त्रिभंगी छंद
'ससुराल'
ससुराल सजीला, लगे रसीला, छैल-छबीला, यौवन सा।
अति हृदय लुभाता, सहज सुहाता, मन हर्षाता, उपवन सा।।
कोमल भावों का, मृदु छाँवों का, उच्छावों का, डेरा है।
सूरज की गरमी, शीतल नरमी, उत्सवधर्मी, घेरा है।।
मन श्वसुर भाँपते, हृदय झाँकते, घर सँवारते, बड़पन से।
दुख सास मिटाती, हरि गुण गाती, दीप जलाती, शुचि मन से।।
नखराला देवर, मीठा घेवर, तीखा तेवर, दिखलाये।
ननदल हमजोली, हँसी-ठिठोली, मीठी बोली, सिखलाये।।
पिय का घर आना, मन खिल जाना, कुछ उकसाना, सरसाना।
तन रिमझिम सावन, अति मनभावन, मन वृंदावन, बरसाना।।
प्रिय की मृदु बातें, मीठी रातें, सुख सौगातें, व्याकुलता।
नेहर बिसराये, नव घर पाये, सपन सजाये, चंचलता।।
ससुराल प्रेम भी, ठोस-हेम भी, कुशल-क्षेम भी, प्यारा है।
हर भूल भुलाता, गले लगाता, हर्ष जगाता, न्यारा है।।
नित पाठ पढ़ाता, गर्व बढ़ाता, चाव चढाता, घर अपना।
हम इसे सजायें, हिल-मिल जायें, मंगल गायें, हो सपना।।
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त्रिभंगी छंद विधान-
त्रिभंगी प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। यह 4 पद का छंद है। प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत होनी आवश्यक है। परन्तु तीनों यति निभाई जाय तो सर्वश्रेष्ठ है। दो दो चरण समतुकांत होते हैं।
इसकी मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है:-
प्रथम यति- 2+4+4
द्वितीय यति- 4+4
तृतीय यति- 4+4
पदान्त यति- 4+2
चौकल में पूरित जगण वर्जित रहता है तथा चौकल की प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता।
पदान्त में एक दीर्घ (S) आवश्यक है लेकिन दो दीर्घ हों तो सौन्दर्य और बढ़ जाता है
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शुचिता अग्रवाल, 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम