Friday, May 13, 2022

गगनांगना छंद 'आखा तीज'

 गगनांगना छंद 

'आखा तीज'


शुक्ल पक्ष बैसाख मास तिथि, तीज सुहावनी।

नूतन शुभ आरंभ कार्य की, है फल दायनी

आखा तीज नाम से जग में, ये विख्यात है।

स्वयं सिद्ध इसके मुहूर्त को, हर जन ध्यात है।।


त्रेता का आरंभ इसी दिन, हरि युग धर्म का।

अक्षय पात्र मिला पांडव को, था धन कर्म का।।

परशुराम का जन्म हुआ वह, पावन रात थी।

शुरू महाभारत की रचना, शुभ सौगात थी।।


वृंदावन पट श्री विग्रह के, दर्शन को खुले।

कभी सुदामा भी इस दिन ही, हरि से आ मिले।।

भू सरसावन माँ गंगा ने, तिथि थी ये चुनी।

विविध कथाएँ दान-पुण्य के, फल की भी सुनी।।


होते ग्रह अनुकूल सभी ही, हरती आपदा।

धन की वर्षा करती तिथि यह, होता फायदा।।

फल प्रदायिनी मंगलदायक, हिन्दू मान्यता।

मनवांछित शुभ फल है देती, दे आरोग्यता।।

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गगनांगना छंद विधान-


गगनांगना छंद 25 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 16 और 9 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

2222 2222, 2 2212


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में रगण (212) आवश्यक है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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