Tuesday, May 21, 2019

रास छन्द, "कृष्ण कन्हाई"


"रास छन्द"

रास रचैया,गोकुल वासी, सांवरिया।
सखियाँ सारी, हो जाती है, बावरिया।।

राधा सुध बुध, खो कर बैठी, मधुबन में।
मोहन प्यारा, बैठ गया है, चितवन में ।।

वृंदावन में, धूम मचा कर ,छल करते ।
मटकी फोड़े, माखन खाए, हठ करते।।

खेल खेल में, बाधाओं से, लड़ पड़ते।
अवतारी प्रभु ,बाल रूप में, थे लड़ते।।

कृष्ण रूप में,लीला खेली,अद्भुत है
मात देवकी, मात यशोदा, का सुत है ।

नमन करे 'शुचि', हाथ जोड़कर, दरशन दे
प्रेम अश्रु को, आंखों से प्रभु, बरसन दे।।

सुचिता अग्रवाल"सुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम

विधान-रास छंद [सम मात्रिक]

विधान – 22 मात्रा, 8,8,6 पर यति, अंत में 112 , चार चरण , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l


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