Saturday, February 26, 2022

शंकर छंद 'नश्वर काया'

 शंकर छंद 

 'नश्वर काया'


माटी में मिल जाना सबको, मनुज मत तू भूल।

काया का अभिमान बुरा है, बनेगी यह धूल।।

चले गये कितने ही जग से, नित्य जाते लोग।

बारी अपनी भी है आनी, अटल यह संयोग।।


हाड़-माँस का पुतला काया, बनेगा जब राख।

ममता, माया काम न आये, साधन व्यर्थ लाख।।

नश्वर जग से अपनेपन का, जोड़ मत संबंध।

जितनी सकते उतनी फैला, सद्गुण सरस सुगंध।।


मिथ्या आडम्बर के पीछे, भागना तू छोड़।

जिस पथ पूँजी राम नाम की, पग भी उधर मोड़।।

सत्य भान ही दिव्य ज्ञान है, चिंतन अमृत जान।

स्वयं स्वयं में देख झाँककर, सच स्वयं पहचान।।


भाड़े का घर तन को समझो, मालिकाना त्याग।

सत् चित अरु आनंद  रूप से, हृदय में हो राग।।

आत्मबोध से भवसागर को, बावरे कर पार।

तन-मन अपना निर्मल रखकर, शुचिता रूप धार।।


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शंकर छंद विधान-


शंकर छंद 26 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + अठकल, सतकल + गुरु + लघु


शंकर- 8 +8, 7 + 2 + 1 (16+10)


अठकल में (4+4 या 3+3+2 )दोनों रूप मान्य है।


सतकल में (1222, 2122, 2212, 2221) चारों रूप मान्य है।


अंत में  गुरु-लघु (21) आवश्यक है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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