Sunday, November 20, 2022

निश्चल छंद, 'ऋतु शीत'

 निश्चल छंद,

 'ऋतु शीत'


श्वेत अश्व पर चढ़कर आई, फिर ऋतु शीत।

स्वागत करने नवल भोर का, आये मीत।।

गिरि शिखरों पर धवल ओढ़नी, दृश्य पुनीत।

पवन प्रवाहित होकर गाये, मधुरिम गीत।।


शिशिर आगमन पर रिमझिम सी, है बरसात।

अगुवाई कर स्वच्छ करे ज्यूँ, वसुधा गात।।

प्रेम प्रदर्शित करती मिहिका, किसलय चूम।।

पुष्प नवेले ऋतु अभिवादन, करते झूम।


रजत वृष्टि सम हिम कण बरसे, है सुखसार।

ग्रीष्म विदाई करके नाचे, सब नर-नार।।

दिखे काँच सम ताल सरोवर, अनुपम रूप।

उस पर हीरक की छवि देती, उजली धूप।।


होता है आतिथ्य चार दिन, फिर है रोष।

शरद सुंदरी में दिखते हैं, अगणित दोष।।

घिरा कोहरा अविरत ठिठुरन, कम्पित देह।

छूमंतर हो जाता पल में, यह ऋतु नेह।।

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निश्चल छंद विधान-


निश्चल  छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।

यह 16 और 7 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2222 2222, 22S1


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत गुरु लघु अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, October 18, 2022

लावणी छंद, 'हिन्दी'

  "हिन्दी" 

लावणी छंद


भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है।

निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।।

सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है।

जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।।


प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया।

हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।।

अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने।

फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।।


देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी।

हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।।

है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की।

हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।।


ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना।

विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।।

जो पाश्चात्य दौड़ में दौड़े, दया पात्र समझो उनको।

नहीं नागरिक भारत के वो, गर्व न हिन्दी पर जिनको।।


शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Monday, October 10, 2022

शोभन छंद, 'मंगलास्तुति'

 शोभन छंद,

 'मंगलास्तुति'


सर्व मंगल दायिनी माँ, ज्ञान का अवतार।

शब्द सुमनों का चढ़ाऊँ, नित्य मैं नव हार।।

अवतरण तव शुक्ल पंचम, माघ का शुभ मास।

हे शुभा शुभ शारदे माँ, हिय करो नित वास।।


हस्त सजती पुस्तिका शुभ, पद्म आसन श्वेत।

देवता, ऋषि, मुनि रिझाते, गान कर समवेत।।

कर जोड़ तुझको ध्यावते, मग्न हो नर नार।

वागीश्वरी नित हम करें, जयति जय जयकार।।


आशीष तेरा जब मिले, पनपते सुविचार।

दास चरणों की बनाकर, माँ करो उपकार।।

कलुष हरकर माँ मुझे दो, ज्ञान का वरदान।

भाव वाणी से करूँ मैं, काव्य का रस पान।।


काव्य जीवन में बहे ज्यों, गंग की मृदु धार।

खे रही है नाव इसमें, लेखनी पतवार।।

भाव परहित का रखूं मैं, नित रहे यह भान।

साधना की शक्ति दो माँ, छंद का शुचि ज्ञान।।

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शोभन छंद विधान-


शोभन छंद जो कि सिंहिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 14 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

5 2 5 2, 212 1121


पँचकल की संभावित संभावनाएं -

122, 212, 221


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है किंतु इस छंद में 11 को 2 मानने की छूट नहीं है।


अंत में जगण (121) अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Thursday, October 6, 2022

सुमित्र छंद "मेरा भाई"

 सुमित्र छंद

 "मेरा भाई"


बडी खुशी मुझ को, मिला भाइयों का दुलार।

दिखे अलग सबसे, मेरे भाई शानदार।।

लिये खड़ी बहना, जब राखी का नेह थाल।

निहारते अपलक, बहना को हो कर निहाल।।


सुहावना बचपन, स्मर स्मर अब हों लोटपोट।

किये पढाई हम, साथ पाठ सब घोट घोट।।

हँसे हँसाये तो, मौसम आता है बसन्त।

थमे न ये खुशियाँ, पल हो जाये ये अनन्त।।


बड़ा न वो छोटा, मन से हरदम मालदार।

बढ़े वही आगे, सुनकर बहना की पुकार।।

उसे न देखूँ तो, मन हो जाता है उदास।

वही चमक मेरी, मेरे मन का है उजास।।


खुले गगन जैसा, मन भाई का है विशाल।

बने वही ताकत, वो होता है एक ढाल।।

सभी लगे प्यारे, यूँ तो रिश्ते हैं अनेक।

लगे न घर घर सा, जिस घर भाई हो न एक।।

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सुमित्र छंद विधान-


सुमित्र छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 10 और 14 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  इसका चरणादि एवं चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य है।

 दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

121 222, 2222 (अठकल) 2121

10+14=24


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

सुमित्र छंद का अन्य नाम  रसाल छंद भी है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Saturday, August 13, 2022

सारस छंद 'जीवन रहस्य'

 सारस छंद 'जीवन रहस्य' 


कार्य असम्भव कुछ भी, है न कभी हो सकता।

ठान रखो निज मन में, रख प्रतिपल उत्सुकता।।

सोच कभी मत यह लो, मैं हरदम असफल हूँ।

पूर्ण भरोसा यह रख, मैं प्रतिभा, मैं बल हूँ।।


ठेस  कभी लग सकती, लेकिन उठ फिर चलना।

कीच मिले मत घबरा, पंकज बन कर खिलना।।

शौर्य सदा हिय रखना, डरकर तुम मत रुकना।

शीश उठा कर चलना, हार कभी मत झुकना।।


अन्य कभी भी दुख का, कारण हो नहि सकता।

सर्व सुमंगलमय कर, धार रखो नैतिकता।।

धन्य सकल जन होते,  स्वर मधुमय जब बिखरे।

भाव दिखे मुख पर भी, सुंदर आभा निखरे।।


सोच करो निर्णय यह, क्या मिलना है हमको।

ज्योति भरो जीवन में, हर निज मन के तम को।।

भाव रखो उत्तम नित, लक्ष्य भरी आकुलता।

भेद यही शास्वत है, ठान लिया वो मिलता।।


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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, July 26, 2022

