेरी पढ़ी हुई है।
भाषा और शब्द पर इनकी ज़बर्दस्त पकड़ है। जब इनकी कविताओं को स्वर देते है, तो कही भी लय नही टूटती, इससे पता चलता है वर्ण और मात्रा पर इनका पूरा ध्यान रहता है। विधाता छंद इनसे ही गाना सीखा है मैंने और थोड़ा बहुत लिखना भी।
ये हर तरह के लेखन में प्रवीण है, चाहे देशभक्ति हो, श्रंगार हो, ओज हो या फिर हास्य रस, सभी विधा में इनकी गहरी पकड़ है। इनके कारण हमारे तिनसुकिया नगर का नाम रोशन हो रहा है। बहती गंगा में इनके साथ हम भी हाथ धो लेते है। इनकी कई कविताओं को मैंने मंच पर गाया है और खूब तालियां बटोरी है। इनके साथ साथ मेरा भी नाम हो जाता है।
आप इसी तरह आगे बढ़ती रहे, आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। सादर
सांवर अग्रवाल रासिवासिया असम
(४)
काव्य शुचिता (समीक्षा)
विधा- दोहा
शुचिता रच दी काव्य की,
पुस्तक सुचि संदीप !
जहाँ कहीं भी देखिए,
होते छंद प्रदीप !!
लिखे सवैया लावणी,
छंद विधाता गीत !
छंदों का अति ज्ञान है,
होता यही प्रतीत !!
रास सरल मधु गीतिका,
लिखती कविता मुक्त !
छंद त्रिभंगी कुंडली,
भावों से संयुक्त !!
गजल सवैया मुकरिया,
चामर राधेश्याम !
हास्य सहित ताटंक भी,
लिखती हैं अविराम !!
"चन्द्र" बधाई दे रहे,
'सुचिता' सभी अशेष !
साहित्यिक सम्मान हो,
यथा व्योम राकेश !!
चन्द्र पाल सिंह " चन्द्र "
राय बरेली, उत्तर प्रदेश
०५ - ०१ - २०१९
(५)
काव्य शुचिता
समीक्षा
"""""''''''''''''''''''''''''''':
है अद्भुत काव्यसुचिता,प्रकाशक संस्थान।
कवयित्री सुचिता कृति, निर्देशक विद्वान।।
संपादक है आशीषजी,दें राजवीर संदेश।
दे रहे शुभकामना, मीना सरल सुविशेष।।
हो माँ शारदे वंदना, करें विधाता छंद।
गंगा माँ की प्रार्थना, रचें लावणी छंद।।
छंदों की बौछार है,औ सकारात्मक सोच।
सरल सुबोध काव्यशैली,भाषा मधुर लोच।।
निस्वार्थ गुलाब का मिला है अनोखा प्यार।
नारी तेरे हैं रूप अनेक, जीवन का आधार।।
काव्यसृजन की बनी रंगोली, डाले सावन का झूला।
मानवता ही धर्म हमारा, फिर क्यूँ मानव है भूला।।
सजी हुयी काव्यसुचिता, है शब्दों का सुविस्तार।
समय बड़ा बलवान है भैया, वृद्धा कर रही पुकार।।
सत्यमेव जयते कहे,गायें गौरवगाथा भारत की।
सासू माँ का प्यार मिले तो,बहू बेटी बन जाती।।
##$######$$#######$##
सुनील कुमार अवधिया"मुक्तानिल"
9165550848
5/1/2019
(६)
काव्य शुचिता
विधा--समीक्षा
लेखनी ऐसी चली,
काव्य धारा बहने लगी।
सुचि की काव्य शुचिता,
मन छूकर कहने लगी।
मैं रस की वो प्याली हूँ,
काव्य फलों की डाली हूं।
महक उठे जिससे ये मन,
मैं वो कली मतवाली हूँ।
मैं लावणी छंद गीतिकाहूँ,
गजल सवैया कविता हूँ।
कह मुकरिया चामर छंद,
छंद की बहती सरिता हूँ।
मैने कहा वाह बहुत खूब,
ये काव्य है महकती धूप।
इसकी खुश्बू फैली पटल,
निछावर हूँ देख यह रूप।
इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया, असम
(७)
शुचिता अग्रवाल जी
पुस्तक-काव्य शुचिता
लेखनी की धनी शुचिता जी को बधाई।
निरन्तर मेहनत कर रही हैं ।हर रचना चाहे बेटी के लिए हो या औरत के लिए भावों से भरी हैं।
मानवता को रेखांकित करती हैं ।हमारा धर्म कैसा हो?
मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती हूँ।
(८)
बधाई🌹🌹
काव्य शुचिता की रचईता डा० शुचि संदीप बहन को हार्दिक बधाई, हिन्दी साहित्य जगतके आकाश में आप एक महान कवियत्रीरूपी नक्षत्र रूप में विराजमान हैं ,दर्पण ,मन की बात ,व साहित्य मेध की भांति आपकी यह पुस्तक काव्य शुचिता भी छंदों से सजी पुस्तक कई संवेदन शील मुद्दो पर भी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रही ,इस अनूठी कृति हेतु व नारी संगम का मान बढ़ानें हेतु बहन आपको बहुत बहुत बधाई, आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुये आपको आपकी पुस्तक हेतु दिल से बधाई।
कुमुद श्रीवास्तव वर्मा..
(९)
आदरणीय आदरणीय सुचिता जी आपको बहुत बहुत बधाई आप इसी तरह लिखती रहें मां सरस्वती की कृपा इसी तरह बनी रहे काव्य सुचिता संकलन पुस्तक बहुत ही भावुक छवियां है एक से एक रचना में भावों से रची कई लरिया है रचना अपने आप में अप्रतिम है, माँ शारदे को अर्पण
बहुत बधाई आपको👏🏻👏🏻👏🏻
1 राष्ट्र आराधना विधाता चंद से रचा है
2 गंगा को भावों की गंगा बहकर माँ तेरा द्र्धन किया
3 माँ से स्वरूप माँ ने हर दम बात समझायी है
4 जीवन साथी, का प्रेम समर्पण है वहां है रिष्तों की गहराई
5 बेटियां घर की रौनक होती हैं माँ का अभिमान यही है
6 नारी इस जग की जननी हैं राधेश्यामी चंद
7 सुदर स्वक्छ बनेगा भारत ताटक चंद से
8 सकारात्मक दोहे से सजाया हैं
9 विचार शक्ति को चामर छन्द से पिरोया है
10 जीवन को त्रिभंगी छन्द से रचा है
11 रुक जरा सोच मानव ताटक छंद उजाला किया है
12 गुलाब को काँटो से घिरा हुआ पर उसे खिलना होगा
13 नारी को न्याय देना ही
होगा लावणी छन्द से आभूषित किया है
14 नारी तेरे कितने रूप अनेक
15 हिन्द धरा हिंदी बोली
16जब दीप जले दीबाली चाहे सावन प्रेम, सावन का झूला चाहें हो या रंगोली चौपाई छन्द से रंगी है आदि बहुत सी रचनाएं हैं
माँ सरस्वती की कृपा ऐसे ही बने रहे आप इसी तरह दुनिया में नाम कमाती रहें कई अनेकों छंदों से रचा काव्य सूचिता
बहुत बहुत बधाई आपकों
(१०)
साहित्य संगम संस्थान को सादर समर्पित आदरणीय सुचिसंदीपजी को प्रणाम करते हुए एवं सभी समीक्षक गण को नमन करते हुए एक प्रयास
विधा-दोहा ग़जल (समीक्षा)
विषय-काव्य शुचिता
दिनांक-05.01.2019
दिन-शनिवार
(पर्यावरण सम काव्य)
×××××××××××××××
व्याकुलता इस धरा की, कब समझोगे यार,
शीतल स्वच्छ बयार हित, पेड़ लगाओ चार ।
वृक्ष धरोहर धरा के, धरती के सिंगार,
हरित क्रांति देश में, बंद करो व्यापार।।
जन जीवन संपूर्ण खिन्न, तन मन करे संचार,
जंगल प्रहरी तुम बनो, जन मानस का उद्धार।
फल फूल औषधि रहे, बस इन के दरबार,
पर यह मानव क्यों करत, इनका खुद संहार।
शुचिता रचना काव्य की, कार्य बड़ा महान,
कागज को मत भूलिये, वन से मिलता यार।
नमन सदा है आपको, मेरे शुचि संदीप।
रवि शशि सम चमके सदा, मात शारदे द्वार।
जंगल है आलय समान, रहते सिंह सियार,
मोर,बया,बंदर,भालू, "साधक" सकल संसार।
स्वरचित-
====प्रमोद 'साधक' रमपुरवा(बहराइच)====
(११)
आ0 सुचिता दीदी प्रणाम।
