Sunday, May 19, 2019

"लावणी छन्द"नारी तेरे रूप अनेक

शीतल जल सा मस्तक ठंडा,आँचल अमृत धार बहे,
काँधे पर जो बोझ उठाया,मिल जुल कर सब भार सहे।

अलग सभी के तौर तरीके,निपुण कार्य सब करती है।
सबकी प्यास बुझाने खातिर,नारी पानी भरती है।

माता सुता बहन पत्नी बन,मंगल कलश उठाती है।
सुख समृद्धि धन वैभव घर में,लक्ष्मी बनकर लाती है।

पीढ़ी दर पीढ़ी नारी ही, घर संसार चलाती है।
यही धरोहर सदियों से वह, अपने माथ सजाती है।

मुख मोड़ा है जंजीरों से, बढ़ते कदम प्रगति पथ पर,
चढ़ने को चल पड़ी निकल कर, सकल सफलता के रथ पर।

नारी का श्रृंगार अनूठा, टीका मस्तक पर सोहे।
कंगन बाली सुरमा लाली, ये सबके मन को मोहे।

संयुक्तम परिवार ढाल बन, नारी बोझ उठाती है।
अपनी-अपनी मर्यादा में, रहकर साथ निभाती है।

अम्बर सा विस्तार कोख का, हरियाली जग में लायी।
धर्म सदा ही समझे अपना, जग की आभा कहलायी।

सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया,असम

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 21 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह कितनी सच्ची बातें ।।बहुत सुंदर लिखा

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