सारस छंद, 'संकल्प'

 सारस छंद,

 'संकल्प'


नित्य नया काव्य रचूँ, गीत लिखूँ ओज भरे।

प्रेम भरे शब्द सजे, भाव भरा व्योम झरे।।

लक्ष्य नये धार रखूँ, सृष्टि धवल पृष्ठ लगे।

धन्य धरा आज करूँ, स्वच्छ रुचिर भाव जगे।।


भ्रांति त्यजूँ शांति चखूँ, प्रीत जहाँ शांति वहाँ।

बन्धु लगे लोग सभी, दौड़ रही दृष्टि जहाँ।।

देश सकल रूप नवल, एक सबल राष्ट्र बने।

शुद्ध हवा, प्राण दवा, पेड़ लगे सर्व घने।।


ठान लिया मान लिया, स्वार्थ रहित प्रेम करूँ। 

अंध मिटे रूढि छँटे, ज्ञान भरा दीप धरूँ।।

क्लेश मिटे, दर्प छुटे, द्वेष कटे, कष्ट घटे।

चित्त मलिन स्वच्छ करूँ, हृदय छुपा मैल कटे ।।


ज्ञान परम जान लिया, एक अटल सत्य यही।

मृत्यु निकट नित्य बढ़े, बात यही एक सही।।

सीख यही चित्त धरो, सार भरे ग्रंथ पढो।

प्रेम बढा मानव से, कीर्ति सजित मान गढो।।

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सारस छंद विधान-


सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।

 दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2112 2112, 2112 2112


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है लेकिन इस छंद में 11 को 2 करने की छूट नहीं है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Thursday, June 23, 2022

दिगपाल / मृदुगति छंद, 'पिता'

 दिगपाल / मृदुगति छंद, 

'पिता'


हारा नहीं कभी जो, रुकना न सीख पाया।

संतान को सदा ही, बन वह पिता सजाया।।

वो बीज सृष्टि का है, संसार रचयिता है।

रिश्ते अनेक जग में, लेकिन पिता पिता है।।


अँगुली पकड़ चलाया, काँधे कभी बिठाया।

चलते जिधर गये हम, पाया सदैव साया।।

तकिया बनी भुजाएँ, छाती नरम बिछौना।

घोड़ा कभी बना वो, हँसकर नया खिलौना।।


वो साँझ की प्रतीक्षा, वो ही खिला सवेरा।

उसके बिना न संभव, खुशियों भरा बसेरा।।

उम्मीद पूर्ण दीपक, विश्वास का कवच है।

संबल मिला उसी से, वो स्वप्न एक सच है।।


परिवार की प्रतिष्ठा, तम का करे उजारा।

मोती अलग-अलग हम, धागा पिता हमारा।।

वो नील नभ वही भू, वो सख्त भी नरम है।

संसार के सुखों का, होता पिता चरम है।।


वो है पिता हमें जो, निज लक्ष्य से मिलाता।।

है संविधान घर का, सच राह पर चलाता।

वो शब्द है न कविता, हर ग्रंथ से बड़ा है ।

दुनिया शुरू वहीं से, जिस पथ पिता खड़ा है।।


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दिगपाल छंद / मृदुगति छंद विधान


दिगपाल छंद जो कि मृदुगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2212 122, 2212 122


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, June 14, 2022

मदनाग छंद, 'साइकिल

मदनाग छंद, 

'साइकिल'


सवारी जो प्रथम हमको मिली, सबसे प्यारी।

गुणों की खान ये है साइकिल, लगती न्यारी।।

बना कर संतुलन अपना सही, इस पर बैठें।

बड़े छोटे चलाते सब इसे, खुद में ऐठें।।


सुलभ व्यायाम करवाती चले, आलस हरती।

न फैलाती प्रदूषण साइकिल, फुर्ती भरती।।

खुला आकाश, ठंडी सी हवा, पैडल मारो।

गिरो भी तो उठो आगे बढो, कुछ ना धारो।।


भगाती दूर रोगों को कई, दुख हर लेती।

बढ़ाकर रक्त के संचार को, सेहत देती।।

इसी से आत्मनिर्भरता बढ़े, बढ़ते जाओ।

नवल सोपान पर उन्मुक्त हो, चढ़ते जाओ।।


बजा घंटी हटाओ भीड़ को, राह बनाओ।

बना कर लक्ष्य जीवन में बढो, सीख सिखाओ।।

न घबरा कर कभी भी भीड़ से, थमो न राही।

सवारी साइकिल की कर बनो, 'शुचि' उत्साही।।

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मदनाग छंद विधान-

मदनाग छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 17-8 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


1222 1222 12, 222S = (मदनाग) = 17+8 = 25 मात्रायें।

दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

अंत में गुरु (2) अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Wednesday, June 8, 2022

सुगीतिका छंद, 'मेरे लाल'

 सुगीतिका छंद,

 'मेरे लाल'


लिये खड़ी शुभकामना का, मैं सजाकर थाल।

घड़ी-घड़ी आशीष दूँ यह, तू जिये सौ साल।।

निहाल हूँ पाकर तुम्हे मैं, इस जनम में लाल।

न आँच तुम पर आ सकेगी, हूँ तुम्हारी ढाल।।


तुम्हे बधाई जन्मदिन की, स्वप्न हो साकार।

मिले तुम्हें ऐश्वर्य, खुशियाँ, प्रेम का उपहार।।

नवीन ऊर्जा, स्वस्थ काया, सूर्य सा हो तेज।

सदैव फूलों सी महकती, हो तुम्हारी सेज।।


जड़ें प्रतिष्ठा की बढ़े पर, हो नियत अति नेक।

हृदय सुसेवा, शौर्य जागे, सुप्त हो अविवेक।।

उमंग नित परमार्थ की हो, प्रेरणा हो पास।

भरा रखो हर क्षेत्र में तुम, कार्य का उल्लास।।


रहे बरसती प्रभु कृपा नित, शुद्ध हो आचार।

भरा रहे भंडार धन का, लक्ष्य हो उपकार।।

हँसो हँसाओ प्रेम बाँटो, उच्च यह व्यवहार।

सदा पनपते ही रहे 'शुचि', श्रेष्ठ अति सुविचार।।

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सुगीतिका छंद विधान-


सुगीतिका छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 15-10 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


