निश्चल छंद,
'ऋतु शीत'
श्वेत अश्व पर चढ़कर आई, फिर ऋतु शीत।
स्वागत करने नवल भोर का, आये मीत।।
गिरि शिखरों पर धवल ओढ़नी, दृश्य पुनीत।
पवन प्रवाहित होकर गाये, मधुरिम गीत।।
शिशिर आगमन पर रिमझिम सी, है बरसात।
अगुवाई कर स्वच्छ करे ज्यूँ, वसुधा गात।।
प्रेम प्रदर्शित करती मिहिका, किसलय चूम।।
पुष्प नवेले ऋतु अभिवादन, करते झूम।
रजत वृष्टि सम हिम कण बरसे, है सुखसार।
ग्रीष्म विदाई करके नाचे, सब नर-नार।।
दिखे काँच सम ताल सरोवर, अनुपम रूप।
उस पर हीरक की छवि देती, उजली धूप।।
होता है आतिथ्य चार दिन, फिर है रोष।
शरद सुंदरी में दिखते हैं, अगणित दोष।।
घिरा कोहरा अविरत ठिठुरन, कम्पित देह।
छूमंतर हो जाता पल में, यह ऋतु नेह।।
●●●●●●●●
निश्चल छंद विधान-
निश्चल छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 16 और 7 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 2222, 22S1
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत गुरु लघु अनिवार्य है।
◆◆◆◆◆◆◆
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
No comments:
Post a Comment