Sunday, December 12, 2021

कमंद छंद "परिवार"

 कमंद छंद 

"परिवार"


सबसे प्यारा है परिवार, जहाँ है खुशियाँ जग की सारी।

रहते मिलजुल हम सब साथ, यही है जीवन की फुलवारी।।

है जीवन का यह आधार, इसी ने रीति-नीति सिखलाई।

जीने की सब राहें नेक, इसी ने हमको है दिखलाई।।


आशाओं का उज्वल व्योम, उड़ानें लक्ष्यों की हम लेते।

अगर किसी में कम सामर्थ्य, सहारा मिलकर परिजन देते।।

विपदाओं की आये बाढ, हमारे काम स्वजन ही आते।

बीच भँवर  में अटकी नाव, सहायक बनते रिश्ते नाते।।


माँ की ममता ठंडी छाँव, बिछौना आँचल का कर डाले।

संतानों पर सब कुछ वार, पिता दुख सहकर भी घर पाले।।

दादा दादी ने संस्कार, सिखाये अनुभव कर के सारे।

भाई हो जब अपने साथ, अनेकों दुश्मन हमसे हारे।।


ये रिश्ते हैं प्रभु की देन, सँजोकर रखना धर्म हमारा।

इन्हें निभाना पहला कर्म, लुटादें तन, मन, धन हम सारा।।

आपस में मृदु हो व्यवहार, यही धन जीवन भर का होता।

आदर, ममता, करुणा, त्याग, न हो तो घर भी गरिमा खोता।।

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कमंद छंद विधान-


कमंद छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + छक्कल + लघु, यगण(122) +अठकल + गुरु गुरु (SS)

2222 2221, 122 2222 22 (SS)


छक्कल (3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं।

अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)

अंत में दो गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Tuesday, December 7, 2021

तंत्री छंद 'दुल्हन

 तंत्री छंद

 'दुल्हन'


नई नवेली, हूँ अलबेली, खिली-खिली, मैं दुल्हन प्यारी।

छैल-छबीली, आँखें नीली, मतवाली, नव दिखती न्यारी।।

नित्य सँवरता, रूप उभरता, देख जिसे, हूँ रहती खोई।

अल्हड़ यौवन, अंग सुघड़पन, उपासना, कवि की हूँ कोई।।


मन सतरंगा, निर्मल गंगा, पुनि-पुनि नव, रस धार बहाये।

पायल की ध्वनि, पिक सी चितवनि, मधुर गीत, सुर में ज्यूँ गाये।।

बदन सुवासित, मन उल्लासित, हृदय मेघ, झर झर कर बरसे।

आतुर नैना, खोवे चैना, पिय की छवि, अब देखन तरसे।।


मन अति व्याकुल, होवे आकुल, परिणय की, शुभ सुखद घड़ी है।

खुशियाँ वारे, परिजन सारे, गीतों की, मृदु प्रेम झड़ी है।।

छेड़े सखियाँ, पिय की बतियाँ, कर कर के, वे हूक जगाएँ।

मधुर मिलन की, प्रीत सजन की, मनवा में, वे खूब बढाएँ।।


माँ की ममता, बचपन रमता, छोड़ चली, कुल नया बसाने।

इक पर घर पर, अपने वर पर, दुनिया की, हर खुशी लुटाने।।

है अभिलाषा, मन में आशा, अपना घर, मैं महका  लूँगी।

हाथ हाथ में, पिया साथ में, घर आँगन, मैं चहका दूँगी।।

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तंत्री छंद विधान-


तंत्री छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


प्रत्येक पद क्रमशः 8, 8, 6, 10 मात्राओं के चार यति खंडों में विभाजित रहता है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है- 

अठकल + अठकल + छक्कल + द्विकल + अठकल


2222, 2222, 222, 2 2222

8+8+6+10 = 32 मात्रायें।


द्विकल में (2 या 11 )दोनों रूप मान्य है।

छक्कल में  (3+3 या 4+2 या 2+4) तीनों रूप मान्य है।

अठकल में (4+4 या 3+3+2 )दोनों मान्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

Sunday, December 5, 2021

लीलावती छंद 'मारवाड़ की नार'

 लीलावती छंद 

 'मारवाड़ की नार'


हूँ मारवाड़ की एक नार, मैं अति बलशाली धीर वीर।

पी सकती अपना अहम घूँट, दुख पीड़ा मन की सकल पीर।।

पर सेवा मेरा परम धर्म, मन मानवता की गंग धार।

जब तक जीवन की साँस साथ, मैं नहीं मानती कभी हार।।


मैं सहज शांति प्रिय रूपवान, है सीधी मेरी चाल-ढाल।

निज कर्तव्यों की करूँ बात, सब अधिकारों को भूल-भाल।।

हूँ स्नेह सिंधु की एक बूँद, चित चंचलता की तेज धार।

अति भावुक मेरा हृदय जान, जो समझे केवल प्रेम सार।।


मैं लज्जा जेवर रखूँ धार, हूँ सहनशक्ति का मूर्त रूप।

रिश्तों पर जीवन सकल वार, तम हरकर हरदम रखूँ धूप।।

मैं छैल छबीली लता एक, घर मेरा जैसे कृष्ण कुंज।

हर संकट में मैं बनूँ ढाल, हूँ छोटा सा बस शक्ति पुंज।।


लेकर परिजन का पूर्ण भार, घर साम रखूँ यह लक्ष्य एक।

है धर्म-कर्म का प्रबल जोश, मन को निष्ठा से प्रीत नेक।।

यम से भी पति के प्राण छीन, ला सकती पतिव्रत नियम मान।

'शुचि' मारवाड़ की सुता वीर, अरि का मुझको बस प्रलय जान।।

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लीलावती छंद विधान-


लीलावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है- 

द्विकल+ अठकल+ त्रिकल+ ताल (21), द्विकल+ अठकल+ त्रिकल+ ताल (21)


द्विकल में 2 और 11 दोनों मान्य है।

अठकल में 4+4, 3+3+2 दोनों मान्य है।

त्रिकल में 2+1, 1+2, 111 तीनों रूप मान्य है।


2 2222 3 21, 2 2222 3 21

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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