1 2122*2, 2122 21 = (सुगीतिका) = 15+10 = 25 मात्रा।


दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Wednesday, May 25, 2022

तोटक छंद 'उठ भोर हुई'

तोटक छंद

'उठ भोर हुई'


उठ भोर हुई बगिया महके।

चिड़िया मदमस्त हुई चहके।।

झट आलस त्याग करो अपना।

तब ही सच हो सबका सपना।।


रथ स्वर्णिम सूरज का चमके।

सतरंग धरा पर आ दमके।।

बल, यौवन, स्वस्थ हवा मिलती।

घर-आँगन में खुशियाँ खिलती।।


धरती, गिरि, अम्बर झूम रहे।

बदरा लहरा कर घूम रहे।।

हर दृश्य लगे अति पावन है।

यह भोर बड़ी मनभावन है।


पट मंदिर-मस्जिद के खुलते।

मृदु कोयल के स्वर हैं घुलते।।

तम भाग गया किरणें बिखरी।

नवजीवन पा धरती निखरी।।

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तोटक छंद विधान-


तोटक छंद 12 वर्णों की वर्णिक छंद है।

इसमें चार  सगण होते हैं।

112 112 112 112 = 12 वर्ण। 

चार चरण होते है।

दो- दो या चारों चरण समतुकान्त।

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शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"

तिनसुकिया, असम

Friday, May 13, 2022

गगनांगना छंद 'आखा तीज'

 गगनांगना छंद 

'आखा तीज'


शुक्ल पक्ष बैसाख मास तिथि, तीज सुहावनी।

नूतन शुभ आरंभ कार्य की, है फल दायनी

आखा तीज नाम से जग में, ये विख्यात है।

स्वयं सिद्ध इसके मुहूर्त को, हर जन ध्यात है।।


त्रेता का आरंभ इसी दिन, हरि युग धर्म का।

अक्षय पात्र मिला पांडव को, था धन कर्म का।।

परशुराम का जन्म हुआ वह, पावन रात थी।

शुरू महाभारत की रचना, शुभ सौगात थी।।


वृंदावन पट श्री विग्रह के, दर्शन को खुले।

कभी सुदामा भी इस दिन ही, हरि से आ मिले।।

भू सरसावन माँ गंगा ने, तिथि थी ये चुनी।

विविध कथाएँ दान-पुण्य के, फल की भी सुनी।।


होते ग्रह अनुकूल सभी ही, हरती आपदा।

धन की वर्षा करती तिथि यह, होता फायदा।।

फल प्रदायिनी मंगलदायक, हिन्दू मान्यता।

मनवांछित शुभ फल है देती, दे आरोग्यता।।

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गगनांगना छंद विधान-


गगनांगना छंद 25 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 16 और 9 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2222 2222, 2 2212


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में रगण (212) आवश्यक है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, April 19, 2022

काव्य कौमुदी, 'होली विशेषांक'

काव्य कुञ्ज पटल के साझा काव्य संग्रह "काव्य कौमुदी (होली विशेषांक)" के आभासी संस्करण में प्रकाशित मेरी रचना।

डाउनलोड लिंक:

https://drive.google.com/file/d/1CqcwtO8YV-byK40F3iUrEujyCFz00zjd/view?usp=drivesdk


मरहठा माधवी छंद "होली"

रंग-बिरंगे रंग, लुभाते संग, सजी है टोलियाँ।।
होली का हुड़दंग, बाजते चंग, गूँजती बोलियाँ।
लाल, गुलाबी, हरा, रंग से भरा, गगन मदहोश है।
घन भू को छू जाय, रंग बरसाय, प्रीत का जोश है।।

भीगी-भीगी देह, हृदय में नेह, हाथ पिचकारियाँ।
कर सोलह श्रृंगार, नयन से वार, करे सब नारियाँ।।
पिय गुलाल मल जाय, रहे इतराय, गुलाबी गाल पे।।
झूमे मन अनुराग, उड़े जब फाग, ढोल की ताल पे।

भाँग, पेय मृदु शीत, पिलाकर मीत, करे अठखेलियाँ।
मधुर प्रणय के गीत, बजे संगीत, मने रँगरेलियाँ।।
मन से मन का मेल, रंग का खेल, मिटाये दूरियाँ।
मटके तिरछे नैन, चुराते चैन, चला कर छूरियाँ।।

पर्व अनूठा एक, सीख दे नेक, बुराई छोड़ दें।
हिलमिल रहना साथ, पकड़ कर हाथ, प्रेम से जोड़ दें।।
खुशियों का त्योहार, करे बौछार, प्रेम के रंग की।
हृदय हिलोरे खाय, बहकता जाय, टेर सुन चंग की।।
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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम

मुक्तक, बिहू


कपौ फूल गजरे में शोभित,

मुख सुंदर मनमीत।

बिहू नृत्य कर झूम रहे सब,

सुमधुर गाकर गीत।

पर्व अनूठा असम प्रान्त का, 

प्रेम मधुर बरसाय,

बिहू पर्व में देखी हमने,

मन पर मन की जीत।।

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Monday, April 11, 2022

गीता छंद, "गीता पढ़ने के लाभ"

गीता छंद, 

"गीता पढ़ने के लाभ"


