Tuesday, January 25, 2022

दंडकला छंद 'मधुमास'

 दंडकला छंद

 'मधुमास'


है नव परिवर्तन, सब कुछ नूतन, नवल छटाएँ छाय रही।

सब सुमन सुवासित, भू उल्लासित, शीतल मंद बयार बही।।

खग सारे चहके, उपवन महके, कोयल अगुवाई करती।

मधुरिम तानों से, मृदु गानों से, कुहक-कुहक कर नभ भरती।।


खिलती अमराई, ले अंगड़ाई, पवन हिलोरे ले बहके।

सरसों की क्यारी, दिखती प्यारी, पीत चुनरिया सी लहके।।

देखी रंगरलियाँ, अलि जब कलियाँ, प्रणय गीत गा चूम रहे।

मादक निपुणाई, यह तरुणाई, देख पुष्प सब झूम रहे।।


ऋतुराज सुहाये, कवि मन भाये, काव्य धार कवि आनन में।

है काव्य सँवरता, झर-झर झरता, झरना शब्दों का मन में।।

किसलय का आना, पतझड़ जाना, है नवजीवन गीत यही।

जो खुशियाँ भरदे, दुख सब हरदे, होता सच्चा मीत वही।।


मधुमास सुहाता, हृदय लुभाता, मन अनुरागी नृत्य करे।

बेला अभिसारी, है सुखकारी, अंग-अंग में प्रेम भरे।।

महकाये जल,थल, कोटि सुमन दल, सेज सजाये चाव करे।

शुचि प्रेम परागा, रस अनुरागा, युगल सलोने भाव भरे।।

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दंडकला छंद विधान-


दंडकला छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों  या दो दो पद समतुकांत होते हैं। 

प्रत्येक पद 10,8,14 मात्राओं के तीन यति खंडों में विभाजित रहता है।

प्रथम दो आंतरिक यति की समतुकांतता आवश्यक है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

गुरु + अठकल, अठकल, अठकल + गुरु + लघु + लघु + गुरु


2 2222, 2222, 2222 2112(S) = 

10+ 8+14 = 32 मात्रायें


अठकल 4 4 या 3 3 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना अनुमान्य हैं। 

पदांत सदैव दीर्घ वर्ण (S) से होना आवश्यक है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Wednesday, January 19, 2022

पद्मावती छंद "दीपोत्सव"

 पद्मावती छंद 

 "दीपोत्सव" 

 

दीपोत्सव बीता, पर्व पुनीता, जो खुशियाँ लेकर आया।

आनंदित मन का, अपनेपन का, उजियारा जग में छाया।।

शुभ मंगलदायक, अति सुखदायक, त्योंहारों के रस न्यारे।

उत्सव ये सारे, बने हमारे, जीवन के गहने प्यारे।।


मन का तम हरती, रोशन करती, रौनक जीवन में लाती।

जगमग दीवाली, दे खुशहाली, धरती को अति सरसाती।।

लक्ष्मी घर आती, चाव चढ़ाती, नव जीवन फिर मिलता है।

आनंद कोष का, नवल जोश का, शुचि प्रसून सा खिलता है।।


मानव चित चंचल, प्रेम दृगंचल, उत्सवधर्मी होता है।

सुख नव नित चाहे, मन लहराये, बीज खुशी के बोता है।।

पल आते रहते, जाते रहते, अद्भुत जग की माया है।

जब दुख जाता है, सुख आता है, धूप बाद ही छाया है।।


दीपक से सीखा, त्याग सरीखा, जीवन पर सुखदायी हो।

सब अंधकार की, दुराचार की, मन से सदा विदायी हो।।

रख हरदम आशा, छोड़ निराशा, पर्वों से हमने जाना।

सुखमय दीवाली, फिर खुशहाली, आएगी हमने माना।।

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पद्मावती छंद विधान-


पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति आवश्यक है। 

प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है।

चार चरणों के इस छंद में दो दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

द्विकल + अठकल, अठकल, अठकल + चौकल + दीर्घ वर्ण (S)

2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

महाश्रृंगार छंद 'चुनावी हल्ला'