आपकी यह किताब *काव्य शुचिता* नाम के अनुरूप है । इसमें समाज के हितार्थ कल्याणकारी, संदेशप्रद रचनाएँ हैं। बुराइयों के प्रति उत्तम कटाक्ष करती रचनाएँ, मानव को प्रकृति से जोड़ती हुई रचनाएँ, विभिन्न छंदों में छन्दबद्धरचनाएँ, गीत,गीतिका,गजल,मुक्तक, हास्य से ओतप्रोत यह काव्यकृति जिसकी समस्त रचनाएँ मैने गहनता पूर्वक पढ़ी हैं बहुत ही उत्तम काव्य कृति है,जो आपकी काव्यसाधना को सभी पाठकों के समक्ष प्रदर्शित करते हुए पाठकों के हृदय को छूती हुई आपको साहित्य के आकाश तक लेने जाने में सक्षम है।
आपकी इस काव्यकृति की सफलता के लिए हृदयतल से शुभकामना और बधाई देता हूँ।
आपका अनुज
आशीष पाण्डेय ज़िद्दी।
रीवा,मध्यप्रदेश
(१२)
हमारी बहन और संगम में सभी दिल के अजीज एक ऐसी कवियत्री जिनकी किताबो का आने का सिलसिला लगातार जारी है । और उनकी पुस्तक एक साथ कितनी ख़ूबी से सजी हुई रहती है । इस पुस्तक का नाम भी में अपना नाम दिया 'काव्य शुचिता" जिसमे उन्होंने सवैया लावणी गीत छंद कविता हास्य कुण्डलिया सभी को संजोया है । और मेरी दृष्टिकोण में ये सभी व्याकरण की सभी शर्तो को पूरा करते है । उनकी रचनाएँ में नेह की भी बात करती है और प्रणय की भी । उनकी कविता प्रकाश पुंज को भी खोजती है तो उसके रास्तो का भी पता देती है । उनका कवि हृदय काव्य के रहस्य से अठखेलियाँ करता है। उस पर भी अपने विचारों आवेग को सहजता से रखना नही भूलती । उनके छंद मन के तारो से तारतम्य सजाने में विश्वास रखता है । उनके कविताएँ उनके व्यक्तित्व का दस्तावेज है । उनकी विचार देश को, प्रेमी को दिशा देती है शब्दावली में आशा का प्रस्फुटन है तो भाव मे क्रांति । उनके हास्य उनको समकालीनों से उन्हें अलग करता है । उनके शब्द के भाव सरल होते है, और शब्द बिल्कुल आम भाषा के । उनकी रचनाओं में संवेदनशील हृदय की पारदर्शी अभिव्यक्ति है जिसे हर कोई खुद में महसूस करता है । उनकी क़लम दुख-सुख, मिलन-विरह को संजोने में महारत हासिल की हुई नजर आती है । जिसके लिये वो बधाई के पात्र है ।
किसन लाल अग्रवाल
चक्रधरपुर
(१३)
*काव्य संग्रह*
काव्य शुचिता- कवयित्री सुचि संदीप शुचिता
संपादक- आशीष पांडेय जिद्दी
प्रकाशन- साहित्य संगम संस्थान
मूल्य- 200 / रु
सर्वप्रथम सुचि दी को उनके तीसरे काव्य संग्रह *काव्य शुचिता* हेतु हार्दिक बधाई । माँ शारदे की आराधना, देश भक्ति, माँ, बेटी, गंगा मैया, भारत माँ, प्राकृतिक परिवेश , हास्य आधारित रचनाएँ , ये सभी पुस्तक और पाठकों के बीच सम्बन्ध स्थापित करती हैं विभिन्न छंदों पर आधारित रचनाएँ जहाँ इसकी खूबसूरती को बढ़ा रहीं वहीं दूसरी ओर ग़ज़ले मनोभावों को प्रदर्शित कर पाठकों के हृदय के तार कवयित्री की लेखनी से तारतम्य दर्शा रहे हैं ।
कविता की एक पंक्ति देखिए-
*घर संसार बसा कर हमनें, सुख सारा ही पाया है ।*
*रंग बिरंगे फूलों से इस, जीवन को महकाया है ।।*
सुंदर शब्दों द्वारा सहजता से अपनी बातें कहने की कला कवयित्री को बाखूबी आती है जो सभी रचनाओं में दिखती है ।
ग़ज़लों में भी आपकी गहरी पैठ है -
*खिला कर फूल काँटो में, किया आबाद जब तुमने ।*
*इरादों से खिला उपवन तो, वीरानों पे क्या गुजरी ।।*
ऐसे ही बहुत से मर्मस्पर्शी भावों का प्रयोग आपने किया है । भाव और शिल्प दोनों पर ही एक समान अधिकार रखते हुए आपने काव्य शुचिता को लिखा , मुझे पूर्ण विश्वास है कि अवश्य ही ये संग्रह साहित्य जगत में नवायाम रचेगा ।
*समीक्षक*
छाया सक्सेना ' प्रभु '
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