Friday, May 10, 2019

सार छंद,"अतिथि देव"

आज पधारे मेरे अँगना, अतिथि देव हैं प्यारे।
बीवी सँग दो बच्चे लाये,नखरे सबके न्यारे।।
दो कमरों के घर में अपने,देव टिकाये चारों।
अपने बीच लिटाया उनके,बच्चों को भी यारों।।

नये-नये पकवान बनाये,मेवा बरफी लायी।
खूब परोसा,अपने खातिर,बचा नहीं कुछ पायी।।
नींद चैन घर साज-सजावट,सब कुछ उन पर वारा।
फिर भी पति परमेश्वर मुझ पर,खूब चढ़ाते पारा।।

सैर-सपाटा चाट- पकौड़े, होटल घर बन जाता।
प्रेम पिटारा टूट गया था, क्रोध उमड़ कर आता।।
बढ़ती तारीखों की घण्टी, मुझे सुनायी देती।
अब जाएंगे यही स्वयं को, आश्वासन दे लेती।।

बीच मास में बटुआ मेरा, नजर सिकुड़ता आया।
देव नजर दानव से आये, मन मेरा घबराया।।
तन अरु धन से सेवा करती, कमी कहीं हो जाती।
व्यंग बाण की हँसी-ठिठोली, फिर भी मैं मुस्काती।।

 सुचिता अग्रवाल "सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
18-4-2019

विधान ~
सम मात्रिक छन्द,28 मात्राएँ/चरण,16,12 पर यति,
अंत में वाचिक भार 22, कुल चार चरण,
[क्रमागत दो-दो चरण तुकांत ]

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