मदनाग छंद,
'साइकिल'
सवारी जो प्रथम हमको मिली, सबसे प्यारी।
गुणों की खान ये है साइकिल, लगती न्यारी।।
बना कर संतुलन अपना सही, इस पर बैठें।
बड़े छोटे चलाते सब इसे, खुद में ऐठें।।
सुलभ व्यायाम करवाती चले, आलस हरती।
न फैलाती प्रदूषण साइकिल, फुर्ती भरती।।
खुला आकाश, ठंडी सी हवा, पैडल मारो।
गिरो भी तो उठो आगे बढो, कुछ ना धारो।।
भगाती दूर रोगों को कई, दुख हर लेती।
बढ़ाकर रक्त के संचार को, सेहत देती।।
इसी से आत्मनिर्भरता बढ़े, बढ़ते जाओ।
नवल सोपान पर उन्मुक्त हो, चढ़ते जाओ।।
बजा घंटी हटाओ भीड़ को, राह बनाओ।
बना कर लक्ष्य जीवन में बढो, सीख सिखाओ।।
न घबरा कर कभी भी भीड़ से, थमो न राही।
सवारी साइकिल की कर बनो, 'शुचि' उत्साही।।
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मदनाग छंद विधान-
मदनाग छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 17-8 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
1222 1222 12, 222S = (मदनाग) = 17+8 = 25 मात्रायें।
दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।
अंत में गुरु (2) अनिवार्य है।
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शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, असम
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