Monday, October 10, 2022

शोभन छंद, 'मंगलास्तुति'

 शोभन छंद,

 'मंगलास्तुति'


सर्व मंगल दायिनी माँ, ज्ञान का अवतार।

शब्द सुमनों का चढ़ाऊँ, नित्य मैं नव हार।।

अवतरण तव शुक्ल पंचम, माघ का शुभ मास।

हे शुभा शुभ शारदे माँ, हिय करो नित वास।।


हस्त सजती पुस्तिका शुभ, पद्म आसन श्वेत।

देवता, ऋषि, मुनि रिझाते, गान कर समवेत।।

कर जोड़ तुझको ध्यावते, मग्न हो नर नार।

वागीश्वरी नित हम करें, जयति जय जयकार।।


आशीष तेरा जब मिले, पनपते सुविचार।

दास चरणों की बनाकर, माँ करो उपकार।।

कलुष हरकर माँ मुझे दो, ज्ञान का वरदान।

भाव वाणी से करूँ मैं, काव्य का रस पान।।


काव्य जीवन में बहे ज्यों, गंग की मृदु धार।

खे रही है नाव इसमें, लेखनी पतवार।।

भाव परहित का रखूं मैं, नित रहे यह भान।

साधना की शक्ति दो माँ, छंद का शुचि ज्ञान।।

◆◆◆◆◆◆◆◆◆


शोभन छंद विधान-


शोभन छंद जो कि सिंहिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।

यह 14 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।


इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

5 2 5 2, 212 1121


पँचकल की संभावित संभावनाएं -

122, 212, 221


चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है किंतु इस छंद में 11 को 2 मानने की छूट नहीं है।


अंत में जगण (121) अनिवार्य है।

●●●●●●●●

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'

तिनसुकिया, असम

1 comment:

  1. जै गोबिंद शर्मा, लोसलFebruary 16, 2023 at 9:00 AM

    शुचि निरंतर दे रही हैं, छंद नूतन ज्ञान।
    आपका होना हमारे, कुंज का सम्मान ।।
    अति सुशोभित शोभिनी यह, भाव अपरंपार।
    धन्य मौसी आप पर सब, कुछ लिखा बलिहार।।

    ReplyDelete

Featured Post

शुद्ध गीता छंद, "गंगा घाट"

 शुद्ध गीता छंद-  "गंगा घाट" घाट गंगा का निहारूँ, देखकर मैं आर पार। पुण्य सलिला, श्वेतवर्णा, जगमगाती स्वच्छ धार।। चमचमाती रेणुका क...