लिपट गये हरि आँचल से अरु, मात यशोमति लाड करे,
गिरिधर लाल लगे अति चंचल, ओढनिया निज आड़ धरे।
निरखत नागर का मुखमण्डल, जाग उठी ममता मन की,
हरख करे सुत अंक लगाकर, भूल गयी सुध ही तन की।
कलरव सी ध्वनि गूँज रही हिय, दूध भरी नदिया उमड़ी,
मधुकर दंत भये सुखकारक, मन्द हवा सुख की घुमड़ी।
उछल रहे यदुनंदन खेलत, खोलत मीचत आँखनियाँ,
हरकत देख रही सुत की वह, खींच रहे जब पैजनियाँ।
जब मुख से हरि दूध गिराकर, खेल रहे बल खाय रहे,
खिलखिल जोर हँसे फिर मोहन, मात -पिता मन भाय रहे।
अनुपम बालक ये अवतारिक, नैन कहे यह बात खरी,
नटवर नागरिया अति सुन्दर, श्यामल सूरत प्रेम भरी।
सखियन नंदित आज भयी सब, चाह रही मुख देखन को,
छुपकर ओट खड़ी निरखे सब, मोहक श्यामल से तन को।
करवट ले मुरलीधर सोवत, मात निहारत खोय रही,
जग 'शुचि' पावन सा लगता अब, द्वार खड़ी कर जोय रही।
डॉ.शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
गिरिधर लाल लगे अति चंचल, ओढनिया निज आड़ धरे।
निरखत नागर का मुखमण्डल, जाग उठी ममता मन की,
हरख करे सुत अंक लगाकर, भूल गयी सुध ही तन की।
कलरव सी ध्वनि गूँज रही हिय, दूध भरी नदिया उमड़ी,
मधुकर दंत भये सुखकारक, मन्द हवा सुख की घुमड़ी।
उछल रहे यदुनंदन खेलत, खोलत मीचत आँखनियाँ,
हरकत देख रही सुत की वह, खींच रहे जब पैजनियाँ।
जब मुख से हरि दूध गिराकर, खेल रहे बल खाय रहे,
खिलखिल जोर हँसे फिर मोहन, मात -पिता मन भाय रहे।
अनुपम बालक ये अवतारिक, नैन कहे यह बात खरी,
नटवर नागरिया अति सुन्दर, श्यामल सूरत प्रेम भरी।
सखियन नंदित आज भयी सब, चाह रही मुख देखन को,
छुपकर ओट खड़ी निरखे सब, मोहक श्यामल से तन को।
करवट ले मुरलीधर सोवत, मात निहारत खोय रही,
जग 'शुचि' पावन सा लगता अब, द्वार खड़ी कर जोय रही।
डॉ.शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
बहुत सुंदर आदरणीया👌👌 इस छंद के बंघारण को कब से ढूंढ रहा था 🙏🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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