गीता पढ़ें गीता सुनें, गीता करे कल्याण।

पुस्तक इसे समझें नहीं, भगवान के हैं प्राण।।

है दिव्य वाणी कृष्ण की, उद्गार अपरम्पार।

सब सार जीवन का भरा, हर धर्म का आधार।।


उपदेश समता भाव का, निष्कामता का ज्ञान।

सिद्धान्त रत्नों से जड़ित, मन से करें सम्मान।।

यह भेद तोड़े जाति के, कल्याण करना धर्म।

यदि चाहते पथ हो सुगम, समझें इसे ही कर्म।।


पढ़ते रहें धारण करें,नित अर्थ निकले गूढ।

विकसित करे बल, बुद्धि को, रहता न कोई मूढ़।। 

है ज्ञान का रवि रूप यह, निष्काम सेवा भाव।

भव पार निश्चित जो करे, है श्रेष्ठ यह वो नाव।।


संशय हरे चिंता मिटे, दुख शोक होते नष्ट।

अध्यन करे नित तो कटे, सब मूल से ही कष्ट।।

यह क्रोध, ममता, दुष्टता, भय मौत का दे तोड़।

सम्बन्ध गीता से मनुज, अविलम्ब ले तू जोड़।।


गीता छंद विधान -


गीता छंद 26 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 14 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2212 2212, 2212 221 (14+12)


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में ताल (21) आवश्यक है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Thursday, April 7, 2022

विस्तृत जीवन परिचय एवं व्यक्तित्व

 विस्तृत जीवन परिचय एवं व्यक्तित्व-


नाम-  डॉ.शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-

26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)

माता का नाम- स्वर्गीय चंदा देवी ढोलासिया

पिता का नाम-स्वर्गीय शंकरलाल जी ढोलासिया

पति का नाम-श्री संदीप अग्रवाल

पुत्र- सी.ए. रौनक अग्रवाल

पुत्रियाँ- 1.आँचल अग्रवाल  (इंटीरियर डिज़ाइनर)

(विवाह उपरांत आँचल कौशिक मोदी,डिब्रुगढ़)

 2. यशस्वी अग्रवाल 


मेरी आरम्भिक शिक्षा कक्षा सात तक सुजानगढ़ कनोई बालिका विद्यालय से हुई तद्पश्चात मैंने असम के तिनसुकिया में श्री कन्या पाठशाला एवं वीमेंस कॉलेज से स्नातक (बी.ए) तक शिक्षा ग्रहण की।

1993 में मेरा विवाह तिनसुकिया के 'अनुराग' प्रतिस्ठान में श्री संदीप जी से हुआ।

 

साहित्यिक परिचय-


हिन्दी में कविता लेखन की तरफ मेरा रुझान कक्षा सात से ही आरभ हो गया था, समाज में नारियों पर अत्याचार, भेदभाव आदि गम्भीर समस्याओं को देखकर मेरा बालमन द्रवित हो जाता था एवं अपने भावों को कलम के माद्यम से उजागर करने लगी।  पूर्वांचल प्रहरी समाचार पत्र में मेरी पहली रचना भी तभी छपी थी।

विवाह के बाद लेखन कार्य लगभग बंद सा हो गया था।

2014-15 से फिर से लेखन शुरू किया एवं सबसे पहले मैं नारायणी साहित्य अकादमी से जुड़ी फिर मुझे कई प्रतिष्ठित साहित्यिक समूहों से व्हाट्सएप्प के माध्यम से जुड़ कर सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इन्हीं समूहों में मैंने छंद, गजल, गीत, हाइकू, पिरामिड, लघु कथा आदि विधाओं पर लेखनी चलाना सीखा।


हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न हूँ।


वर्तमान में देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ। जिनमें प्रमुख-

जिज्ञासा, काव्य-कुन्ज, आगमन, साहित्य संगम संस्थान, साहित्य सरिता संस्थान प्रयागराज, हिन्दी रक्षक मंच, सोमालोब साहित्य मंच उत्तरप्रदेश, संगम सुवास नारी मंच, जय जय हिंदी बरेली मंडल, असम वरिष्ठ नागरिक मंच, महिला काव्य मंच, कोंच इंटर नेशनल, आदि है।


प्रकाशित पुस्तकें-

1. "दर्पण" 2016 में हिंदुस्तान प्रकाशन, दिल्ली से।

२. "मन की बात" 2017 में ग्रामोदय प्रकाशन, दिल्ली से।

3. "साहित्यमेध" साहित्य संगम संस्थान प्रकाशन,इंदौर से।

4."काव्य शुचिता" 2018 में साहित्य संगम संस्थान प्रकाशन,इंदौर से।

5."काव्यमेध" साहित्य संगम प्रकाशन,इंदौर से।



साझा संग्रह-

१.एक पृष्ठ मेरा भी

२.संगम संकल्पना

३.संगम समीक्षा सुधा

४. अविचल प्रवाह

५.रचनाकार स्मारिका

६. मन की बात (आदित्य नाथ योगी जी पर आधारित)

७. संगम समागम

८.इन्नर

९.संगम स्मारिका

१०. शब्द समिधा

११. भाव स्पंदन

१२. दिल कहता है

१३.लघु कथा संगम

14.बरनाली (साझा उपन्यास, असम की पृष्ठभूमि पर रचित जिसका प्रबन्ध संपादक का कार्य मैंने किया)

१५. नीलांबरी आदि आदि


मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं, समाचार पत्रों में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं।  


सम्मान पत्र-


विद्यावाचस्पति (डॉक्टरेट)" (साहित्य संगम संस्थान द्वारा)

 'समाज भूषण-2018'  ('काव्य रंगोली' द्वारा)

'आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019 ('आगमन' द्वारा)

'प्राइड वीमन ऑफ इंडिया 2022'( 'आगमन' द्वारा)


हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न समुह और संस्थानों से दैनिक लेखन प्रतियोगिता के अंतर्गत लगभग 150 अलंकरण और प्रसस्ति पत्र प्राप्त हो चुके हैं।


मेरे निजी ब्लॉग  काव्यशुचिता पर मेरी रचनाएँ उपलब्ध है।

http://kavyasuchita.blogspot.com


मेरी छंदबद्ध रचनाएँ सविधान हमारी वेबसाइट कविकुल पर उपलब्ध है।

http://kavikul.com

 

