काव्य कुञ्ज पटल के साझा काव्य संग्रह "काव्य कौमुदी (होली विशेषांक)" के आभासी संस्करण में प्रकाशित मेरी रचना।
डाउनलोड लिंक:
मरहठा माधवी छंद "होली"
रंग-बिरंगे रंग, लुभाते संग, सजी है टोलियाँ।।
होली का हुड़दंग, बाजते चंग, गूँजती बोलियाँ।
लाल, गुलाबी, हरा, रंग से भरा, गगन मदहोश है।
घन भू को छू जाय, रंग बरसाय, प्रीत का जोश है।।
भीगी-भीगी देह, हृदय में नेह, हाथ पिचकारियाँ।
कर सोलह श्रृंगार, नयन से वार, करे सब नारियाँ।।
पिय गुलाल मल जाय, रहे इतराय, गुलाबी गाल पे।।
झूमे मन अनुराग, उड़े जब फाग, ढोल की ताल पे।
भाँग, पेय मृदु शीत, पिलाकर मीत, करे अठखेलियाँ।
मधुर प्रणय के गीत, बजे संगीत, मने रँगरेलियाँ।।
मन से मन का मेल, रंग का खेल, मिटाये दूरियाँ।
मटके तिरछे नैन, चुराते चैन, चला कर छूरियाँ।।
पर्व अनूठा एक, सीख दे नेक, बुराई छोड़ दें।
हिलमिल रहना साथ, पकड़ कर हाथ, प्रेम से जोड़ दें।।
खुशियों का त्योहार, करे बौछार, प्रेम के रंग की।
हृदय हिलोरे खाय, बहकता जाय, टेर सुन चंग की।।
●●●●●●●●
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
No comments:
Post a Comment