Wednesday, January 12, 2022

रुचिरा छंद 'भाभी'

 रुचिरा छंद

 'भाभी'


स्नेह सलिल से सींचे घर, पर घर को अपना लेती है।

अपने सुख की कम सोचे, सुख औरों को वो देती है।।

प्रेम समर्पण की मूरत, छवि माँ से जिसकी मिलती है।

वो प्यारी सी भाभी है, जो खुशियाँ देकर खिलती है।।


सहज निभाती रिश्तों को, सुख-दुख की साथी होती है।

तन,मन,धन से कर प्रयास, वो बीज खुशी के बोती है।।

सास-श्वसुर माँ-बाप लगे, सब देवर ननदें हमजोली।

भाभी रस का झरना है, जो मिश्री से भरती झोली।


जब बेटी ब्याही जाती, घर आँगन सूना हो जाता।

उस पतझड़ में भाभी से, फिर से सावन लहरा आता।।

कली रूप बेटी का यदि, तो भाभी फूलों की डाली।

बगिया महका कर रखती, वो ही होती इसकी माली।।


मात-पिता के बाद वही, तम आजीवन घर का हरती।

पीहर की गरिमा उससे, कुल का दीपक रोशन करती।।

द्वार खड़ी दिखती भाभी, तब माँ भूली पड़ जाती है।

उसके हाथों में खुश्बू, वो माँ वाली ही आती है।।

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रुचिरा छंद विधान-


रुचिरा छंद 30 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों  या दो दो पद समतुकांत होते हैं। प्रत्येक पद 14,16 मात्राओं के दो यति खंडों में विभाजित रहता है।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल + छक्कल, गुरु + अठकल + छक्कल

2222 222, 2 2222 222(S)

8+6, 2+8+6 = 30 मात्रा।


अठकल में (4+4 या  3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)


छक्कल में (3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं

चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।


अंत में एक गुरु का होना अनिवार्य है।

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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

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