पता एवं ई मेल

अनुराग

जी.एन. बी.रोड

पो.ओ. तिनसुकिया (असम)

पिन-786125

Suchisandeep2010@gmail.com


शुभगीता छंद 'जीवन संगिनी'

 शुभगीता छंद

 'जीवन संगिनी'


सदा तुम्हारे साथ है जो, मैं वही आभास हूँ।

अधीर होता जो नहीं है, वो अटल विश्वास हूँ।।

कभी तुम्हारा प्रेम सागर, मैं कभी हूँ प्यास भी।

दिया तुम्हे सर्वस्व लेकिन, मैं तुम्हारी आस भी।।


निवेदिता हूँ संगिनी हूँ, मैं बनी अर्धांगिनी।

प्रभात को सुखमय बनाती, हूँ मधुर मैं यामिनी।।

खुशी तुम्हारी चैन भी मैं, हूँ समर्पण भाव भी।

चली तुम्हारे साथ गति बन, हूँ कभी ठहराव भी।।


रहूँ सहज या हूँ विवश भी, स्वामिनी मैं दासिनी।चुभे उपेक्षा शूल तुमसे, पर रही हिय वासिनी।।

चले विकट जब तेज आँधी, ढाल हाथों में धरूँ।

सुवास पथ पाषाण पर भी, नेह पुष्पों की करूँ।


भुला दिये अधिकार मैंने, याद रख कर्तव्य को।

बनी सुगमता मार्ग की मैं, पा सको गन्तव्य को।।

दिया तुम्हे सम्पूर्ण नर का, मान अरु अभिमान भी।

चले तुम्हारा कुल मुझी से, गर्व हूँ पहचान भी।।


अटूट बन्धन ये हमारा, प्रेम ही आधार है।

बँधा रहे यह स्नेह धागा, यह सुखी संसार है।।

सुखी रहे दाम्पत्य अपना, भावना यह मूल है।

मिले हमेशा प्रेम पति का, तो कहाँ फिर शूल है।।

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शुभगीता छंद विधान-


शुभ गीता 27 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

1 2122 2122, 2122 212(S1S) (15+12)


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है किंतु अंत में 212 आना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


Sunday, March 27, 2022

शुद्ध गीता छंद, "गंगा घाट"

 शुद्ध गीता छंद- 

"गंगा घाट"


घाट गंगा का निहारूँ, देखकर मैं आर पार।

पुण्य सलिला, श्वेतवर्णा, जगमगाती स्वच्छ धार।।

चमचमाती रेणुका का, रूप सतरंगी पुनीत।

रत्न सारे ही जड़ित हों, हो रहा ऐसा प्रतीत।।


मार्ग में पाषाण गहरे, है पड़े देखे हजार।

लाख बाधाएँ हटाती, उफ न करती एक बार।।

लक्ष्य साधे बढ़ रही वो, हर चुनौती नित्य तोड़।

ले रही गन्तव्य अपना, पार कर रोड़े करोड़।।


वो न रुकती वो न थकती, बढ़ रही पथ चूम-चूम।

जल तरंगे एक ही धुन, गा रही है झूम-झूम।।

शब्द गहरे गंग ध्वनि के, सुन रही मैं बार-बार।

"बढ़ चलो अब बढ़ चलो तुम", कह रही अविराम धार।।


आ रहे हैं भक्त लेकर, आरती अरु पुष्प थाल।

पा रहे सानिध्य माँ का, हो रहे सारे निहाल।।

स्नान तन मन का निराला, है सँवरती कर्म रेख।

हो रहा पुलकित हृदय अति, भाव शुचिता देख-देख।।

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शुद्ध गीता छंद विधान- 


शुद्ध गीता 27 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


2122 2122, 2122 2121 (14+13)


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Monday, March 21, 2022

तोमर छंद 'सुशिक्षा'

 तोमर छंद

 'सुशिक्षा'


अपनायें नवल जोश।

रखना है हमें होश।।

आडम्बर बुरी बात।

सदियों तक करे घात।।


कठपुतली बने लोग।

भूल जीवन उपयोग।।

अंधों की दौड़ छोड़।

लो अपनी राह मोड़।।


ज्ञान की आंखें खोल।

सत्य का समझो मोल।।

कौन सच झूठा कौन।

बैठ मत अब तू मौन।।


जीवन में सदाचार।

मानव तुम रखो धार।।

सत्कर्म करना धर्म।

लो समझ सीधा मर्म।।

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तोमर छंद विधान –

तोमर छंद 12 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है।  इसकी मात्रा विन्यास निम्न है-

 द्विकल-सप्तकल-3 (केवल 21)

(द्विकल में 2 या 11 मान्य तथा सप्तकल का 1222, 2122, 2212,2221 में से कोई भी रूप हो सकता है।)

अंत ताल (21) से आवश्यक होता है।

चार चरण। दो दो समतुकांत।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Saturday, February 26, 2022

शंकर छंद 'नश्वर काया'

 शंकर छंद 

 'नश्वर काया'


माटी में मिल जाना सबको, मनुज मत तू भूल।

काया का अभिमान बुरा है, बनेगी यह धूल।।

चले गये कितने ही जग से, नित्य जाते लोग।

बारी अपनी भी है आनी, अटल यह संयोग।।


हाड़-माँस का पुतला काया, बनेगा जब राख।

ममता, माया काम न आये, साधन व्यर्थ लाख।।

नश्वर जग से अपनेपन का, जोड़ मत संबंध।

जितनी सकते उतनी फैला, सद्गुण सरस सुगंध।।


मिथ्या आडम्बर के पीछे, भागना तू छोड़।

जिस पथ पूँजी राम नाम की, पग भी उधर मोड़।।

सत्य भान ही दिव्य ज्ञान है, चिंतन अमृत जान।

स्वयं स्वयं में देख झाँककर, सच स्वयं पहचान।।


भाड़े का घर तन को समझो, मालिकाना त्याग।

सत् चित अरु आनंद  रूप से, हृदय में हो राग।।

आत्मबोध से भवसागर को, बावरे कर पार।

तन-मन अपना निर्मल रखकर, शुचिता रूप धार।।


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शंकर छंद विधान-


शंकर छंद 26 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + अठकल, सतकल + गुरु + लघु