 महाश्रृंगार छंद

 'चुनावी हल्ला'


चुनावों का है हाहाकार, मचाते नेता खुलकर शोर।

हाथ सब जोड़े बारम्बार, इकठ्ठा भीड़ करे चहुँ ओर।।

प्रलोभन विविध भाँति के बाँट, माँगते जनता से हँस वोट।

रहे कमियाँ सब अपनी छाँट, लुटाकर हरे गुलाबी नोट।।


प्रभावी भाषण है दमदार, नये आश्वासन की है होड़।

श्रेष्ठ अपनी कहते सरकार, प्रबल दावेदारों की दोड़।।

मगर सक्षम का जो दे साथ, वोट का वो असली हकदार।

बेचना मत अपना ईमान, देश का मत करना व्यापार।।


याद मतदाताओं की खींच, लिए आई नेता को गाँव।

मलाई सत्ता की सौगात, बदौलत जिनके सारे ठाँव।।

दिखाते साथी बनकर खास, खिंचाते फोटो चिपकर साथ।

नयन में भर घड़ियाली नीर, मिलाते दीन दुखी से हाथ।।


बने नेता सब तारणहार, भलाई की करते सब बात।

भले दिन मतदाता के चार, अँधेरी आएगी फिर रात।।

चुनावी हल्ले होंगे शान्त, नींद में सोयेंगे फिर लोग।

वर्ष बीतेंगे फिर से पाँच, भोगने दो नेता को भोग।।

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महाश्रृंगार छंद विधान-


महाश्रृंगार छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 16 16 मात्रा के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है। 16 मात्रा के यति खण्ड की मात्रा बाँट ठीक श्रृंगार छंद वाली है, जो 3 - 2 - 8 - 21(ताल) है। इस प्रकार महाश्रृंगार छंद की मात्रा बाँट प्रति पद :-

3 2 2222 21, 3 2 2222 21 = 16+16 = 32 मात्रा सिद्ध होती है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। कोई चाहे तो रोचकता बढाने के लिए प्रथम यति के अंतर्पदों की तुकांतता भी आपस में मिला सकता है।

 

प्रारंभ के त्रिकल के तीनों रूप 111, 12, 21 मान्य है तथा द्विकल 11 या 2 हो सकता है। अठकल 4 4 या 3 3 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना अनुमान्य हैं। 16 मात्रिक चरण का अंत सदैव ताल (21) से होता है।


महाश्रृंगार छंद का 16  मात्रा का  रूप श्रृंगार छंद कहलाता है

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


Wednesday, January 12, 2022

रुचिरा छंद 'भाभी'

 रुचिरा छंद

 'भाभी'


स्नेह सलिल से सींचे घर, पर घर को अपना लेती है।

अपने सुख की कम सोचे, सुख औरों को वो देती है।।

प्रेम समर्पण की मूरत, छवि माँ से जिसकी मिलती है।

वो प्यारी सी भाभी है, जो खुशियाँ देकर खिलती है।।


सहज निभाती रिश्तों को, सुख-दुख की साथी होती है।

तन,मन,धन से कर प्रयास, वो बीज खुशी के बोती है।।

सास-श्वसुर माँ-बाप लगे, सब देवर ननदें हमजोली।

भाभी रस का झरना है, जो मिश्री से भरती झोली।


जब बेटी ब्याही जाती, घर आँगन सूना हो जाता।

उस पतझड़ में भाभी से, फिर से सावन लहरा आता।।

कली रूप बेटी का यदि, तो भाभी फूलों की डाली।

बगिया महका कर रखती, वो ही होती इसकी माली।।


मात-पिता के बाद वही, तम आजीवन घर का हरती।

पीहर की गरिमा उससे, कुल का दीपक रोशन करती।।

द्वार खड़ी दिखती भाभी, तब माँ भूली पड़ जाती है।

उसके हाथों में खुश्बू, वो माँ वाली ही आती है।।

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रुचिरा छंद विधान-


रुचिरा छंद 30 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों  या दो दो पद समतुकांत होते हैं। प्रत्येक पद 14,16 मात्राओं के दो यति खंडों में विभाजित रहता है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + छक्कल, गुरु + अठकल + छक्कल

2222 222, 2 2222 222(S)

8+6, 2+8+6 = 30 मात्रा।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)


छक्कल में (3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं

चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।


अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Monday, January 3, 2022

कर्ण छंद 'नववर्ष उल्लास'

  कर्ण छंद 

'नववर्ष उल्लास'


नव वर्ष मनाओ झूम, बहादो आज सुखों की नैया।

मन हल्का करके मीत, करो हँस मिलकर ताता-थैया।।

है जीवन के दिन चार, खुशी के पल न गवाँओ भैया।

हो हाथों में बस हाथ, बजाओ फिर 'चल छैया-छैया'।।


कुछ कहदो मन की बात, सुनादूँ मैं कुछ तुमको बातें।

आ वक्त बितायें साथ, बड़ी सबसे यह है सौगातें।।

मिल जाये सारे यार, कटेगी धूम मचाकर रातें।

जो करना चाहो नृत्य, चला उल्टी अरु सीधी लातें।।


हो नशा प्रेम का आज, लड़ाई आपस की हम छोड़ें।

कुछ भूले बिसरे यार, उन्हें हम जीवन में फिर जोड़ें।।

आ लगो गले से आज, मिटादें आपस की ये दूरी।

मन से मन का हो मेल, दिलों की चाहत करलें पूरी।।


कल नया साल आरंभ, पुराना आज बिदाई लेगा।

दुख साथ लिये वो जाय, खुशी के नव अवसर यह देगा।।

शुभ स्वागत नवल प्रभात, बधाई गीत सभी मिल गायें।

सब हँसलें मिलकर साथ, करें कोशिश सबको हरषायें।।

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कर्ण छंद विधान -


कर्ण छंद 30 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों  या दो दो पद समतुकांत होते हैं। 


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


2 2222 21, 12221 122 22 (SS)

13+17 = 30 मात्रा।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)


चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।


अंत में दो गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Sunday, January 2, 2022

शोकहर छंद 'बेटी'

 शोकहर छंद

   'बेटी'


लहके तन मन, जैसे उपवन, खुशियाँ रोशन, हो जाती।

बेटी प्यारी, राजदुलारी, जिस घर पैदा, हो आती।।

गुल सी खिलकर, खिल-खिल हँसकर, प्रतिपल घर को, महकाती।

जब वह बोले, मधुरस घोले, आँगन हरदम, चहकाती।।


जिस घर खेली, यह अलबेली, गूँजी बनकर, शहनाई।

लक्ष्मी रूपा, शक्ति स्वरूपा, रौनक घर में, ले आई।।

नेहल मोती, सदा पिरोती, डोर प्रीत की, कहलाई।

हृदय लुभाती, सकल सुहाती, होती बेटी, सुखदाई।।


माँ की बातें, सब सौगातें, धारण मन में, करती है।

अपनेपन से, अन्तर्मन से, दो कुल को वो, वरती है।।

छोड़े नेहर, जाये पर घर, मुश्किल सबकी, हरती है।

छुपकर रोती, धैर्य न खोती, खुशियों से घर, भरती है।।


शौर्य वीरता, मातृ धीरता, उसने मन में, जब ठानी।

लक्ष्मी बाई, पन्नाधाई, बनी पद्मिनी, अभिमानी।।

सौम्य स्वभावी, वृहद प्रभावी, छवि जग ने भी, पहचानी।

बेटी सबला, रही न अबला, विविध रूप की, वो रानी।।

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शोकहर / सुभंगी छंद विधान-


शोकहर छंद 30 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों पद समतुकांत होते हैं। परन्तु जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' के ग्रंथ "छंन्द प्रभाकर" में दिये गये उदाहरण में समतुकांत दो दो पद में निभाया गया है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + अठकल + अठकल + छक्कल

2222, 2222, 2222, 222 (S)

8+8+8+6 = 30 मात्रा।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)

चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।


प्रथम दो आंतरिक यति की समतुकांतता आवश्यक है।


अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।


शोकहर छंद को सुभंगी छंद के नाम से भी जाना जाता है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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