Tuesday, December 7, 2021

तंत्री छंद 'दुल्हन

 तंत्री छंद

 'दुल्हन'


नई नवेली, हूँ अलबेली, खिली-खिली, मैं दुल्हन प्यारी।

छैल-छबीली, आँखें नीली, मतवाली, नव दिखती न्यारी।।

नित्य सँवरता, रूप उभरता, देख जिसे, हूँ रहती खोई।

अल्हड़ यौवन, अंग सुघड़पन, उपासना, कवि की हूँ कोई।।


मन सतरंगा, निर्मल गंगा, पुनि-पुनि नव, रस धार बहाये।

पायल की ध्वनि, पिक सी चितवनि, मधुर गीत, सुर में ज्यूँ गाये।।

बदन सुवासित, मन उल्लासित, हृदय मेघ, झर झर कर बरसे।

आतुर नैना, खोवे चैना, पिय की छवि, अब देखन तरसे।।


मन अति व्याकुल, होवे आकुल, परिणय की, शुभ सुखद घड़ी है।

खुशियाँ वारे, परिजन सारे, गीतों की, मृदु प्रेम झड़ी है।।

छेड़े सखियाँ, पिय की बतियाँ, कर कर के, वे हूक जगाएँ।

मधुर मिलन की, प्रीत सजन की, मनवा में, वे खूब बढाएँ।।


माँ की ममता, बचपन रमता, छोड़ चली, कुल नया बसाने।

इक पर घर पर, अपने वर पर, दुनिया की, हर खुशी लुटाने।।

है अभिलाषा, मन में आशा, अपना घर, मैं महका  लूँगी।

हाथ हाथ में, पिया साथ में, घर आँगन, मैं चहका दूँगी।।

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तंत्री छंद विधान-


तंत्री छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


प्रत्येक पद क्रमशः 8, 8, 6, 10 मात्राओं के चार यति खंडों में विभाजित रहता है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है- 

अठकल + अठकल + छक्कल + द्विकल + अठकल


2222, 2222, 222, 2 2222

8+8+6+10 = 32 मात्रायें।


द्विकल में (2 या 11 )दोनों रूप मान्य है।

छक्कल में  (3+3 या 4+2 या 2+4) तीनों रूप मान्य है।

अठकल में (4+4 या 3+3+2 )दोनों मान्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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