शंकर- 8 +8, 7 + 2 + 1 (16+10)


अठकल में (4+4 या 3+3+2 )दोनों रूप मान्य है।


सतकल में (1222, 2122, 2212, 2221) चारों रूप मान्य है।


अंत में  गुरु-लघु (21) आवश्यक है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Sunday, February 20, 2022

मरहठा माधवी छंद "होली"


 मरहठा माधवी छंद

 "होली"


रंग-बिरंगे रंग, लुभाते संग, सजी है टोलियाँ।।

होली का हुड़दंग, बाजते चंग, गूँजती बोलियाँ।

लाल, गुलाबी, हरा, रंग से भरा, गगन मदहोश है।

घन भू को छू जाय, रंग बरसाय, प्रीत का जोश है।।


भीगी-भीगी देह, हृदय में नेह, हाथ पिचकारियाँ।

कर सोलह श्रृंगार, नयन से वार, करे सब नारियाँ।।

पिय गुलाल मल जाय, रहे इतराय, गुलाबी गाल पे।।

झूमे मन अनुराग, उड़े जब फाग, ढोल की ताल पे।


भाँग, पेय मृदु शीत, पिलाकर मीत, करे अठखेलियाँ।

मधुर प्रणय के गीत, बजे संगीत, मने रँगरेलियाँ।।

मन से मन का मेल, रंग का खेल, मिटाये दूरियाँ।

मटके तिरछे नैन, चुराते चैन, चला कर छूरियाँ।।


पर्व अनूठा एक, सीख दे नेक, बुराई छोड़ दें।

हिलमिल रहना साथ, पकड़ कर हाथ, प्रेम से जोड़ दें।।

खुशियों का त्योहार, करे बौछार, प्रेम के रंग की।

हृदय हिलोरे खाय, बहकता जाय, टेर सुन चंग की।।

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मरहठा माधवी छंद विधान-


मरहठा माधवी छंद 29 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


अठकल + त्रिकल, त्रिकल + गुरु + त्रिकल, त्रिकल + गुरु + गुरु + लघु + गुरु(S)


8 3, 3 2 3, 3 2 2 1 2 (S) 

(11+8+10)


प्रथम दो अन्तर्यति तुकांतता आवश्यक है।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।

त्रिकल 21, 12, 111 हो सकता है तथा द्विकल 2 या 11 हो सकता है।


अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, February 8, 2022

विद्या छंद 'मीत संवाद'

 विद्या छंद 

'मीत संवाद'


सुना मीत प्रेम का गीत, आ महका दें मधुशाला।

खुले आज हृदय के द्वार, ले हाथों में मधु प्याला।।

बढ़ो मीत चूम लो फूल, बन मधुकर तुम मतवाला।

करो नृत्य झूम कर आज, रख होठों पर फिर हाला।।


चलो साथ पकड़ लो हाथ, कह दो मन की सब बातें।

बजे आज सुखद सब साज, हो खुशियों की बरसातें।

बहे प्रेम गंग की धार, हम गोता एक लगायें।

कटी जाय उम्र की डोर, मन में नव जोश जगायें।।


लगी होड़ रहा जग दौड़, गिर उठकर ही सब सीखा।।

लगे स्वाद कभी बेस्वाद, है जीवन मृदु कुछ तीखा।

कभी छाँव कभी है धूप, सुख-दुख सारे कहने हैं।

मधुर स्वप्न नयन में धार, फिर मधु झरने बहने हैं।


रहे डोल जगत के लोग, जग मधु का रूप नशीला।

पथिक आय चला फिर जाय, है अद्भुत सी यह लीला।।

रहे शेष दिवस कुछ यार, जग छोड़ हमें चल जाना।

करें नृत्य हँसें हम साथ, गा कर मनभावन गाना।।

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विद्या छंद विधान-


विद्या छंद 28 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


122 (यगण)+ लघु + त्रिकल + चौकल + लघु , गुरु + छक्कल + लघु + लघु + गुरु + गुरु


1221 3 221, 2 2221 1SS



चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।

छक्कल (3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं।


अंत में दो गुरु (22) अनिवार्य होता है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Sunday, February 6, 2022

धारा छंद 'तिरंगा'

 धारा छंद

 'तिरंगा'


लहर-लहर लहराता जाय, झंडा भारत का प्यारा।

अद्भुत लगती इसकी शान, फहराता दिखता न्यारा।।

शौर्य वीरता की पहचान, आजादी का द्योतक है।

भारत माँ का है यह भाल, दुश्मन का अवरोधक है।।


तीन रंग में वर्णित गूढ़, ध्वज परिभाषित करता है।

भारत की गरिमा का सार, यह रंगों में भरता है।।

केशरिया वीरों के गीत, उल्लासित होकर गाता।

शौर्य, शक्ति, साहस, उत्सर्ग, जन अंतस में भर जाता।।


श्वेत वर्ण सिखलाता प्रेम, सत्य, अहिंसा, मानवता।

देता जग को यह संदेश, छोड़ो मन की दानवता।।

हरा रंग खुशहाली रूप, भारत का दिखलाता है।

रिद्धि-सिद्धि के प्रेरक मंत्र, लहरा कर सिखलाता है।।


नीला चक्र सुशासन, न्याय, कर्म शक्ति की शुचि छाया।

नव विकास को है गतिशील, ध्वज पर रवि बन लहराया।।

निज गौरव, परिचय, अभिमान, मिला तिरंगे से हमको।

शीश झुकाकर करें प्रणाम, सब भारतवासी तुमको।।

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धारा छंद विधान-


धारा छंद 29 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + छक्कल + लघु, अठकल + छक्कल(S)

2222 2221, 2222 222 (S)


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।

छक्कल (3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं।


अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, January 25, 2022

दंडकला छंद 'मधुमास'

 दंडकला छंद

 'मधुमास'


