"जिस घर मात-पिता खुश रहते"
(विधा- ताटंक छंद, गीत)
प्रतिमाओं की पूजा करने,हम मंदिर में जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।
असर दुआ में इतना इनकी,बाधाएँ टल जाती है।
कदमों में खुशियाँ दुनिया की सारी चलकर आती है।
पालन करने स्वयं विधाता ज्यूँ घर में बस जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते हैं।।
इस जीवन में कर्ज कभी हम चुका नहीं जिनका पाये।
औलादों के सपने सारे जिनकी आँखों में छाये।
बच्चों के हिस्से में खुशियाँ, झोली भर भर लाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते
हैं।
मुट्ठी में दुनिया की सारी दौलत आ ही जाती है।
जब तक ठंडी छाँव पिता की माँ ममता बरसाती है।
खुशकिस्मत होते जो इनका साथ अधिकतम पाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते,उस घर ईश्वर आते
हैं।।
#स्वरचित
डॉ.शुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"
तिनसुकिया, असम
Suchisandeep2010@gmail.com
*जिस घर मात पिता खुश रहते*
ReplyDeleteदीदी जी आपके एक एक शब्द हृदय में उतर गया
*जिनका कर्ज हम नही उतार सकते*
कोई भी शब्द नही है मेरे पास आपकी इस प्रस्तुति के लिए
बस आपके चरणों मे ब्रजेश ने शीश रख दिया है
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