है नव परिवर्तन, सब कुछ नूतन, नवल छटाएँ छाय रही।

सब सुमन सुवासित, भू उल्लासित, शीतल मंद बयार बही।।

खग सारे चहके, उपवन महके, कोयल अगुवाई करती।

मधुरिम तानों से, मृदु गानों से, कुहक-कुहक कर नभ भरती।।


खिलती अमराई, ले अंगड़ाई, पवन हिलोरे ले बहके।

सरसों की क्यारी, दिखती प्यारी, पीत चुनरिया सी लहके।।

देखी रंगरलियाँ, अलि जब कलियाँ, प्रणय गीत गा चूम रहे।

मादक निपुणाई, यह तरुणाई, देख पुष्प सब झूम रहे।।


ऋतुराज सुहाये, कवि मन भाये, काव्य धार कवि आनन में।

है काव्य सँवरता, झर-झर झरता, झरना शब्दों का मन में।।

किसलय का आना, पतझड़ जाना, है नवजीवन गीत यही।

जो खुशियाँ भरदे, दुख सब हरदे, होता सच्चा मीत वही।।


मधुमास सुहाता, हृदय लुभाता, मन अनुरागी नृत्य करे।

बेला अभिसारी, है सुखकारी, अंग-अंग में प्रेम भरे।।

महकाये जल,थल, कोटि सुमन दल, सेज सजाये चाव करे।

शुचि प्रेम परागा, रस अनुरागा, युगल सलोने भाव भरे।।

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दंडकला छंद विधान-


दंडकला छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों  या दो दो पद समतुकांत होते हैं। 

प्रत्येक पद 10,8,14 मात्राओं के तीन यति खंडों में विभाजित रहता है।

प्रथम दो आंतरिक यति की समतुकांतता आवश्यक है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

गुरु + अठकल, अठकल, अठकल + गुरु + लघु + लघु + गुरु


2 2222, 2222, 2222 2112(S) = 

10+ 8+14 = 32 मात्रायें


अठकल 4 4 या 3 3 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना अनुमान्य हैं। 

पदांत सदैव दीर्घ वर्ण (S) से होना आवश्यक है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Wednesday, January 19, 2022

पद्मावती छंद "दीपोत्सव"

 पद्मावती छंद 

 "दीपोत्सव" 

 

दीपोत्सव बीता, पर्व पुनीता, जो खुशियाँ लेकर आया।

आनंदित मन का, अपनेपन का, उजियारा जग में छाया।।

शुभ मंगलदायक, अति सुखदायक, त्योंहारों के रस न्यारे।

उत्सव ये सारे, बने हमारे, जीवन के गहने प्यारे।।


मन का तम हरती, रोशन करती, रौनक जीवन में लाती।

जगमग दीवाली, दे खुशहाली, धरती को अति सरसाती।।

लक्ष्मी घर आती, चाव चढ़ाती, नव जीवन फिर मिलता है।

आनंद कोष का, नवल जोश का, शुचि प्रसून सा खिलता है।।


मानव चित चंचल, प्रेम दृगंचल, उत्सवधर्मी होता है।

सुख नव नित चाहे, मन लहराये, बीज खुशी के बोता है।।

पल आते रहते, जाते रहते, अद्भुत जग की माया है।

जब दुख जाता है, सुख आता है, धूप बाद ही छाया है।।


दीपक से सीखा, त्याग सरीखा, जीवन पर सुखदायी हो।

सब अंधकार की, दुराचार की, मन से सदा विदायी हो।।

रख हरदम आशा, छोड़ निराशा, पर्वों से हमने जाना।

सुखमय दीवाली, फिर खुशहाली, आएगी हमने माना।।

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पद्मावती छंद विधान-


पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति आवश्यक है। 

प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है।

चार चरणों के इस छंद में दो दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

द्विकल + अठकल, अठकल, अठकल + चौकल + दीर्घ वर्ण (S)

2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

महाश्रृंगार छंद 'चुनावी हल्ला'

 महाश्रृंगार छंद

 'चुनावी हल्ला'


चुनावों का है हाहाकार, मचाते नेता खुलकर शोर।

हाथ सब जोड़े बारम्बार, इकठ्ठा भीड़ करे चहुँ ओर।।

प्रलोभन विविध भाँति के बाँट, माँगते जनता से हँस वोट।

रहे कमियाँ सब अपनी छाँट, लुटाकर हरे गुलाबी नोट।।


प्रभावी भाषण है दमदार, नये आश्वासन की है होड़।

श्रेष्ठ अपनी कहते सरकार, प्रबल दावेदारों की दोड़।।

मगर सक्षम का जो दे साथ, वोट का वो असली हकदार।

बेचना मत अपना ईमान, देश का मत करना व्यापार।।


याद मतदाताओं की खींच, लिए आई नेता को गाँव।

मलाई सत्ता की सौगात, बदौलत जिनके सारे ठाँव।।

दिखाते साथी बनकर खास, खिंचाते फोटो चिपकर साथ।

नयन में भर घड़ियाली नीर, मिलाते दीन दुखी से हाथ।।


बने नेता सब तारणहार, भलाई की करते सब बात।

भले दिन मतदाता के चार, अँधेरी आएगी फिर रात।।

चुनावी हल्ले होंगे शान्त, नींद में सोयेंगे फिर लोग।

वर्ष बीतेंगे फिर से पाँच, भोगने दो नेता को भोग।।

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महाश्रृंगार छंद विधान-


महाश्रृंगार छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 16 16 मात्रा के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है। 16 मात्रा के यति खण्ड की मात्रा बाँट ठीक श्रृंगार छंद वाली है, जो 3 - 2 - 8 - 21(ताल) है। इस प्रकार महाश्रृंगार छंद की मात्रा बाँट प्रति पद :-

3 2 2222 21, 3 2 2222 21 = 16+16 = 32 मात्रा सिद्ध होती है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। कोई चाहे तो रोचकता बढाने के लिए प्रथम यति के अंतर्पदों की तुकांतता भी आपस में मिला सकता है।

 

प्रारंभ के त्रिकल के तीनों रूप 111, 12, 21 मान्य है तथा द्विकल 11 या 2 हो सकता है। अठकल 4 4 या 3 3 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना अनुमान्य हैं। 16 मात्रिक चरण का अंत सदैव ताल (21) से होता है।


महाश्रृंगार छंद का 16  मात्रा का  रूप श्रृंगार छंद कहलाता है

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम


Wednesday, January 12, 2022

रुचिरा छंद 'भाभी'

 रुचिरा छंद

 'भाभी'


स्नेह सलिल से सींचे घर, पर घर को अपना लेती है।

अपने सुख की कम सोचे, सुख औरों को वो देती है।।

प्रेम समर्पण की मूरत, छवि माँ से जिसकी मिलती है।

वो प्यारी सी भाभी है, जो खुशियाँ देकर खिलती है।।


सहज निभाती रिश्तों को, सुख-दुख की साथी होती है।

तन,मन,धन से कर प्रयास, वो बीज खुशी के बोती है।।

सास-श्वसुर माँ-बाप लगे, सब देवर ननदें हमजोली।

भाभी रस का झरना है, जो मिश्री से भरती झोली।


जब बेटी ब्याही जाती, घर आँगन सूना हो जाता।

उस पतझड़ में भाभी से, फिर से सावन लहरा आता।।

कली रूप बेटी का यदि, तो भाभी फूलों की डाली।

बगिया महका कर रखती, वो ही होती इसकी माली।।


मात-पिता के बाद वही, तम आजीवन घर का हरती।

पीहर की गरिमा उससे, कुल का दीपक रोशन करती।।

द्वार खड़ी दिखती भाभी, तब माँ भूली पड़ जाती है।

उसके हाथों में खुश्बू, वो माँ वाली ही आती है।।

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रुचिरा छंद विधान-


रुचिरा छंद 30 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों  या दो दो पद समतुकांत होते हैं। प्रत्येक पद 14,16 मात्राओं के दो यति खंडों में विभाजित रहता है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + छक्कल, गुरु + अठकल + छक्कल

2222 222, 2 2222 222(S)

8+6, 2+8+6 = 30 मात्रा।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)


छक्कल में (3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं

चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।


अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Monday, January 3, 2022

कर्ण छंद 'नववर्ष उल्लास'

  कर्ण छंद 

'नववर्ष उल्लास'


नव वर्ष मनाओ झूम, बहादो आज सुखों की नैया।

मन हल्का करके मीत, करो हँस मिलकर ताता-थैया।।

है जीवन के दिन चार, खुशी के पल न गवाँओ भैया।

हो हाथों में बस हाथ, बजाओ फिर 'चल छैया-छैया'।।


कुछ कहदो मन की बात, सुनादूँ मैं कुछ तुमको बातें।

आ वक्त बितायें साथ, बड़ी सबसे यह है सौगातें।।

मिल जाये सारे यार, कटेगी धूम मचाकर रातें।

जो करना चाहो नृत्य, चला उल्टी अरु सीधी लातें।।


हो नशा प्रेम का आज, लड़ाई आपस की हम छोड़ें।

कुछ भूले बिसरे यार, उन्हें हम जीवन में फिर जोड़ें।।

आ लगो गले से आज, मिटादें आपस की ये दूरी।

मन से मन का हो मेल, दिलों की चाहत करलें पूरी।।


कल नया साल आरंभ, पुराना आज बिदाई लेगा।

दुख साथ लिये वो जाय, खुशी के नव अवसर यह देगा।।

शुभ स्वागत नवल प्रभात, बधाई गीत सभी मिल गायें।

सब हँसलें मिलकर साथ, करें कोशिश सबको हरषायें।।

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कर्ण छंद विधान -


कर्ण छंद 30 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों  या दो दो पद समतुकांत होते हैं। 


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-


2 2222 21, 12221 122 22 (SS)

13+17 = 30 मात्रा।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)


चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।


अंत में दो गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Sunday, January 2, 2022

शोकहर छंद 'बेटी'

 शोकहर छंद

   'बेटी'


लहके तन मन, जैसे उपवन, खुशियाँ रोशन, हो जाती।

बेटी प्यारी, राजदुलारी, जिस घर पैदा, हो आती।।

गुल सी खिलकर, खिल-खिल हँसकर, प्रतिपल घर को, महकाती।

जब वह बोले, मधुरस घोले, आँगन हरदम, चहकाती।।


जिस घर खेली, यह अलबेली, गूँजी बनकर, शहनाई।

लक्ष्मी रूपा, शक्ति स्वरूपा, रौनक घर में, ले आई।।

नेहल मोती, सदा पिरोती, डोर प्रीत की, कहलाई।

हृदय लुभाती, सकल सुहाती, होती बेटी, सुखदाई।।


माँ की बातें, सब सौगातें, धारण मन में, करती है।

अपनेपन से, अन्तर्मन से, दो कुल को वो, वरती है।।

छोड़े नेहर, जाये पर घर, मुश्किल सबकी, हरती है।

छुपकर रोती, धैर्य न खोती, खुशियों से घर, भरती है।।


शौर्य वीरता, मातृ धीरता, उसने मन में, जब ठानी।

लक्ष्मी बाई, पन्नाधाई, बनी पद्मिनी, अभिमानी।।

सौम्य स्वभावी, वृहद प्रभावी, छवि जग ने भी, पहचानी।

बेटी सबला, रही न अबला, विविध रूप की, वो रानी।।

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शोकहर / सुभंगी छंद विधान-


शोकहर छंद 30 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों पद समतुकांत होते हैं। परन्तु जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' के ग्रंथ "छंन्द प्रभाकर" में दिये गये उदाहरण में समतुकांत दो दो पद में निभाया गया है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + अठकल + अठकल + छक्कल

2222, 2222, 2222, 222 (S)

8+8+8+6 = 30 मात्रा।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)

चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।


प्रथम दो आंतरिक यति की समतुकांतता आवश्यक है।


अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।


शोकहर छंद को सुभंगी छंद के नाम से भी जाना जाता है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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